स्ट्रैबो का भूगोल में योगदान

स्ट्रैबो का भूगोल में योगदान

      स्ट्रैबो का जन्म ईसा से 64 वर्ष पूर्व टर्की के कालासागर तटवर्ती क्षेत्र में अमेशिया नगर में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा नीसा नगर में एरेस्टोडोमस नाम विद्वान की देखरेख में हुई, बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए कोरिन्थ नगर में आ गये। स्ट्रैबो ने भूमध्यसागरीय क्षेत्रों का अधिक भ्रमण किया। उसे कालासागर के तटवर्ती भागों का काफी ज्ञान था। इसी ज्ञान के आधार पर उसने अनेक पुस्तकें लिखीं जो यूनानी भूगोलवेत्ताओं के ज्ञान का आधार बनीं। स्ट्रैबो ने उस समय के ज्ञात संसार के ‘ऐतिहासिक वृत्त’ को 43 खण्डों में लिखा। भौगोलिक ज्ञान का संकलन ‘भौगोलिक शोध प्रबन्ध‘ में 17 खण्डों में लिखा। स्ट्रैबो एक ऐतिहासिक भूगोलवेत्ता था जिसने विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दिया।

✍️ स्ट्रैबो का गणितीय भूगोल में योगदान

        स्ट्रैबो ने हिप्पारकस के भौगोलिक ज्ञान को आधार माना तथा बताया कि उसके द्वारा दिये गये अक्षांश एवं देशान्तर मापन के तरीकों के बिना भौगोलिक ज्ञान की वृद्धि सम्भव नहीं थी। वह मानता था कि पृथ्वी फुटबाल की तरह गोल है तथा ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित है। इस पर दिन-रात और मौसमी परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक एवं वार्षिक गति के कारण होते हैं। उसने मौसमी परिवर्तनों के आधार पर पृथ्वी को 5 जलवायु प्रदेशों में बाँटा। उसे भूमध्य रेखा, कर्क रेखा, मकर रेखा तथा आर्कटिक और अन्टार्कटिक वृत्तों का ज्ञान था। स्ट्रैबो ने पृथ्वी को 360° में विभाजित किया था तथा प्रत्येक अंश के मध्य की दूरी लगभग 700 स्टेडिया के बराबर निर्धारित की थी।

✍️ स्ट्रैबो का भौतिक भूगोल में योगदान

        स्ट्रैबो ने बताया कि भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी विध्वंसकारी घटनाओं के कारण ही पृथ्वी पर कहीं पहाड़, कहीं मैदान, कहीं पठार आदि हैं। उसे कालासागरी क्षेत्रों का अच्छा ज्ञान था क्योंकि वह इसी क्षेत्र का रहने वाला था। उसने इस क्षेत्र के पर्वतों, भूमि की उर्वरता, खनिज संसाधनों का विस्तृत अध्ययन कर विस्तारपूर्वक वर्णन किया। उसे आल्पस, पिरेनीज, काकेशस, टॉरस, पोटस आदि पर्वतों की जानकारी थी।

✍️ स्ट्रैबो का प्रादेशिक भूगोल में योगदान

       स्ट्रैबो एक महान् प्रादेशिक भूगोलवेत्ता था। उसने अपने समय के ज्ञात संसार के विभिन्न देशों का प्रादेशिक भूगोल लिखा था। स्ट्रैबो ने अपने भौगोलिक विश्वकोश में भारत, यूनान, सीरिया, दजला फरात, पर्शिया, एशिया माइनर, इटली, स्पेन, यूरोप, अफ्रीका आदि देशों का प्रादेशिक भूगोल अपने भौगोलिक ग्रंथ में लिखा है। स्ट्रैबो को विश्व के उस समय के ज्ञात भाग की विस्तृत जानकारी नहीं थी लेकिन उसने विभिन्न विद्वानों के वर्णनों तथा अन्य स्रोतों से सूचनाएँ प्राप्त कर अज्ञात भागों का वर्णन किया। परन्तु स्ट्रैबो द्वारा रचित भौगोलिक वर्णनों में अनेक गलतियाँ थीं क्योंकि उसने भौगोलिक वर्णन अपनी कल्पनाओं तथा दूसरे मनुष्यों द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर ही किया। स्ट्रैबों की ये मान्यता थी कि पृथ्वी पर स्थित विभिन्न स्थानों में एक स्थान अपनी विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों से दूसरे स्थान से भिन्न होता है अर्थात् विभिन स्थानों में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। अतः स्ट्रैबो अंशतः क्षेत्रीय विभिन्नताओं के बारे में जानकारी रखता था। 

