विषय-सूची
✍️ विडाल डी ला ब्लाश का योगदान
विडाल डी ला ब्लाश को मानव भूगोल का संस्थापक माना जाता है। ब्लाश ने 1865 में पेरिस शिक्षण संस्थान ‘Ecole Normale Superieure’ से इतिहास तथा भूगोल दोनों विषयों की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने कुछ समय तक एथेन्स के फ्रांसीसी स्कूल में अध्यापक का कार्य करके 1872 ई. में पुनः फ्रांस लौटकर डॉक्टरेट की डिग्री (उपाधि) प्राप्त की। ब्लाश को 1872 से 1877 तक नैन्सी विश्वविद्यालय, फ्रांस में भूगोल के प्राध्यापक पद पर आसीन किया गया। 1896 से मृत्युपर्यन्त 1818 तक वह पेरिस के सोबन विश्वविद्यालय में भूगोल का प्रोफेसर रहा। उसने 1891 ई. में एक कोटि के भौगोलिक लेखों के लिए एक व्यवसायी पत्रिका ‘एनाल्स-डी-ज्याग्राफी’ की स्थापना की। ला ब्लाश ने 1894 ई. में ‘एटलस जनरल वाइडल ला ब्लाश’ का प्रथम संस्करण प्रकाशित किया। वह अपने जीवन में भूगोल के प्रति समर्पित रहा और भूगोल के शिक्षकों को 26 वर्ष तक शिक्षा देता रहा।
विडाल डी ला ब्लाश वातावरणी-निश्चयवाद का कट्टर विरोधी और आलोचक था। वह रेटजेल और उसके मानव भूगोल के द्वितीय संस्करण से बहुत प्रभावित था। विडाल डी ला ब्लाश ने संभववाद के विचार, जैसा कि फेब्रे ने प्रतिपादित किया था। मानव और पर्यावरण के बारे में उसकी मूल धारणा भूगोल के दो प्रमुख उपकरण प्रकृति व सीमा स्थापित करती है और मानव आवास के लिए संभावनाएँ उपस्थित करती हैं, किन्तु मनुष्य जिस प्रकार इस परिस्थितियों में प्रतिक्रिया अथवा समायोजन करता है। उसकी अपनी परम्परागत जीवन शैली पर निर्भर करता है।
विडाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति ‘मानव भूगोल’ उसकी मृत्यु के उपरान्त 1921 ई. में प्रकाशित हुई थी क्योंकि उसकी 1918 में अचानक मृत्यु हो गई थी। मानव भूगोल के आंशिक कार्य को उसके दामाद इमेनुअल-डि-मार्टोनी ने अन्तिम रूप दिया। इस पुस्तक को विडाल-डी-ला ब्लाश ने मानव भूगोल के लक्ष्य और उद्देश्यों से आरम्भ किया। इसमें क्षेत्रीय एकता और मानव तथा पर्यावरण का विचार, मानव एक भौगोलिक कारक, सभ्यताओं का प्रतिमान, परिसंचरण, सांस्कृतिक प्रदेश और नगर, अध्याय सम्मिलित किये गये हैं। विडाल की पुस्तक की पाठ योजना उन प्रतिमानों को स्पष्ट करती है जिन पर उसने मानव पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का परीक्षण करने का प्रयास किया था।
✍️ विडाल डी ला ब्लाश के प्रमुख ग्रन्थ
(1) यूरोप के राज्य और राष्ट्र, 1889
(2) यूरोप की मानचित्रावली, 1894
(3) वार्षिक प्रन्थमाला, 1891 (4) वार्षिक ग्रन्थ सूची
(5) फ्रांस का भूगोल, 1903
(6) पूर्वी फ्रांस का भूगोल, 1917
(7) मानव भूगोल के सिद्धान्त
विडाल डी ला ब्लाश महोदय ने भूगोल को प्राकृतिक तथा मानवीय विज्ञानों में स्थान देने के लिए निम्नांकित 6 प्रमुख संकल्पनाओं को प्रस्तुत किया है—
(1) भूगोल पार्थिव दृश्यों की एकता को दर्शित करता है अर्थात् भौतिक कारक परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर तथा अन्तर्सम्बन्धित हैं।
(2) पार्थिव दृश्य विभिन्न प्रकार के परिवर्तनशील संयोगों तथा परिमार्जन में परिलक्षित होते हैं। जैसा कि विश्व की विभिन्न प्रकार की जलवायु के अध्ययन में दृष्टिगोचर होता है।
