हमारा राजस्थान के प्राचीन ऐतिहासिक क्षेत्र | Rajasthan Ancient Region

हमारा राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र

                  चित्तौड़गढ़ जिले के छोटे से गाँव भाटोली का छात्र रवि, दीवार पर लगे राजस्थान के मानचित्र ध्यान से देख रहा था। उसने अपने शिक्षक से प्रश्न किया- सर हमारे राज्य का नाम राजस्थान है ना, हमारे क्षेत्र को मेवाड़ क्यों कहते हैं? मेरे मामा जोधपुर रहते हैं, पर वो कहते हैं कि हम मारवाड़ में रहते हैं, ऐसा क्यों ? शिक्षक ने कहा- रमेश ये मेवाड़, मारवाड़ हमारे क्षेत्र के प्राचीन नाम हैं। राजस्थान जो आज हमें दिखाई देता है, पुराने समय में यह ऐसी राजनीतिक इकाई नहीं था। प्राचीन काल में राजस्थान विभिन्न जनपदों एवं अंचलों में विभक्त था। ये जनपद एवं अंचल भौगोलिक स्थान अथवा वहाँ रहने वाली जाति के नाम से जाने जाते थे। जैसे- जांगल, मरु, अर्जुनायन, शिवि, मेवात, हाड़ौती आदि ।

                  प्राचीन भारत में आर्यों ने छोटी – छोटी बस्तियों को मिलाकर अपने – अपने राज्य या जनपदों का निर्माण आरम्भ किया। महाभारत एवं संहिता ग्रन्थों में राजस्थान के कई जनपदों का उल्लेख मिलता है। 

मरु प्रदेश 

                  हमारा राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र का ऋग्वेद सहित हमारे पौराणिक ग्रन्थों, रामायण, चरक संहिता, महाभारत एवं बृहदसंहिता में मरु प्रदेश का वर्णन आता है। मरु प्रदेश आर्यों का प्रारंभिक जनतंत्र था, जिसमें वर्तमान के बीकानेर, नागौर, गंगानगर, जैसलमेर एवं बाड़मेर के कुछ भाग सम्मिलित थे। कालांतर में इस क्षेत्र में कुछ विस्तार साथ कुरु, मद्र तथा जांगल नामक जनपदों का निर्माण हुआ। 

जांगल प्रदेश 

                  इस जनपद में वर्तमान बीकानेर, नागौर एवं जोधपुर का कुछ भाग आता था। इसकी राजधानी अहिछत्रपुर थी, जिसका साम्य वर्तमान नागौर से प्रतीत होता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यादव वंश के बलराम एवं श्रीकृष्ण द्वारिका जाते समय इसी क्षेत्र से गुजरे थे। 

मत्स्य प्रदेश 

                  इस जनपद का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। महाभारत में मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर ( बैराठ ) थी। यह जनपद अलवर एवं जयपुर के मध्य स्थित था। इस स्थान का वर्णन चीनी यात्री युवानच्यांग ने भी किया है।

शूरसेन प्रदेश 

                  राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर तथा करौली के अधिकतर भू–भाग प्राचीन शूरसेन जनपद में सम्मिलित थे। इस जनपद की राजधानी मथुरा थी। चौथी शताब्दी ई . पू . के यूनानी लेखकों ने सिकंदर के समय में शूरसेन या सौरसेन का उल्लेख किया है। बयाना प्रशस्ति में भी शूरसेन नामक राजवंश का वर्णन मिलता है। सिकंदर के आक्रमण के पश्चात् अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने को उत्सुक पंजाब और टक्क की कुछ जातियाँ राजस्थान में आकर बस गई। इनमें अपने साहस और शौर्य के लिए प्रसिद्ध शिवि, अर्जुनायन, मालव आदि जातियाँ प्रमुख थीं। 

शिवि जनपद 

                  आधुनिक उदयपुर के पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर का संभागीय प्रदेश में शिवि जाति ने आधिपत्य स्थापित किया था। इसलिए यह शिवि जनपद के नाम से जाना जाता था। इसकी राजधानी मज्झमिका या माध्यमिका थी, जिसके अवशेष चित्तौड़गढ़ के पास  ‘नगरी’ नामक गाँव में मिलते हैं। इस भूभाग को मेदपाट ( मेवाड़ ) तथा प्राग्वाट भी कहा जाता था। 

अर्जुनायन प्रदेश

                  भरतपुर – अलवर प्रान्त के अर्जुनायन अपनी विजयों के लिए प्रसिद्ध थे। अर्जुनायनों ने मालवों के साथ मिलकर विदेशी क्षत्रपों को परास्त किया था। 

मालव प्रदेश 

                  मालवों की शक्ति का केंद्र जयपुर के निकट स्थित ‘नगर’ था, जो वर्तमान में टोंक जिले में स्थित है। कालांतर में ये अजमेर, टोंक एवं मेवाड़ क्षेत्र तक फैल गए। टोंक, प्रतापगढ़ एवं झालावाड़ का क्षेत्र मालव देश के अन्तर्गत आता था। मालवों की दिग्विजय का यूप अभिलेख नांदसा (भीलवाड़ा) में लगा है। 

यौधेय प्रदेश

                  राजस्थान के उत्तरी भाग का यौधेय भी एक शक्तिशाली गणतंत्रीय कबीला था। संभवतया यौधेयों ने ही उत्तरी राजस्थान से कुषाण शक्ति को नष्ट किया।