✍️ स्ट्रैबो का भौगोलिक विश्वकोश

       स्ट्रैबो ने भौगोलिक विश्वकोश में भूगोल का विस्तृत एवं व्यापक अध्ययन किया है तथा भूगोल की सभी स्तरों पर विस्तृत व्याख्या की गई है। स्ट्रैबो ने अपने भौगोलिक विश्वकोष की रचना यूनानी भाषा में की थी तथा यह ग्रन्थ उसके स्वयं के सम्पूर्ण भौगोलिक ज्ञान के आधार पर लिखता था। स्ट्रैबो ने अपने भौगोलिक विश्वकोश के प्रथम खण्ड में सम्पूर्ण विश्व के उस समय के ज्ञात भागों का वर्णन तथा सामान्य भूगोल की विभिन्न संकल्पनाओं का वर्णन किया। तीसरे से दसवें खण्ड तक यूरोप व इसके विभिन्न देशों का वर्णन ग्यारहवें से सोलहवें खण्ड तक एशिया का और सत्रहवें खण्ड में अफ्रीका का वर्णन है। उन्होंने अपने पूर्ववत् विद्वानों के ज्ञान को आधार मानकर इसकी रचना की।

       मानचित्र निर्माण एवं उसके पठन कार्य में स्ट्रैबो एक प्रमुख भूगोलवेत्ता था। स्ट्रैबो ने सर्वप्रथम भूमध्यसागरीय भाग का मानचित्र बनाया था। स्ट्रैबो ने अपने मानचित्र में आइबेरियन प्रायद्वीप, यूनान तथा एड्रियाटिक सागर के शुद्ध आकार एवं आकृति में परिवर्तन करके अपने अनुभव के आधार पर उनके आकार में परिवर्तन किया। स्ट्रैबो ने यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया के मानचित्रों का निर्माण किया था। लेकिन जो गलतियाँ पूर्व के भूगोलवेत्ताओं ने कीं वही गलतियाँ स्ट्रैबो ने कीं। स्ट्रैबो ने यूरोप महाद्वीप के मानचित्र का निर्माण कुछ परिशुद्धता व परिवर्तन के साथ किया। 

>> भौगोलिक विश्वकोश के 17 खण्ड

खण्ड 1 व 2 – स्ट्रैबो ने अपने ग्रन्थ के प्रथम दो खण्डों में विश्व भूगोल तथा सामान्य भूगोल की विस्तृत जानकारी दी।

तीसरा खण्ड– तीसरे खण्ड में यूरोप के स्पेन गॉल (फ्रांस) और ब्रिटेन का वर्णन किया है। इस लेखन का आधार पोलिबियस तथा पोसीडोनियस की यात्रा का वर्णन था। स्टेबो ने लिखा है कि पिरेनीज पर्वत उत्तर से दक्षिण दिशा में बिस्के की खाड़ी से भूमध्य सागर तक फैले हैं जो कि अशुद्ध है।