(3) भूगोल का सम्बन्ध पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी तथ्यों से होता है। यह स्थानों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
(4) वातावरण की शक्तियों के विभिन्न भेदों तथा प्रभावों को समझना तथा मानना आवश्यक है जैसे पृथ्वी पर वनस्पति की पेटियाँ तथा उनमें निवास करने वाले मानव के अनुकूलन को समझना।
(5) पार्थिव दृश्यों के वर्गीकरण तथा उनकी व्याख्या करने में वैज्ञानिक विधि को अपनाना चाहिए। (6) मानव द्वारा अपने वातावरण में किये गये परिवर्तनों तथा परिमार्जन को पहचानना आवश्यक है।
✍️ पार्थिव एकता का सिद्धान्त
विडाल-डी-ब्लाश ने पार्थिव एकता का सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। उसके अनुसार समस्त भौगोलिक विकास में पार्थिव एकता का विचार महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी का सम्पूर्ण रूप में विचार, जिसके भाग समन्वित हैं, जहाँ तथ्य एक निश्चित क्रम का अनुपालन और सामान्य नियमों जिससे कि विशेष घटनायें सम्बन्धित हैं, का पालन करते हैं, जिसने पूर्व में खगोल विद्या के माध्यम से विज्ञान में प्रवेश किया। टालेम के शब्दों में भूगोल “एक लोकोत्तर विज्ञान है जिसमें पृथ्वी का प्रतिबिम्ब स्वर्ग में दिखाई देता है।” किन्तु पार्थिव एकता की अवधारणा गणित के क्षेत्र तक सीमित थी। यह अवधारणा ब्लाश के समय तक भूगोल की शाखा का भाग नहीं बन सकी थी। उसके विचार में मानव भूगोल के तथ्य पार्थिव एकता से सम्बन्धित हैं जिनके द्वारा ही उनकी विवेचना भी की जा सकती है, वे सभी स्थानों पर पर्यावरण से सम्बन्धित हैं जो स्वयं भौतिक अवस्थाओं के मिश्रण की सृष्ट वस्तु है।
पार्थिव एकता का विचार वानस्पतिक भूगोल से लिया गया है जहाँ इस शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग पर्यावरण की अवधारणा के रूप में किया गया था।
एलेक्जेन्डर-वॉन-हम्बोल्ट ने अपनी दूरदृष्टि से संकेत किया था कि एक भूदृश्य के लक्षण को निश्चित करने में वनस्पति की उपस्थिति कितनी महत्त्वपूर्ण है। वनस्पति की उपस्थिति निश्चित रूप से किसी क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण विशेषता होती है। इसकी अनुपस्थिति आश्चर्यजनक होती है। वनस्पति न केवल भू-आकृति को महत्त्व प्रदान करती है पर भूआकृति उसके ढाल, रंग, एक सामान्य विशेष लक्षण प्रदान करती है। स्ट्रैपी, सवाना, सेल्वा आदि सामूहिक शब्दावली है इस प्रकार के सामूहिक प्रभाव का विचार प्रदान करते हैं। पौधों की आपस में प्रतिद्वन्द्विता इतनी अधिक सक्रिय होती है कि केवल उस पर्यावरण से अधिक समायोजन करने वाले पौधे ही जीवित रह पाते हैं। इस प्रकार से केवल अस्थिर सन्तुलन अवस्था सम्पोषित की जाती है। अनुकूलन का दिग्दर्शन ऊँचाई, आकार और पत्तियों की अवस्था, रोमिल आवरक, रेशेदार तन्तु, जड़ विकार विभिन्न ढंग से दिखाई देता है। न केवल प्रत्येक पौधा अत्यावश्यक क्रिया को चलाये रखने के लिए आवश्यक होता है। जितना वह कर सकता है उसका सर्वोत्तम प्रबन्ध करता है किन्तु भिन्न प्रकार के पौधों का संगठन बन जाता है। जिससे कि दूसरे की निकटता से उसे लाभ हो सके।
✍️ विडाल डी ला ब्लाश की क्षेत्रीय अवधारणा
