टॉलेमी का भूगोल में योगदान

टॉलेमी का भूगोल में योगदान 

 

      क्लॉडियस टॉलेमी के जन्मस्थान के सम्बन्ध में विद्वानों के विचार में पर्याप्त मतभेद पाये जाते हैं। सामान्यतया विभिन्न इतिहासकारों के मतानुसार टॉलेमी का जन्म 90 ई. में टॉलेमस हरसी नामक स्थान पर हुआ माना जाता है। अन्य इतिहासकारों के अनुसार टॉलमी का जन्म स्थान पेल्यूसियस नगर को माना जाता है। सम्भवतया टॉलेमी का जन्म सिकंदरिया (मिश्र) के टॉलमी गाँव में हुआ जिसके आधार पर इसका नाम टॉलेमी पड़ा। टॉलेमी का शिक्षण कार्य सिकंदरिया में ही पूर्ण हुआ। टॉलेमी की रचनाओं से पता चलता है कि उसकी गणित, खगोल और भूगोल के अध्यापन कार्य में विशेष रुचि थी। टॉलेमी ने अपना अध्यापन एवं वर्णन सम्बन्धी कार्य सिकंदरिया के पुस्तकालय में रहकर ही पूर्ण किया।

      प्राचीन भूगोल में टॉलेमी एक महान विभूति था। जिसका खगोलशास्त्र, भूगोल और मानचित्र कला में अविस्मरणीय योगदान रहा। उसके अनुसार भूगोल से आशय मुख्यतः मानचित्रों द्वारा क्षेत्रीय अध्ययन करना है।

✍️ टॉलेमी के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ

>>  गाइड टू ज्यॉग्राफी 

        ज्यॉग्राफी की यह ग्रंथमाला आठ खण्डों में प्रकाशित की गई थी। इसमें प्रमुख सैद्धान्तिक नियमों का वर्णन खण्ड एक में किया गया है। खण्ड दो से सात तक टॉलमी के समय के बसे संसार के ज्ञात भाग के लगभग 8,000 स्थानों के नाम, स्थिति आदि का वर्णन अक्षांश व देशान्तर रेखाओं की सहायता से किया गया है। आठवां खण्ड अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है जिसमें मानचित्र कला के विभिन्न नियमों व सिद्धान्तों का सैद्धान्तिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। अर्थात् टॉलेमी ने अपने ग्रन्थ में मानचित्रकला, शंक्वाकार प्रक्षेप, अक्षांश-देशान्तर रेखाएँ ज्ञात करने की विधि, ज्ञात विश्व का मानचित्र, वर्णात्मक भूगोल पर अधिक जोर देना आदि को सम्मिलित किया। उसने शंक्वाकार प्रक्षेप में संशोधन किया तथा ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए त्रिविम प्रक्षेप का प्रयोग किया। उसकी ग्रन्थमाला ज्योग्राफिया में एक संसार का तथा 26 अन्य क्षेत्रों के मानचित्र हैं। इन मानचित्रों से ही सर्वप्रथम संसार की सामान्य मानचित्रावली तैयार हुई थी।

>> अल्माजेस्ट

      टॉलेमी के इस ग्रन्थ में गणित और खगोलकी, विविध यंत्र, नक्षत्र आदि को सम्मिलित किया है।

>> ग्रहीय सिद्धान्त

       इसमें ग्रहों के आपसी सम्बन्धों, गतियों और उनके मध्य एक-दूसरे के बीच स्थित दूरियों आदि से सम्बन्धित परिकल्पनाओं का वर्णन किया गया है। टॉलेमी ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केन्द्र में माना तथा बताया सभी आकाशीय पिण्ड इसकी परिक्रमा करते हैं जो 15वीं शताब्दी तक यूरोप में सत्य माना जाता रहा। 

>> एनेलिमा

      नक्षत्र विज्ञान तथा प्रेक्षकों की परिकल्पना आदि का सैद्धान्तिक वर्णन इसमें किया गया है।

 

✍️ टॉलेमी का भूगोल में योगदान

     टॉलेमी का झुकाव प्रारम्भ से ही भौगोलिक अन्वेषण कार्य की ओर अधिक था। इसका महत्त्वपूर्ण कार्य खगोलीय गणितीय भूगोल तथा सामान्य भूगोल आदि पर है।