चौथा खण्ड– इस खण्ड में ब्रिटेन और गॉल का वर्णन है। उन्होंने लिखा कि फ्रांस की चार नदियाँ गेरुमन, लीगर, सीक्काना और राहिन दक्षिण से उत्तर की ओर एक-दूसरे के समानान्तर बहती हैं तथा ब्रिटेन के सम्मुख महासागर में गिरी हैं जो कि अशुद्ध जानकारी थी। उन्होंने एक बात सही लिखी कि फ्रांस की सभी नदियाँ नौका चालन के योग्य हैं औ इन जलमार्गों से ब्रिटेन के समीप समुद्र में पहुंचा जा सकता है। उन्होंने फ्रांस के लोगों को सभ्य, संस्कृतिमय बताया कहा कि उनकी तुलना में स्पेन या आइबेरियन प्रायद्वीप के लोग अधिक बर्बर व आदिम जातियों के हैं। 

पाँचवाँ व छठा खण्ड– इस खण्ड में इटली व सिसली का वृहद् वर्णन है। उसने इटली की उत्तरी सीमा आल्पस पर्वतों से निधारित की और लिखा कि ये चापाकार रूप में फैले हुए हैं। उसने मानचित्र पर इटली का विस्तार दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम दिशा में प्रायद्वीप के शक्ल का बताया जो उसके पहले के भूगोलवेत्ताओं की अपेक्षा अधिक सही था। उसे कोर्सिका, सार्डीनिया और सिसली द्वीपों का भी मालूम था और उनकी इटली से दूरी भी ज्ञात थी।

सातवाँ खण्ड– इस खण्ड में उसने मध्य यूरोप का वर्णन दिया है जिसमें ईस्टर नदी के उत्तर की ओर राहिन नदी के पूर्वी क्षेत्रों का वर्णन है। इस क्षेत्र को बर्बर जनजातियों का आवास स्थान बताया है। वास्तव में इस क्षेत्र का उसे कोई निजी ज्ञान नहीं था और ये वर्णन सुनी हुई कथाओं पर ही आधारित दिखाई देता है। उस समय रोमन और ग्रीक-वासियों का इस क्षेत्र से व्यापारिक सम्बन्ध भी नहीं था। इस कारण यहाँ की नदियों, पर्वतों और नगरों का वर्णन पूर्णतः अशुद्ध था।

आठवाँ, नवाँ, दसवाँ खण्ड-इन खण्डों में यूनान का वृहत् वर्णन है। इस देश के बारे में पूर्ववत् हुए सभी यूनानी भूगोलवेत्ताओं ने विस्तृत जानकारी दी थी क्योंकि वे इसी देश के रहने वाले थे। परन्तु स्ट्रैबो ने इसका लाभ नहीं उठाया। उसने अपना वर्णन आदिकाल कवि होमर द्वारा दिये गये तथ्यों पर आधारित किया जो ई.पू. आठवीं शताब्दी के थे और बहुत कपोलकल्पित थे। उसने स्वयं यूनान के चार नगर ही देखे थे और अन्य के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए उसे उत्तरी और पश्चिमी यूनान के चूना प्रदेशों के पर्वतों व नदियों का ज्ञान नहीं था।