ब्लाश ने भूगोल को स्थानों का वैज्ञानिक अध्ययन बताया है। उन्होंने प्रादेशिक अध्ययन पर बल देते हुए बतलाया कि इसके अन्तर्गत किसी प्रदेश के भौतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तथ्यों के प्रभावों को स्पष्ट करना आवश्यक है। ब्लाश ने प्रादेशिक अध्ययन को गति देते हुए ‘फ्रांस का भूगोल’ लिखी। उनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य छोटे-छोटे प्रदेशों का भौगोलिक अध्ययन करना है। उन्होंने बताया कि फ्रांस के छोटे-छोटे क्षेत्र जिन्हें ‘पे’ कहते हैं, भौगोलिक अध्ययन का आधार होना चाहिए। ब्लाश ने कभी भी प्रदेशों को चारदीवारी की भाँति सीमांकित नहीं माना तथा किसी प्रदेश को Water tight Compartment नहीं माना है। उन्होंने प्रदेशों के समीपवर्ती क्षेत्रों के संक्रमण अथवा परस्परावलम्बी क्षेत्र को भी नहीं माना है। एक प्रदेश में पार्थिव घटनाओं एवं कारकों की अन्तः निर्भरता की खोज करके उनकी अन्य प्रदेशों की ऐसी घटनाओं एवं कारकों एवं विषमता के आधार पर दूसरों से तुलना की जानी चाहिए। प्रादेशिक अध्ययन में फ्रांस के ग्रामीण क्षेत्रों को Pays कहा था जो औद्योगीकरण से वंचित थे तथा उनका देहाती स्वरूप मूलरूप में था। फ्रांस में लघु प्रदेशों की परम्परा आज भी प्रचलित है। इस प्रकार ब्लाश ने क्षेत्रीय अध्ययन को भूगोल का केन्द्र बिन्दु बताया है।
✍️ विडाल डी ला ब्लाश सम्भववादी विचारक
ब्लाश एक सम्भववादी भूगोलवेत्ता था उसने बताया कि मानव स्वयं एक क्रियाशील प्राणी है, जो अपने वातावरण का उपयोग स्वयं के अनुभव एवं विकास के स्तर के आधार पर करता है। उन्होंने लिखा है कि प्रकृति संभावनाएं प्रस्तुत करती हैं तथा मानव अपनी क्षमता एवं आवश्यकतानुसार उनका उपयोग कर सकता है। वे लिखते हैं कि “प्रकृति परामर्शदात्री के अतिरिक्त कुछ नहीं है।”
ब्लाश ने बताया कि प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्ध घनिष्ठ हैं, जो प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं। इस समयावधि में उन्होंने एक-दूसरे को प्रभावित किया है। एक ओर मानव ने प्रकृति के साथ अनुकूलन करना सीखा है तो दूसरी ओर उसने प्रकृति में अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन भी किये हैं। इस प्रकार ब्लाश में अन्त तक विकसित समन्वयकारी चिन्तन की स्पष्ट झलक मिलती है।
✍️ मानव भूगोल के तत्त्व
विडाल-डी-ला-ब्लाश ने मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र को निम्नांकित तीन भागों में विभाजित किया है जिसमें सम्मिलित मानव भूगोल के तथ्य निम्नलिखित हैं
(I) जनसंख्या
इसके अन्तर्गत निम्नांकित तथ्यों को सम्मिलित किया गया है—
(1) जनसंख्या का वितरण व घनत्व
(2) प्रमुख जनसंख्या समूह
(3) मनुष्य के जीवन निर्वाह के प्रमुख साधन
(4) जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण
(5) जनसंख्या घनत्व के विभिन्न प्रकारों में आपसी सम्बन्ध
(II) सांस्कृतिक तत्त्व
(1) प्राकृतिक पर्यावरण के विभिन्न तथ्यों के साथ मानव द्वारा किया गया अनुकूलन।
(2) मनुष्य द्वारा विभिन्न औजार एवं कच्चे माल का उपयोग।
(3) मनुष्य के जीवन निर्वाह के प्रमुख साधन।
(4) मनुष्य द्वारा अपन आवासीय स्थलों के निर्माण में सहायक पदार्थ।
(5) मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियाँ।
(6) प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक मनुष्य की विभिन्न सभ्यताओं का विकास।
(III) परिवहन एवं भ्रमण
