Bhagat Singh | भगतसिंह

भारत माँ का सपूत भगतसिंह

भगतसिंह का जीवन परिचय

      अमर शहीद सरदार भगतसिंह के नाम से आज कौन परिचित नहीं है ? भगतसिंह एक महान् क्रान्तिकारी एवं देशभक्त व्यक्ति थे। उनका आदर्श केवल भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाना ही नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद का नाश भी था। भगतसिंह निर्भय एवं साहसी व्यक्ति थे। भगतसिंह का जन्म पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले में बंगा नामक ग्राम में 29 सितम्बर, 1907 को हुआ था, जब वे पैदा हुए तो परिवार में खूब खुशियाँ मनाईं गयी। कहा जाता है कि भगतसिंह के जन्म से पूर्व इनके पिता किशनसिंह एवं चाचा जेल में सजा के दिन काट रहे थे। जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ था। उसी दिन वे दोनों जेल से रिहा हुए थे, यह भी उनके जन्म पर पर अधिक खुखियाँ मनाने विशेष कारण था।

Bhagat Singh

भगतसिंह की शिक्षा

       भगतसिंह का जन्म होने के दिन ही उनके पिता एवं चाचा के रिहा होने के कारण उनकी माँ विद्यावती को इतनी खुशी हुई कि, उन्होंने उनका नाम ‘ भागोंवाला ‘ रख दिया। इसी नाम के पीछे आगे चल कर ‘ भागोंवाला ‘ भगतसिंह कहलाये। कालक्रम के साथ – साथ भगतसिंह बड़े हुए। उनकी शिक्षा – दीक्षा भी आरम्भ हुई। किन्तु भगतसिंह के भाग्य को यह गवारा न था कि वे अधिक पढ़ें। जब वे नवीं में थे, तभी समूचे देश में असहयोग आन्दोलन छिड़ गया। भगतसिंह ने इस आन्दोलन में भाग लिया। अतः उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके कुछ समय बाद वे लाहौर के राष्ट्रीय कॉलेज में दाखिल हो गये। यहाँ से उन्होंने बी.ए. पास किया। भगतसिंह का समूचा परिवार धनी था। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर भक्त था, किन्तु रूढ़िवादी न था। भगतसिंह धार्मिक प्रवृत्ति के जरा भी नहीं थे।

भगतसिंह में देशभक्ति की भावना का उदय

       असहयोग आन्दोलन आरम्भ होने के समय से भगतसिंह को देशभक्ति का शौक पड़ गया था। अपने देश की बिगड़ी हुई हालत का उनके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। असहयोग आन्दोलन के शिथिल पड़ने पर भगतसिंह क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ रहने व हर एक काम में उन्हें सहयोग देने की ठान ली। उस समय पंजाब में ‘ बबर अकाली दल ‘ नामक क्रान्तिकारियों के एक दल की स्थापना हो रही थी। भगतसिंह इस दल में मुख्य व्यक्ति थे। इस दल का कार्य था— लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करना। इस दल में उन्हीं व्यक्तियों को स्थान दिया जाता था जो वीर एवं साहसी होते थे तथा जो अपने आपको देश पर कुर्बान कर देने के लिये सदैव तत्पर रहते थे। में उन्हीं दिनों भगतसिंह के माता – पिता ने उनकी शादी कर देने की सोची। जब भगतसिंह को इस विषय में ज्ञात हुआ, तो उन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि वे आजीवन विवाह नहीं करेंगे एवं अपना सारा जीवन देशभक्ति में ही लगा देंगे। घर वालों ने उनकी इच्छा का विरोध किया।

