भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) – Global Positioning System

भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS – Global Positioning System ) 

                   दूरी और अक्षांशीय स्थिति सम्बन्धी सभी समस्याओं का समाधान भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र ( global Positioning System ) अथवा G.P.S. द्वारा संभव है । इस जी.पी.एस. की मदद से स्थान और वाहन की सही स्थिति ज्ञात की जा सकती है । दो स्थानों की सही दूरी के मापन में भी जी.पी.एस. ही सहायक होता है । वायुयान और जलयान का परिचालन भूकेन्द्रों की मदद के बिना केवल जी.पी.एस की मदद से ही करना संभव है । जी.पी.एस. से सहायता लेने के लिए हाथ मे आसानी से उठाए जा सकने वाले रिसीवर की सहायता लेनी पड़ती है । इस रिसीवर में व्यक्ति या किसी स्थान की स्थिति अक्षाशं और देशांतर अथवा किसी अन्य वस्तु से दूरी और दिशा के सन्दर्भ में जानकारी हो जाती है ।

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 भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) की कार्य प्रणाली 

              भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) में 24 उपग्रहों का उपयोग किया जाता है । यह उपग्रह 20,200 किमी. की ऊँचाई पर लगभग वृत्तीव कक्षा में लगभग 12 घण्टे में पृथ्वी की एक परिक्रमा करते है। इनका परिक्रमा पथ विषुवत वृत के साथ 55° का कोण बनाता है । इन उपग्रहों के परिक्रमण समय को इस तरह व्यवस्थित किया गया है। कि पृथ्वी के हर बिन्दु से और हर समय चार उपग्रह दिखाई पड़ते रहते है। इनमें से तीन उपग्रहों से समय और स्थिति के संकेत प्रसारित होते हैं तथा चौथे उपग्रह की आवश्यकता स्थानों की ऊँचाई बताने के लिए होती है। रिसीवरों में छोटे – छोटे कम्प्यूटर लगे होते है। ये ज्यामिति के त्रिभुजन सिद्धान्त का उपयोग करके क्षण भर में अनेक गणनाएँ कर लेते है तथा रिसीवर की स्थिति को अक्षांश और देशांतर अथवा अन्य वस्तुओं के सन्दर्भ में बता देते है।

इस तकनीक के द्वारा प्रथ्व के विभिन्न स्थानों के शुद्धतम निर्देशांक ज्ञात किये जा सके हैं एवं उपग्रहों का प्रेक्षण हर मौसम में किया जा सकता है। प्रेक्षण के लिये उपग्रह चौबीस घंटे उपलब्ध होते है । समय कम लगने से खर्च भी कम होता है । 

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भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) उपग्रह की विशेषतायें ( Characteristics of GPS Satellite ) 

 जी.पी.एस. उपग्रह की प्रमुख विशेषतायें निम्न है :-

    •  कक्षीय ऊँचाई ( Orbital Height )    –     20200 किमी
    • समय ( Period )                                 –     12 घंटे
    •  आवेग ( Frequencies )                     –     1575 मेगा हर्टज
    • नौ संचालय ( Navigation Data )        –     1228 मेगा हर्टज
    • उपलब्धता ( Availability )                  –      निरन्तर 
    • शुद्धता ( Accuracy )                            –     15 किमी . ( P – Code / NASA )
    • उपग्रह समुह (Satellite Constellation) – 21-24
    • ज्यामिति ( Geometry )                         –     पुनर्वृतिक ( Repeating )
    • उपग्रहीय घड़ी ( Satellite Clocks )       –     रूबीडियम कैशियम ओटोमिक 

 भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) की शुद्धता ( Accuracy ) 

जी.पी.एस. प्रणाली किसी भी स्थित बिन्दु पर 10 से 15 मी. की शुद्धता प्रदान करती है, बशर्ते कोई भी चुनी हुई उपलब्धता ( Selective Availability – SA ) या प्रति चरखीय ( Acti Spooling ) न हो। धरातलीय व आयनमण्डलीय त्रुटियों को निरस्त कर बाहर कर दिया जाता है तथा स्थिति की अपेक्षा दो बिंदुओं के मध्य की दूरी को शुद्धता के साथ लिया जाता है । इसका उपयोग प्रारम्भिक सर्वेक्षण कार्य के लिये किया जाता है । 

भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) के प्रभाग ( Segments of GPS ) 

सम्पूर्ण मौसमी विश्व्यापी प्रणाली ( All Weather Global System ) की व्यवस्था संयुक्त प्रोग्राम कार्यालय ( Joint Program Office – JPO ) के द्वारा की जाती है जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका के एअर फोर्स सिस्टम कमाण्ड के ‘अन्तरिक्ष अनुभाग’ ( Space Division ) लॉसएन्जिलिस में स्थित है । जी.पी.एस प्रणाली को तीन प्रमुख प्रभागों में विभाजित किया गया है। 

