हमारा राजस्थान आजीविका के प्रमुख क्षेत्र

    आजीविका के प्रमुख क्षेत्र – मनुष्य अपने जीवन निर्वाह के लिए जो कार्य करते हैं, यह क्षेत्र विशेष के प्राकृतिक संसाधन , जलवायु व आर्थिक , सामाजिक , शैक्षिक स्तर पर निर्भर करता है । राजस्थान खनिज सम्पदा में एक सम्पन्न राज्य है । साथ ही यहाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है । अतः यहाँ के लोग प्रमुखतः कृषि , पशुपालन व खनन कार्य करते हैं । आर्थिक विकास के साथ – साथ पर्यटन , उद्योग व सेवा क्षेत्र में कार्य करने वालों की संख्या बढ़ी है ।

🌾 राजस्थान में कृषि 

        राजस्थान का 60 प्रतिशत भूभाग मरुस्थल है । यहाँ अधिकाश कृषि मानसून की वर्षा पर निर्भर है । अतः राजस्थान की कृषि को ” मानसून का जुआ ” कहा जाता है । यहाँ वर्षभर में तीन प्रकार की फसलें होती हैं :-

 

  1. रबी की फसल : – रबी की फसल की बुवाई सर्दी प्रारम्भ होने पर की जाती है तथा गर्मी प्रारम्भ होने पर मार्च – अप्रेल में कटाई की जाती है । इसमें गेहूँ , जौ , चावल , चना , सरसों आदि की फसलें प्रमुख हैं ।
  2. खरीफ की फसल :- खरीफ की फसल वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में बोई जाती है व शीत ऋतु प्रारम्भ होने से पहले काट ली जाती है । इसमें मुख्य फसलें ज्वार , बाजरा , मूंग , कपास , गन्ना , मूंगफली , तिल आदि है ।
  3. जायद की फसल : – यह फसल मार्च – अप्रेल से जून – जुलाई तक ली जाती है । इस समय खरबूज , तरबूज , ककड़ी आदि उगाये जाते हैं ।

राजस्थान में कृषि के पिछड़ेपन के कारण 

  1. प्राकृतिक कारण :-  बार – बार सूखा, रेतीली, ऊसर व बंजर भूमि, मृदा अपरदन ।
  2. आर्थिक कारण :-  किसानों की निर्धनता, उपज का कम मूल्य, पुरानी तकनीक से कृषि, सिंचाई के साधनों की कमी, उत्तम खाद – बीज की कमी ।
  3. संगठनात्मक कारण  :-  भू – स्वामित्व समस्या, नीतिगत कमजोरियाँ । 

राजस्थान में कृषि की विशेषताएँ

  1. देश में सर्वाधिक बाजरा, सरसों व ग्वार का उत्पादन राजस्थान में होता है ।
  2. उत्तर प्रदेश के पश्चात राजस्थान भारत में जौ च चना उत्पादन में दूसरे स्थान पर है ।
  3. पश्चिमी राजस्थान में बाजरा सर्वाधिक बोया जाने वाला खाद्यान्न है ।
  4. दक्षिणी राजस्थान में खाद्यान्न फसलों में मक्का की खेती प्रमुख है ।
  5. राज्य में श्रीगंगानगर जिला गेहूँ उत्पादन में प्रथम स्थान पर है ।
  6. पश्चिमी राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर से करीब 17.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का विकास हुआ है ।
  7. सिर्फ 35 प्रतिशत फसली क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है । कुल सिंचित क्षेत्र के 66 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई कुएँ व ट्यूबवेल से होती है । नहरों द्वारा करीब 33 प्रतिशत सिंचाई होती है । तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र बहुत कम है ।

 

🐄 राजस्थान में पशुपालन

        राज्य के मरुस्थलीय और पर्वतीय क्षेत्र में कम वर्षा व कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पशुपालन ही जीविकोपार्जन का सहज साधन है । इन क्षेत्रों में कृषि के अवसर तो सीमित हैं ही , औद्योगिक रोजगार के अवसर भी पर्याप्त नहीं हैं । ऐसी स्थिति में ग्रामीण लोगों को पशुपालन से रोजगार के साथ – साथ आवश्यकता की कई वस्तुएँ प्राप्त हो जाती है ।

           पशुपालन की दृष्टि से राजस्थान का देश में दूसरा स्थान है । राजस्थान में भारत का लगभग 11.27 प्रतिशत पशुधन पाया जाता है । मरुस्थलीय और पर्वतीय क्षेत्र के अलावा सम्पूर्ण राजस्थान में अधिकतर किसान खेती के साथ – साथ पशुपालन भी करते हैं ।