★ गुप्त काल तक भी ये गणतंत्रीय व्यवस्थाएँ अपने – अपने क्षेत्र में बनी रहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्त सम्राटों ने इन्हें अर्द्ध – आश्रित रूप में बनाये रखा। परन्तु पाँचवीं सदी के बाद के हूण आक्रमणों ने यहाँ के गणतंत्रीय जनपदों की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। बृहदसंहिता नामक ग्रंथ में इनके पतन की चर्चा की गई हैं । इसके बाद ये राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र / जनपद अन्य नामों और सीमाओं को लेकर सामने आते हैं। जैसे – मेवाड़, वागड़, मारवाड़, हाड़ौती, ढूंढाड़, मेवात ।

 

 

 मेवाड़ 

                  राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र शिवि जनपद वाले क्षेत्र को मेवाड़ कहा गया है। आधुनिक उदयपुर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, राजसमद, भीलवाड़ा जिले मेवाड़ राज्य के क्षेत्र रहे थे। इस क्षेत्र पर सातवीं शताब्दी से आधुनिक राजस्थान के निर्माण तक गुहिल – सिसोदिया वंश का राज्य रहा। नागदा, आहड़, कल्याणपुर, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़, चावंड, उदयपुर आदि समय – समय पर इसकी राजधानी रही। यहाँ की बोली मेवाड़ी है। 

वागड़ 

                  राजस्थान में दो क्षेत्र वागड़ के नाम से जाने जाते थे- एक डूंगरपुर, बाँसवाड़ा व दूसरा पिलानी के पास नरहड़, भादरा, नोहर तथा कनणा का क्षेत्र। किन्तु अधिकतर दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा के भूभाग को ही वागट् या वागड़ कहा गया तथा इसकी बोली को वागड़ी कहा गया। 

मारवाड़ 

                  राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र मरु प्रदेश ही कालांतर में मारवाड़ कहलाया। सातवीं सदी में इसके मंडोर (जोधपुर) क्षेत्र पर गुर्जर – प्रतिहारों ने शासन किया। बाद में इस क्षेत्र पर राठौड़ वंश का आधिपत्य स्थापित हो गया। 

हाड़ौती 

                  आधुनिक बूंदी और कोटा का क्षेत्र हाडौती कहलाता है। प्राचीनकाल में इस भूभाग पर मीणा जनजाति का आधिपत्य था। मीणा वंश का बूंदा के नाम पर ही बूंदी का नामकरण हुआ। कालांतर में चौहान वंश की हाड़ा शाखा ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। तभी से इस भूभाग को एवं यहाँ की बोली को हाडौती कहा जाने लगा। 

ढूंढाड़ 

                  जयपुर एवं उसके आस – पास का क्षेत्र ढूँढाड नाम से प्रसिद्ध रहा था। बारहवीं सदी में कछवाह राजपूतों ने यहाँ की स्थानीय जनजाति के मीणों और बड़गुर्जरों को परास्त कर अपने राजवंश की नींव डाली। इस क्षेत्र की भाषा ढूंढाड़ी कहलाती है। 

मेवात 

                  अलवर – भरतपुर का वह क्षेत्र जहाँ मेव जाति की अधिकता रही, मेवात कहलाता है। मेवातियों का प्रसिद्ध नायक हसन खान मेवाती था, जो खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से बाबर के विरूद्ध लड़ता हुआ मारा गया। 

                 हमारा राजस्थान के प्राचीन क्षेत्र के इन सब अंचलों के अतिरिक्त भी राजस्थान के कुछ अन्य क्षेत्र जैसे- जैसलमेर को माड या वल्ल, जोधपुर का दक्षिण भाग गुर्जरत्रा, प्रतापगढ़ को कांठल और झालावाड़ का क्षेत्र मालवा; चूरू, झुंझुनू, सीकर वाला क्षेत्र शेखावाटी, ब्यावर – अजमेर का क्षेत्र मेरवाड़ा के नाम से जाना जाता है। राजस्थान और इसके विभिन्न क्षेत्र भूगोल और परिस्थितियों के फलस्वरूप अनेक बोलियों, वेशभूषा, व्यवहार और परंपराओं का धनी है। 

शब्दावली 

★ अंचल   :-  क्षेत्र 

★ ऋग्वेद   :-  प्राचीन ग्रंथ (प्रथम वेद) 

★ क्षत्रप    :-  प्रांत का मुखिया, राज्यपाल (भारत में शक जाति के शासकों हेतु प्रयुक्त) 

अभ्यास प्रश्न

 1 . मत्स्य जनपद की राजधानी थी 

     ( अ ) मथुरा ( ब ) अहिछत्रपुर ( स ) विराटनगर ( द ) बागोर ) 

2 . कोटा – बूंदी वाला क्षेत्र कहलाता है 

    ( अ ) हाडौली ( ब ) जांगल ( स ) मरु ( द ) मेवात 

           3.  रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए – 

       (१) . ब्यावर – अजमेर का क्षेत्र ……..के नाम से जाना जाता है । 

        (२). जयपुर एवं उसके आस – पास के क्षेत्र की भाषा ……… कहलाती है ।

4 . महाभारत कालीन किन्हीं दो जनपदों के नाम बताइए ।

5.  शेखावाटी में कौन – कौन से जिले आते हैं ?

6.  हसन खान मेवाती कौन था ?

7.  पाँचवीं सदी के बाद राजस्थान के गणतंत्रीय जनपदों की व्यवस्था समाप्त क्यों हो गई ?


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