1. आन्तरिक प्रभाग ( Space Segment ) 

2. नियन्त्रण प्रभाग ( Control Segment ) 

3. उपयोगकर्ता प्रभाव ( User Segment ) 

1. अन्तरिक्ष प्रभाग ( Space Segment ) :- 

             यह प्रभाग उपग्रहों की स्थिति से सम्बन्धित है। वायुमण्डल की 6 विभिन्न कक्षाओं में, 24 उपग्रहों को पृथ्वी से 20,000 किमी की दूरी पर स्थापित किया गया है। इनका कक्षीय झुकाव भुमध्य रेखा पर 55° का है । 60 अंशों के अन्तराल पर 6 उपग्रहीय कक्ष स्थापित किये गये है । इन कक्षों की सहायता से 6 घुमाव तल तैयार किये गये है । सभी उपग्रह पृथ्वी का मध्य बिन्दु है । इस कक्ष में चार उपग्रह होते है जो अपने कक्ष में निरन्तर घुमते रहते है । पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में इन्हें 12 घंटे का समय लगता है । उपग्रहों का विभिन्न कक्षाओं में वितरण इसलिये किया गया है कि इनका प्रयोग करते समय प्रत्येक स्थान पर कम से कम 4 उपग्रह प्रेक्षण के लिये हर समय उपलब्ध हो सके । इस समय अन्तरिक्ष में 24 उपग्रह उपलब्ध है जो एक पूर्ण प्रणाली के अन्तर्गत कार्य कर रहे है । इन उपग्रहों को तीन प्रकार से विभाजित किया गया है ।

 ( i ) प्रथम प्रभाग – विकास एवं आर एण्ड डी उपग्रह ( Development and R&D Satellite ) 

( ii ) द्वितीय प्रभाग – उत्पादक एवं संचालन उपग्रह ( Production and Operating Satellities ) 

( iii ) तृतीय प्रभाग – पुनर्पूर्ति उपग्रह( Replenishment Satellites ) 

प्रथम प्रभाग के उपग्रहों को 1 से 11 तक नम्बर दिया गया है । इन्हें विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्रयोग के उद्देशय से विकसित किया गया था । 

2. नियन्त्रण प्रभाग ( Control Segment ) :-

             नियन्त्रण प्रभाग पृथ्वी के धरातल से सम्बन्धित है । संसार के कुल पाँच प्रबोधक स्टेशन है जो निरन्तर सभी उपग्रहों की खोज करते है तथा सूचनाओं को एकत्रिक कर मुख्य नियन्त्रण स्टेशन कोलोरेडों को भेजते हैं । प्रबोधक स्टेशन पर आभासी रेन्ज ( Pseudo Range ) सभी दृश्य उपग्रहों को निर्धारित करती है ताकि स्थानीय मौसम सम्बन्धी आँकड़ों के साथ सुचनायें मुख्य नियन्त्रण स्टेशन को भेजी जाती है । मुख्य नियन्त्रण स्टेशन पर प्राप्त आँकडों से उपग्रह पंचांग ( Ephemeris ) का पूर्व परिकलन ( Compute ) तथा उपग्रहीय घड़ी का मिलान किया जाता है। तत्पश्चात नौसंचलन आँकड़ों या सन्देशों को तैयार किया जाता है । 

3. उपयोगकर्ता प्रभाग ( User Segment ) :-

                  यह एन्टीना एवं रेडियो रिसीवर का है जो कि उपग्रहों द्वारा संचारित सूचनाओं को विद्युत तरंगों के रूप में प्राप्त करते है । संकलन करने के बाद यह तरंगें, स्थिति एवं संचालन सूचना में परिवर्तन की जाती है । प्रत्येक प्रयोगकर्ता के पास एक जी.पी.एस रिसीवर होता है जिस पर एन्टीना तथा विद्युत पूर्ति इकाई ( Power Supply Unit ) लगी होती हैं। ज्योडेटिक रिसीवर पर पर्याप्त चैनल होते है। जिसे सभी उपलब्ध उपग्रहों से आँकडों को एकत्रित किया जा सके । 

जी.पी.एस. रिसीवर ( GPS Receiver ) 

जी.पी.एस. संकेतों के उपयोग के लिये एक पर्याप्त रिसीवर की आवश्यकता होती है जिससे नौ संचालन या ज्योडेटिक स्थितियों का निर्धारण किया जाता है । जी.पी.एस. का उपयोग कई क्षेत्रों में विस्तृत होता जा रहा है । व्यक्तिगत मनोरंजन से लेकर समय तथा किसी स्थिति का निर्धारण करने में इसका उपयोग निरन्तर बढ़ रहा है जिससे कई उपयोगों की पूर्ति की जा सकती है ।