राजस्थान के पालतू पशु

        पशुपालन की दृष्टि से राजस्थान में गाय 🐄, बैल 🐂, भैंस 🐃, बकरियाँ 🐐, ऊँट 🐪, भेड 🐑, घोडे 🐎, गधे 🐴आदि पाले जाते हैं । राजस्थान के मरुस्थलीय प्रदेश में ऊँट, बकरियाँ व भेड़ पालन बहुतायत से किया जाता है ।

         राजस्थान की 20 वीं पशुगणना ( 2019 ) के अनुसार ऊँट व गधों की संख्या में चिंताजनक कमी हुई है । भेड़ , बकरियों की संख्या में भी कमी आई है । गाय व भैंसों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है । राजस्थान में मुर्गी पालन ( पोल्ट्री फार्मिंग ) का व्यवसाय भी तेजी से बढ़ रहा है ।

पशुपालन से लाभ

       पशुपालन से ग्रामीण लोगों को रोजगार मिलता है एवं पशुओं पर आधारित उद्योगों का विकास होता है । इस व्यवसाय से पौष्टिक आहार – घी , मक्खन , छाछ , दही आदि की प्राप्ति होती है । डेयरी , ऊन , परिवहन , चमड़ा , चारा आदि उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन मिलता है । इसके अलावा बड़े पैमाने पर पशु उत्पादन का विदेशों को निर्यात भी किया जाता है ।

पशुपालन में समस्याएँ

  1. पशुपालक निर्धनता के कारण पशुओं को पौष्टिक आहार व सही इलाज नहीं दे पाते हैं ।
  2. पशुपालकों के पास कमजोर व घटिया नस्ल के पशु हैं ।
  3. चारागाहों के लिए पर्याप्त भूमि की कमी है ।
  4. परम्परागत तरीकों से पशुपालन करते हैं । पशुपालन में व्यावसायिक दृष्टिकोण की कमी है।
  5. बार – बार के सूखे व अकाल से पशुधन कम होता जा रहा है ।

 

🗻 राजस्थान में खनन

     राजस्थान में कई विभिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं । इसलिए राजस्थान को “खनिजों का अजायबघर” कहा जाता है । राजस्थान में लगभग 67 प्रकार के खनिजों का खनन होता है।

  • राजस्थान में सर्वाधिक उपलब्ध खनिज रॉक फास्फेट है ।
  • सीसा , जस्ता , जिप्सम , चाँदी , संगमरमर आदि के उत्पादन में राजस्थान का एकाधिकार है।
  • चूना पत्थर , टंगस्टन , अभ्रक , ताँबा , इमारती पत्थर अन्य महत्त्वपूर्ण खनिज है ।

        राजस्थान में खनिजों की उपलब्धता को देखते हुए खनिज आधारित नए उद्योगों की स्थापना के काफी अवसर हैं । यही कारण है कि राज्य सरकार प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने पर ध्यान दे रही है ।

          राजस्थान में अवैध बजरी खनन से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या निरन्तर बढ़ रही है । अवैध खनन से, अरावली पर्वत माला की कई पहाड़ियाँ पूरी तरह से गायब हो चुकी है। इसके गम्भीर पर्यावरणीय दुष्परिणाम हो सकते हैं । 

 शब्दावली

  1. आजीविका   :-  रोजगार, जीवन निर्वाह हेतु किया जाने वाला कार्य ।
  2. अतिवृष्टि       :-  अत्यधिक वर्षा ।
  3. निर्यात          :-  देश से माल बाहर अन्य देशों को भेजना ।

अभ्यास प्रश्न

1.  रबी की फसल की प्रमुख फसल कौनसी है ?

     ( अ ) मक्का ( ब ) बाजरा ( स ) कपास ( द ) गेहूँ 

2.  मरुस्थलीय राजस्थान में सर्वाधिक बोया जाने वाला खाद्यान्न कौनसा है ?

     ( अ ) गेहूँ ( ब ) बाजरा ( स ) चावल ( द ) मक्का 

3.  रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

      (१) खरीफ की फसल ………… ऋतु के प्रारम्भ में बोई जाती है ।

      (२) बीसवीं पशुगणना के अनुसार राजस्थान में ……….. व ………. पशु की संख्या में चिन्ताजनक गिरावट हुई है ।

4.   पशुपालन से क्या लाभ है ?

5.   किन खनिजों में राजस्थान का एकाधिकार है ?

6.   पशुपालन क्षेत्र की दो प्रमुख समस्याएँ बताइए।

7.   राजस्थान में अवैध खनन से क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं ? 


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