>> टॉलेमी ने निम्नांकित विषयों पर अधिक बल दिया

(1) खगोलशास्त्र – इस सम्बन्ध में उसके विचार अरस्तू की भाँति थे। वह यह मानता था कि पृथ्वी की आकृति गोलाभ की भाँति है और यह प्लेट के समान चपटी नहीं है। उसने पृथ्वी पर अक्षांश-देशान्तर रेखाओं का भी निर्धारण किया है और पृथ्वी की परिधि मापने के लिए हिप्पारकस की विधि को अपनाया। उन्होंने यह माना कि गोल वृत्त में 360° के कोण होते हैं। परन्तु उसने 1° के कोण के बीच की परिधि दूरी को 600 स्टेडिया की बजाय 500 स्टेडिया ही माना। इस प्रकार उन्होंने भूमध्यरेखीय परिधि को 360×500 = 1,80,000 स्टेडिया ज्ञात किया जो वास्तविक परिधि से लगभग 7000 स्टेडिया कम थी। इस भूल के कारण उसके सभी मानचित्र छोटे बने। उसने इरेटोस्थनीज की भाँति चार मुख्य अक्षांश निर्धारित किये। ये अक्षांश भूमध्य रेखा (0°), मेरो का अक्षांश (15° उ) रोड का अक्षांश (30° उ) थूले का अक्षांश (60° उ) थे। उसकी गणना का आधार प्रमुख रोड अक्षांश था जिसे उसने स्पेन के सैंट विसैन्ट अन्तरीप से जिब्राल्टर, रोड होता हुआ ईसस की खाड़ी तक दिखाया है।

(2) मानचित्रण – टॉलेमी ने एक प्रधान अक्षांश वाला शंकु प्रक्षेप पर विश्व का मानचित्र बनाया। उसका विचार था कि पृथ्वी जैसी गोलाभ वस्तु के चित्रण के दो ही तरीके हो सकते हैं। पहला तरीका यह हो सकता है कि उसे ठोस गोल पिण्ड की भाँति ज्यों का त्यों दिखाया जाए। परन्तु इस तरीके में गोलाभ की आकृति बहुत बड़ी हो जाएगी तथा उस पर विश्व के देशों का चित्रण व उन्हें देखना कठिन होगा। दूसरा तरीका चपटे कागज पर मानचित्र हो सकता है। इसके लिए गणितीय आधार मानना आवश्यक है।

 

>> विश्व मानचित्र बनाने के लिए उसने निम्न मान्यताएँ रखीं

  1. पृथ्वी की भूमध्यरेखीय परिधि 18,000 मील है। 
  2. भूमध्य रेखा सबसे बड़ा अक्षांश है। इसके उत्तर में अन्य अक्षांश छोटे होते जाते हैं और उन्हें वृत्ताकार, चापाकार के रूप में दिखाया।
  3. पृथ्वी पर प्रमख अक्षांश रोड माना।
  4. उत्तरी ध्रुव 90° अक्षांश और एक बिन्दु मात्र है।
  5. उत्तरी ध्रुव पर देशान्तर मिल जाते हैं इस कारण भूमध्य रेखा पर देशान्तरों की दूरी सर्वाधिक होती है। 

     इन आधारों पर टॉलेमी ने आधे विश्व का मानचित्र बनाया जिसमें 180° देशान्तर 68° उत्तरी अक्षांश ही दिखलाए गए थे। भूमध्य रेखा के दक्षिण में केवल 15° अक्षांश ही दिखाए। उसने देश, पर्वत, नदियाँ आदि दिखाये। मनुष्य द्वारा आवासित क्षेत्रों के विस्तृत चित्रण के लिए उसने वृत्त के चतुर्थांश का ही उपयोग किया। उसके द्वारा चित्रित प्रक्षेप को रूपान्तरित गोलक प्रक्षेप भी कह सकते हैं।