प्राचीनकाल में परिवहन के प्रमुख साधन के रूप में मनुष्य स्वयं था। वह अपनी यात्रा स्वयं पैदल चलकर तय करता था। अतः मनुष्य द्वारा उसके बाद पशुओं को प्रमुख परिवहन साधन के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान समय में सड़कें, रेल परिवहन, हवाई जहाज, सामुद्रिक जहाज आदि परिवहन एवं भ्रमण के प्रमुख साधन हैं।
विडाल डी ला ब्लाश ने इन तीन प्रमुख तत्त्वों के अतिरिक्त मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र में निम्न तत्त्वों को भी समाहित किया है—
(1) विभिन्न मानव प्रजातियाँ
(2) विभिन्न नगर (नगरों का उद्भव एवं विकास)
✍️जीन्स ब्रुन्स का योगदान
जीन्स ब्रुन्स ब्लाश का शिष्य था जिसने मानव भूगोल को अधिक सुदृढ़ धरातल पर खड़ा करने का कार्य किया। जीन्स ब्रुन्स की रुचि विशेषकर मानव भूगोल व बस्ती भूगोल में थी। 1912 में इनकी नियुक्ति College de France में मानव भूगोल के लिए शोध पीठ पर प्रोफेसर के पद पर हुई। इतिहास और भूगोल के अध्ययन के पश्चात् उसने अपने आपको मानव भूगोल के संकल्पनात्मक ढाँचे में विकसित किया। अपने शिक्षक के दिखाये मार्ग के अनुसार उसने मानव भूगोल के क्षेत्र और पद्धति की व्याख्या करने का प्रयास किया था। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज्यॉग्राफी ह्यूमेन एसाई-डि-क्लासीफिकेशन पोजिटिव’ सन् 1910 में प्रकाशित हुई थी।
✍️ जीन्स ब्रुन्स की रचनायें
(1) Geographic Humaine 1910, तीन खण्डों में
(2) La Geographic de la Historine, 1911 (3) फ्रांस के मानव भूगोल, 1920
(4) फ्रांस का राजनीतिक आर्थिक भूगोल, 1926
(5) ईसा बोमेन की पुस्तक ‘New World’ का फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद |
इनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘मानव भूगोल’ (Geographic Humaine) है जो तीन खण्डों में 1910 में प्रकाशित हुई। इसका संशोधन उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी पुत्री मेडम रेमण्ड डिलामेयर ने किया था। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में मानव द्वारा पृथ्वी के विभिन्न रूपों में प्रयोगों का विवेचन किया गया है। भवन निर्माण, प्रकार, गाँवों व नगरों की स्थिति तथा आकृति का वर्णन है। दूसरे खण्ड में मानव के वनस्पति जगत व जन्तु जगत पर विजय तथा तीसरे खण्ड में मानव द्वारा किये गये खनन कार्य को लुटेरी अर्थव्यवस्था का नाम देकर वर्णित किया गया है।
>> जीन्स ब्रुन्स ने मानव भूगोल को तीन वर्गों तथा आवश्यक तथ्यों में वर्गीकृत किया है, जो निम्नांकित हैं—
(1) प्रथम वर्ग के आवश्यक तथ्य– मिट्टी का अनुत्पादक प्रयोग इसमें उसने मकान और सड़कों को सम्मिलित किया है। मकानों के भेद, सड़कें, मानवीय बस्ती, नगरीय समूह, नगरीय संचार, गठबन्धी, नगरीय अकारिकी, संचार का सामान्य भूगोल सम्मिलित हैं।
(2) दूसरे वर्ग के आवश्यक तथ्य– बुंस महोदय ने दूसरे वर्ग के आवश्यक तथ्यों में वनस्पति जगत और जन्तु जगत पर मानव की विजय को बताया है। इसमें उसने ‘कृषि और पशुपालन’ को सम्मिलित किया है।
(3) तीसरे वर्ग के आवश्यक तथ्य– मिट्टी का विनाशकारी उपयोग इसमें पौधों एवं पशुओं का विनाश तथा खनिजों का शोषण प्रमुख है।
उपर्युक्त तीन वर्गों के अतिरिक्त बुंस ने एक अन्य वर्ग को भी शामिल किया था।