ग्यारहवें से सोलहवें खण्ड तक इन खण्डों में एशिया व उसके विभिन्न देशों का वर्णन है। इन वर्णनों में उसने सिकंदर महान् द्वारा दी गई जानकारी और नये देशों की खोज का उपयोग नहीं किया। वह स्वंय एशिया के किसी भी भाग में नहीं गया। इसलिए ये वर्णन नाविकों और व्यापारियों द्वारा दिये गये वृत्तान्तों तथा इरेटोस्थनीज द्वारा प्रस्तुत ज्ञान पर आधारित है। उसकी सबसे बड़ी अशुद्धि यह थी कि उसने टारस पर्वतों को पश्चिम-पूर्व दिशा में एशिया के एक छोर से दूसरे छोर तक विस्तृत मान लिया। वास्तव में ये पर्वत केवल एशिया माइनर के दक्षिण में स्थित हैं और बहुत कम ऊँचे हैं। उत्तरी एशिया के चार प्राकृतिक विभाग बताए। ग्यारहवें खण्ड में एशिया के उस क्षेत्र का वर्णन किया जो टैनिस नदी से कैस्पीयर तक विस्तृत है। बारहवें से चौदहवें खण्ड में उत्तरी एशिया के तीन अन्य क्षेत्रों का वर्णन है। इनमें काला सागरी क्षेत्र का वर्णन अधिक विस्तृत और सही है क्योंकि वह इसी क्षेत्र का रहने वाला था। उसने एशिया माइनर के उत्तरी भाग में पौन्टस पर्वतों की स्थिति बतलायी। उसने लिखा कि यह क्षेत्र अधिक वर्षा और उपजाऊ मिट्टी वाला है जहाँ विविध प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। यहाँ माउन्ट आर्जिस नामक ज्वालामुखी है जिसके आसपास लाल मिट्टी मिलती है जिसे साइनोपिक अर्थ कहते हैं। पन्द्रहवें और सोलहवें खण्ड में दक्षिणी एशिया के देशों का वर्णन है। इसमें भारत, फारस, असीरिया, सीरिया, फिलीस्तीन, अरेबिया, मेसोपोटामिया आदि का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है। स्ट्रैबो ने भारत के बारे में लिखा है कि इस देश का क्षेत्रीय विस्तार पश्चिम-पूर्व दिशा में अधिक है, इस कारण उसने अपने नक्शे में कुमारी अन्तरीप को दक्षिण-पूर्व दिशा में दिखाया जो कि अशुद्ध है। उसने गंगा नदी का स्रोत एमोडी पर्वतों को बताया और इसे हिमालय का प्रमुख शिखर लिखा है। इसकी प्रवाह दिशा को पश्चिम से पूर्व तक दिखाया है जो सही है और लिखा यह पूर्वी सागर में गिरती है। सोलहवें खण्ड में भारत और एशिया माइनर के बीच स्थित देशों का वर्णन है। उसने एरियाना क्षेत्र के तीन मुख्य जलवायु क्षेत्रों को बताया। पहले क्षेत्र में मरुस्थली भूमि गर्म जलवायु है। दूसरे क्षेत्र में नदी घाटियों का उपजाऊ मैदान है। तीसरे क्षेत्र में उच्च पहाड़ियाँ हैं जहाँ सदैव बर्फ जमी रहती है।

सत्रहवाँ खण्ड– इस खण्ड में अफ्रीका का वर्णन है। इसमें मुख्य उल्लेख मिश्र और लीबिया का है। स्ट्रैबो ने प्राचीन ग्रीकवासियों के लिखित ग्रन्थों से सिकंदरिया क्षेत्र की जानकारी ली। वह स्वयं नील नदी घाटी में घूमा था और इसके प्रथम जल प्रपात तक पहुँचा था। अफ्रीका का अन्य क्षेत्र लीबिया था जिसके बारे में वह जानता था। यह भूमध्यसागरी तटवर्ती भाग था जिस पर कार्थेज, सीरिन, सिकन्दरिया आदि नगर उस समय मौजूद थे। इस तट के पश्चिमी भाग को उसने मौरिटानिया कहा परन्तु उसे सहारा मरुस्थल व इससे भी अधिक दक्षिणी भागों की जानकारी नहीं थी। उसने इस अज्ञात देश को इथोपिया कहा। अफ्रीका के वर्णन में उसने लीबिया में रहने वाली कुछ जनजातियों के बारे में भी बताया है। उनके अनुसार यहाँ दो मुख्य जातियाँ हैं जो कि फैरुसियन और निग्रेट कहलाती हैं।

      स्ट्रैबो का भौगोलिक ज्ञान अपने पूर्व के भूगोलवेत्ताओं की तुलना में अधिक नहीं था परन्तु उसका महत्त्वपूर्ण योगदान एक क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना है जो उसके पूर्व के भूगोलवेत्ताओं ने नहीं दिया। इसलिए उसे रोमन भूगोल का आधार माना जाता है।


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