(3) प्रादेशिक भूगोल – टॉलेमी के समय ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, मध्य यूरोप, इटली आदि यूरोपियन देशों का अच्छा ज्ञान था क्योंकि रोमन सेनाओं ने इन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर ली थी। उसे अफ्रीका व एशिया के मुख्य देशों नदियों, नगरों व पर्वतों का भी मालूम था। इनका उसने मानचित्रण भी किया। 

>> टॉलेमी ने विभिन्न महाद्वीपों की विभिन्न प्रादेशिक विविधताओं का वर्णन इस प्रकार किया है-

(i) यूरोप महाद्वीप की प्रादेशिक विविधतायें 

          ‘ज्योग्राफिया’ नामक ग्रन्थ के दूसरे खण्ड में ब्रिटिश द्वीप समूह का विस्तृत वर्णन मिलता है। उसने अग्रीकोला नामक रोमन सेनापति की इंग्लैण्ड और आयरलैण्ड द्वीपों की यात्राओं को आधार मानकर ब्रिटिश द्वीप समूह का मानचित्र बनाया जिसमें थेम्स नदी, इंग्लिश चैनल, सोल्वे नदी, क्लाइड नदी, वेल्स का पश्चमी तट, कोर्नवाल क्षेत्र आदि सही दिखाए। यह नक्शा अक्षांश-देशान्तरों के रेखाजाल पर बना था। उसने आयरलैण्ड को वास्तविकता से अधिक उत्तर में दिखाया तथा अन्य कई अशुद्धियाँ थीं। उसे गॉल (फ्रांस) के बारे में भी विस्तृत जानकारी थी। टॉलमी ने यहाँ के मुख्य नगरों व आवागमन के साधनों का वर्णन किया है। उस समय स्पेन की भी जानकारी हो चुकी थी। इस क्षेत्र को हिस्पेनिया कहते थे। उसने यहाँ की प्रमुख नदियों में से टेगस, ग्वाडलिक्कर, ग्वाडियाना, ग्वाडालेवियर आदि का वर्णन किया। उसने पिरेनीज जैसे मुख्य पर्वत व जिब्राल्टर द्वीप का भी वर्णन किया है।

        टॉलेमी ने मध्य यूरोप का भी वर्णन किया है जिसे वर्तमान में जर्मनी कहा जाता है। यहाँ की मुख्य नदी राईन बताई गई। यूरोपियन नदियों के उद्गम स्थान को उसने कार्पेथियन पर्वत क्षेत्र माना जो कि सही है। पूर्वी यूरोप का ज्ञान उसे कम था। उसे पूर्व के भूगोलवेत्ताओं की तरह आजोव, सागर, कालासागर, डॉन नदी, वोल्गा नदी आदि का मालूम था। 

       टॉलेमी को केस्पियन सागर की सही स्थिति का ज्ञान था और यह भी बताया कि यह एक झीलनुमा आन्तरिक सागर है जिसमें वोल्गा नदी का मुहाना है। परन्तु अपने मानचित्र में उसने इसका उत्तर-दक्षिण की बजाय पूर्व-पश्चिम अधिक दिखाया है जो कि अशुद्ध है। यह अशुद्धि उसके प्रारम्भिक पृथ्वी की परिधि को अशुद्ध मापन करने से हुई।

        कालासागर के दक्षिणी भागों में उसने एशिया माइनर, यूनान व इसके समीपस्थ द्वीपों का सही मानचित्रण व प्रादेशिक वर्णन किया। उसने भूमध्य सागर के पश्चिम-पूर्व विस्तार को वास्तविकता से 20% कम लिया। इसलिये इटली, एड्रियाटिक सागर व अन्य द्वीप उसके मानचित्र में बहुत संकुचित दिखाई देने लगे जो उसकी बड़ी गलती थी।