अन्त में जब उन्होंने देखा कि उनके माता पिता उनकी बात मानने को किसी भी दशा में तैयार नहीं हो रहे हैं, तो उन्होंने घर छोड़ देना ही उचित समझा। वे घर से भागकर कानुपर पहुँचे। कानपुर पहुँचने पर क्रांतिकारी श्री गणेशशंकर विद्यार्थी से उनका परिचय हुआ। उन्होंने श्री विद्यार्थी को अपने विषय में सारी बात बता दी और यह भी कह दिया कि देशभक्ति करना ही उन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया है। चूँकि श्री विद्यार्थी स्वयं भी देशभक्त व्यक्ति थे, अत : उन्होंने भगतसिंह को हर प्रकार से मदद करने का आश्वासन दिया और कहा कि वे उनके भोजन, वस्त्र व रहने के लिए घर आदि हर चीज की व्यवस्था कर देंगे। भगतसिंह यह नहीं चाहते थे कि दूसरे के टुकड़ों पर पलें। अतः उन्होंने इस बात के लिए साफ इन्कार कर दिया और कहा कि वे स्वयं कमाकर खाना ही पसन्द करेंगे। श्री विद्यार्थी ने उनको प्रताप प्रेस में नौकरी दिलवा दी। वे बलवन्त नाम से कार्य करने लगे। इसके बाद भगतसिंह ने और भी कुछ अखबारों के दफ्तरों में नौकरी की। साथ ही उन्होंने कुछ छोटे – मोटे लेख खना आरम्भ किया।

भगतसिंह का क्रांतिकारी गतिविधियों में योगदान

सन् 1924 में ‘ हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ‘ नामक एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना हुई। भगतसिंह इस दल के प्रमुख सदस्य थे। दल का हर एक व्यक्ति साहसी और देशभक्त था।

1925 के अगस्त माह की बात है। एक बार हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों को किसी प्रकार पता चल गया कि कांकोरी के पास से एक ट्रेन सरकारी खजाना लेकर निकलेगी। पता लगते ही पूरा दल हर प्रकार से तैयार होकर उस स्थान की ओर चल दिया, जिधर से ट्रेन गुजरने वाली थी। जब ट्रेन आती दिखाई दी तो सभी लोगों ने ट्रेन को रुकवा दिया और बड़े साहब के साथ सरकारी खजाना लूट लिया गया। दोनों ओर से गोलियाँ भी चलीं, किन्तु दल बच निकला। सरकारी खजाना लुट जाने की घटना से ब्रिटिश सरकार में भारी असन्तोष फैल गया। सरकार ने दुगने जोश के साथ अत्याचार करना आरम्भ किया। खजाना लूटने वाले दल की खोज भी हुई, जिसमें कई व्यक्ति गिरफ्तार हो गये। गिरफ्तार हुए व्यक्तियों को काफी लम्बी – लम्बी सजायें हुईं। भगतसिंह गिरफ्तार होने से बच गए थे। उनके अधिकांश साथियों के गिरफ्तार हो जाने के कारण उनका दल टूट गया, जिसका उनके हृदय पर भारी आघात पहुँचा। उन्होंने अपने दल का फिर से संगठन करना आरम्भ किया और धीरे – धीरे फिर से उनका दल संगठित हो गया। उन्हीं दिनों पंजाब में आन्दोलन आरम्भ हुआ। भगतसिंह ने अपने दल सहित आन्दोलन में पूरे उत्साह से भाग लिया।

कांकोरी में सरकारी खजाना लूटे जाने की घटना से पुलिस पहले ही भगतसिंह को गिरफ्तार करना चाहती थी। इस आन्दोलन में भगतसिंह को दल – बल सहित भाग लेते देख कर वह भी परेशान हो गई। सरकार के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। जनता भी उनका विरोध करने पर पूर्ण रूप से तत्पर थी।