 

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जी.पी.एस. रिसीवर के मुख्य अंग ( Main Components of GPS Receiver ) 

जी.पी.एस. रिसीवर के आवश्यक अंग इस प्रकार है :- 

( a ) एन्टीना ( Antenna )

( b ) रेडियों आवृत्ति अनुभाग ( Radio Frequency Section ) 

( c ) नौसंखलन के लिये सूक्ष्म संसाधक ( Microprocessor for Navigation Solution ) 

( d ) परिशुद्ध प्रदोलक ( Precision Oscillator ) 

( e ) विद्युत पूर्ति इकाई ( Power Supply Unit ) 

( f ) स्मरण एवं आँकड़ा संग्रह ( Memory and Data Storage ) 

( g ) उपयोगकर्ता अन्तरापृष्ठ आदेश एवं प्रसारण चैनल ( User Interface , Command and Display Channel ) 

भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) के लाभ :- 

1 . किसी व्यक्ति , वाहन , स्थान अथवा अन्य वस्तु की सही स्थिति का ज्ञान होता है । 

2 . अंतद्देश्य के बिना भी दो स्थानों की सही दूरी नापी जा सकती है । 

3 . स्थिति ज्ञान के लिए भूमि पर किसी बड़े उपकरण को नहीं लगाना पड़ता । 

4 . रिसीवर यंत्र तीव्रता से सभी गणना कर देते है । 

5 . जी.पी.एस के द्वारा वायुयान और जलयान में मार्ग निर्देशन ( Navigation ) सरल , सहज और सुरक्षित हो गया है । 

6 . भारत और अन्य कई विकसित देशों में तो पर्यटक , अनुरोध सैरकर्ता ( Hitech Hiker ) और पुलिस भी जी.पी.एस का उपयोग मार्ग निर्देशन और निर्धारण के लिए करने लगे है । 

7. वायुयान जी.पी.एस. की मदद से हवाई अड्डों पर कुहरे , अंधेरे तथा खराब मौसम से भी अंध अवतरण ( Blind Landing ) कर सकते है । 

8. सर्वेक्षण के समय वस्तुओं ( Objects ) की सही स्थिति का ज्ञान जी.पी.एस. के द्वारा किया जाता है तथा पुराने मानचित्रों में छूट गर्स अशुद्धियों को सुधारा जाता है । 

9. पुलों , बांधों , महामर्गो , रेलमार्गो , भवनों के निर्माण , पाईप लाईन बिछाने और विद्युत पारेषण लाइने बनाने में सहायक है । 

10. मौसम के पूर्वानुमान में सहायक सिद्ध हो रहे है ।

भारत में जी.पी.एस. का उपयोग :-

 भारत में सर्वेक्षण , खनन , मार्ग निर्देशन , इंजीनियरी , निर्माण , वायुयान और जलयानों के मार्ग निर्देशन तथा सेन्य अभियानों में किया जाने लगा है । भारतीय सर्वेक्षण विभाग जी.पी.एस. की सहायता से सम्पूर्ण भारत का चरणबद्ध तरीके से पुनसर्वेक्षण कर रहा है । 

जी.पी.एस. का संक्षिप्त इतिहास :-

 लगभग एक दशक पहले के खाड़ी युद्ध (इराक) पर अमेरिकी हमले के दौरान जी.पी.एस. का भरपूर उपयोग किया गया था। सन् 1994 में इस तंत्र की परिपूर्णता और शुद्धता विकसित हो गई थी। अब रूस ने ग्लोनास ( Glonass ) के नाम से स्थिति निर्धारण तंत्र विकसित करके उनका उपयोग प्रारम्भ कर दिया है । यही नहीं यूरोपीय संघ ने भी अपना ऐसा ही तंत्र गैलीलियो के नाम से विकसित कर कार्य करना प्राम्भ कर दिया है । 

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सारांश ( Summary ) 

किसी वस्तु के सम्पर्क में आये बिना उसके बारे में सूचना प्राप्त करना दूर संवेदन कहलाता है । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् अन्तरिक्ष युग का प्रारम्भ हुआ । सन् 1957 में रूस द्वारा स्पूतनिक-1 उपग्रह अन्तरिक्ष मे छोड़ा गया । 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के यूरी गागरीन को विश्व का प्रथम अन्तरिक्ष मानव यात्री बनने का गौरव प्राप्त किया । धरातल की सूचनाओं के क्षेत्रीय विस्तार, अपने पुनार्वृत्ति गुण तथा वास्तविक काल के आंकड़ों / सूचनाओं के एकत्रण के कारण विभिन्न विषयों में समस्याओं का समाधान भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (GPS) द्वारा सम्भव है । दो स्थानों की सही दूरी मापन में भी जी.पी.एस. सहायक होता है । 


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