(ii) एशिया महाद्वीप की प्रादेशिक विविधतायें 

         टॉलमी को मध्य एशिया, चीन व भारत के बारे में अपने पर्व भूगोलवेत्ताओं की अपेक्षा अधिक जानकारी थी। उसने बताया कि मध्य एशिया और स्कीथिया क्षेत्र में इनोस (अल्टाई) पर्वत है जिसके ढालों पर अबी, हिप्पोफागी, इसीडोन, अलानी आदि आदि प्रजातियाँ रहती हैं। उसने चीन को रेशम उत्पादन करने वाला देश लिखा। उसने बताया कि चीन में दो प्रमुख नदियाँ हैं जिन्हें इकार्डस और बैंटीमस कहते हैं। ये पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई सागर में गिरती हैं। सम्भवतः ये नदियाँ ह्वांगहो और यांगटीसी हैं। उसे अरल सागर का ज्ञान नहीं था। इसी कारण उसने एशिया की दो मुख्य नदियों आमू-दरया और सिर-दरया को अरल सागर की बजाय कैस्पियन सागर में गिरता दिखाया है।

         भारत के बारे में टॉलमी को सीमित ज्ञान था। उसने भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति को नहीं दिखाया। यहाँ की प्रमुख दो नदियों गंगा व सिंधु को हिमालय से निकलता दिखाया। भारत के पूर्व में उसने ‘रजत भूमि’ होने का वर्णन किया है। सम्भवतः यह मलय प्रदेश है जहाँ की चाँदी और जस्ते का खनन अनादि काल से हो रहा है। एशिया की पश्चिमी सीमा पर लाल सागर की स्थिति बताई गई। इसके पूर्व में अरब का रेगिस्तान, फारस की खाड़ी व कार्मेनिया प्रदेश बताये गये। कार्मेनिया क्षेत्र के उत्तर-पूर्व में एक पर्वत श्रृंखला का होना भी बतलाया गया है जो कि वर्तमान हिन्दुकुश है।

(iii) अफ्रीका महाद्वीप की प्रादेशिक विविधतायें

          टॉलमी के समय तक अफ्रीका के उत्तरी भागों की जानकारी पहले की अपेक्षा अधिक हो गई थी। परन्तु इस महाद्वीप के दक्षिणी सिरे का ज्ञान नहीं हो पाया था। उसने उत्तरी अफ्रीका तट पर सिरेनेका और मॉरीटानिया क्षेत्रों का वर्णन किया। उसने नूबी, निगिरा व इसकी सहायक नदियों के आन्तरिक जल- अपवाह क्षेत्रों का वर्णन किया तथा सहारा मरुस्थल में स्थित कुछ मरुद्यानों की कृषि तथा लोगों का रहन-सहन, उद्योग आदि बताए। उस समय एक महत्त्वपूर्ण भौगोलिक नील नदी के स्रोत का पता लगाने की थी जिसे टॉलमी ने नीरो नामक अभियान दल के नेता द्वारा लिखी गई डायरी से पूरा किया। उसने बताया कि नील नदी की दो मुख्य सहायक नदियाँ हैं जो नीली नील व श्वेत नील कहलाती हैं। नीली नील का उद्गम अबीसीनिया उच्च प्रदेश में स्थित कोलो झील से है जो कि सही है। श्वेत नील का उद्गम चंद्र पर्वतो से है। जो निकलकर दलदली भागों में बहती हुई कुछ दूर जाकर नीली नील से मिलकर मुख्य नील नदी बनाती है। टॉलमी को पश्चिमी अफ्रीकन तट की जानकारी सीमित थी। उसने इस तट पर स्टेचिर और डेरेडस नामक दो नदियों का प्रवाहित होना बताया है। ये सम्भवतः वर्तमान गैम्बिया और सेनेगल नदियाँ हैं।

(iv) अन्य महाद्वीप

        अफ्रीका के दक्षिण में उसने टैरा इन्कोगनिटा अर्थात् अज्ञात महाद्वीप का होना बताया है। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि उसका तात्पर्य अन्टार्कटिक या आस्ट्रेलिया महाद्वीप से रहा हो। फिर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि उसे यह आभास था कि भूमध्य रेखा के दक्षिण में भी उत्तर की भाँति कुछ महाद्वीप होने चाहिए। ये महाद्वीप उसकी मृत्यु के सोलह सौ वर्ष बाद खोजे गये।

       इस प्रकार टॉलमी महान् प्राचीन भूगोलशास्त्री था। उसके बाद रोमन और प्रीक भूगोलशास्त्रियों में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जो उसके समान हो। टॉलमी के बाद रोमन साम्राज्य का पतन होने लगा था।



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