(4) चौथे वर्ग में उसने निम्न तथ्यों को सम्मिलित किया है
(i) मानव भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल
(ii) मानव प्रजातियाँ
(iii) सामाजिक भूगोल
(iv) राजनीतिक तथा ऐतिहासिक भूगोल
इसके अतिरिक्त उसके विचार से कि चौथे वर्ग के अलावा दिखाई देने वाले उपर्युक्त तीन वर्ग भौगोलिक प्रदेशों की सीमा का निर्धारण नहीं करते हैं। इन तथ्यों से आगे इतिहास का भूगोल अर्थात् जनसंख्या का वितरण उत्पादन, यातायात, विनिमय और राजनैतिक समितियाँ (क्षेत्र, मार्ग, सीमाएँ राज्यों के समूह) सामाजिक भूगोल की भौगोलिक प्रदेश के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। ये सभी भौतिक और सांस्कृतिक घटक, प्रदेश के अध्ययन के लिए आवश्यक हैं और किसी प्रदेश का विस्तृत अध्ययन करने के लिए इन पर विचार करना आवश्यक है। उसने भौगोलिक अध्ययन की पद्धति में दो सिद्धान्तों (1) क्रियाशीलता का सिद्धान्त, (2) अन्तर्क्रिया का सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण बताया ।
✍️ जीन्स ब्रुन्स के भौगोलिक अध्ययन के सिद्धान्त
जीन्स ब्रुन्स ने भौगोलिक अध्ययन में दो सिद्धान्तों पर अधिक बल दिया है। जिनका विवेचन निम्नांकित है :-
(1) क्रियाशीलता का सिद्धान्त
जीन्स ब्रुन्स का यह दृढ़ विश्वास था कि भौतिक और सांस्कृतिक दृश्य निरन्तर परिवर्तनशील अवस्था में रहे हैं और इनका अध्ययन समय मापक्रम में स्थिर मानकर अध्ययन करने के स्थान पर कालक्रम के परिवर्तन में अध्ययन करना चाहिए। उसका विचार था कि प्रत्येक वस्तु या तो बढ़ रही है अथवा घट रही है, प्रसार कर कर रही है अथवा संकुचित हो रही है तथा कोई भी वस्तु स्थिर और स्थायी नहीं है। उदाहरण के लिए पर्वत चोटियाँ, उनकी ऊचाइयाँ, सागर तल, हिम चादर, हिमानी घाटियों के आकार, माप और ऊँचाइयों में परिवर्तन होता रहता है। इसलिए वृहत् अथवा लघु इकाई के भौतिक और सांस्कृतिक घटकों के अन्तर्सम्बन्धों को समझने के लिए तथा न्यायपूर्ण संश्लेषण प्राप्त करने के लिए सक्रियता के सिद्धान्त को मस्तिष्क में रखा जाना आवश्यक है।
(2) अन्तर्क्रिया का सिद्धान्त
जीन्स ब्रुन्स को अन्योन्या क्रिया का विचार विडाल ली-ला-ब्लाश से प्राप्त हुआ था, जिसने ‘पार्थिव एकता’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था, बुन्स ने यह मान लिया था कि भौगोलिक परिघटना (भौतिक एवं सांस्कृतिक दोनों) में आपस में निकट का सम्बन्ध है और उनके अनेकों संयोजनों अथवा क्रम परिवर्तनों और संयोजन का अध्ययन किया जाना चाहिए। पार्थिव एकता अथवा सार्वभौमिकता का विचार मूलभूत संकल्पना थी जिसने बाद में प्रादेशिक संश्लेषण के विचार को प्रोत्साहित किया। अन्तहीन अन्तर्सम्बन्धों की अवस्थाओं की जो वे प्रदर्शित करती हैं, के कारण समस्त भौतिक मानव शक्तियाँ निकटता से जुड़ी रहती हैं। अपने अन्तर्क्रिया के सिद्धान्त के समर्थन में उसने पशु और संवर्द्धित पौधों के बीच सम्बन्धों का परीक्षण किया और यह निश्चित किया कि किस प्रकार का भूमि उपयोग, किस प्रकार की कृषि और किस प्रकार के आर्थिक संगठनों से ये पशु सम्बन्धित हैं। संक्षेप में हमारे प्रयास पौधों और पशुओं के समान मानव के लिए मूलतः महान् भौगोलिक अन्योन्यक्रिया के सिद्धान्त पर आधारित हैं।
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