3 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन लाहौर आया। जनता ने कड़ाई के साथ उसका विरोध किया और काले झंडे दिखाकर उसका स्वागत किया। सरकारी आज्ञाओं को तोड़ने का निश्चय किया एवं स्थान – स्थान पर सभाएँ कीं। लोगों ने साइमन के विरोध में खूब भाषण दिए। जुलूस शहर में घूमे जिसमें सौकड़ों व्यक्तियों ने भाग लिया एवं ‘ साइमन वापस जाओ ‘ के नारे लगाए। पुलिस का दमन भी जोरों पर था, किन्तु देशभक्त वीर सब कुछ सहन करते हुए अपने कर्त्तव्य पथ पर निरन्तर अग्रसर हो रहे थे। पुलिस ने लाठी प्रहार करके विरोधियों का दमन करने की चेष्टा की। जनता ने भी इसका जवाब दिया, कई व्यक्ति बुरी तरह आहत हुए। इसी लाठी प्रहार में महान् क्रान्तिकारी देशभक्त लाला लाजपतराय के सीने में जोर की चोट लगी। वे बुरी तरह घायल हुए। इसके बाद उनकी मरहम – पट्टी व दवा – दारू भी की गई, किन्तु चोट शायद फेफड़ों पर पड़ी थी। अतः काफी प्रयास करने के बावजूद भी वे बच नहीं सके और 17 नवम्बर, 1928 को उनका निधन हो गया। इस घटना से जनता में काफी जोश फैल गया। लोगों की बदले की भावना बलवती हो गई। भगतसिंह भी इस घटना से तिलमिला गए। उनके हृदय को भारी आघात पहुँचा। उन्होंने सैंडर्स को लाला लाजपतराय की मृत्यु का कारण समझा। अतः वे अपने दल सहित एक दिन उसके बंगले पर पहुँच गए। उस समय सैंडर्स अपनी मोटर साइकिल पर कहीं जाने को उद्यत हो रहे थे। भगतसिंह ने उन्हें गोली मारकर खत्म कर दिया। फिर वे अपने साथियों के साथ वहाँ से भाग गए। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को अत्यधिक क्रुद्ध कर दिया।

भगतसिंह की गिरफ्तारी के लिए काफी पुलिस का इन्तजाम कर दिया गया। अब पुलिस हर जगह भगतसिंह को तलाश करने लगी। इस कार्य के लिए जासूस भी नियुक्त कर दिए गए। स्टेशन पर भी पुलिस का पहरा लगवा दिया गया।  पुलिस के इतने सर्तक रहने के बावजूद भी भगतसिंह वेश बदल कर ट्रेन में बैठकर लाहौर से फरार हो गए। 

इसके कुछ दिन बाद ही 8 अप्रैल, 1929 को असेम्बली में भारत रक्षा बिल पर बहस छिड़ गई। उसी समय असेम्बली में एक बम आकर गिरा। लोग एकदम भयभीत एवं आश्चर्यचकित हो गए। तभी एक बम और आकर गिरा। हालाँकि जिस स्थान पर बम पड़े थे, वहाँ गड्ढे हो गए थे, किन्तु हानि किसी को भी नहीं पहुँची थी, फिर भी लोग बुरी तरह डर गए थे।  यह बम फेंकने वाले साहसी वीर भगतसिंह थे।

भगतसिंह ने ” इन्कलाब जिन्दाबाद “, ” ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो ” आदि नारे लगाए। उसी समय पुलिस भी आ गई। भगतसिंह व उसके साथी पिस्तौल लिए हुए थे। अपने साथियों से विशेष मदद न मिलने के कारण भगतसिंह ने आप ही पिस्तौल फेंक कर अपने आपको गिरफ्तार करा दिया, किन्तु वे नारे बराबर लगाते रहे। भगतसिंह पर मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी

भगतसिंह की शहादत

क्रान्तिकारियों का मुख्य अड्डा लाहौर था। सरदार भगत सिंह इस दल के नेता थे। कांकोरी में ट्रेन रोककर सरकारी खजाना लूटने वाले अभियुक्तों को जेल से रिहा कराने के प्रयास किए गए, किन्तु आवश्यक साधन न होने के कारण कोई फायदा नहीं हुआ।  इस षड्यन्त्र का भंडाफोड़ हो गया। षड्यन्त्र का केस चला। मजिस्ट्रेट श्रीकृष्ण के सामने यह मुकदमा पेश हुआ। कई दिन तक केस चला एवं मामले पर जोरों से बहस हुई, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ और स्पेशल ट्रिब्यूनल ने भगतसिंह को 7 अक्टूबर, 1930,  को फाँसी की सजा सुना दी। इसके बाद कई बड़े – बड़े व्यक्तियों ने फाँसी न लगने पर जोर दिया और काफी प्रयास किया। महात्मा गाँधी ने भी भगतसिंह को फाँसी से बचाने का पूरा प्रयास किया, किन्तु सब निरर्थक साबित हुआ और अन्त में उस साहसी, वीर, देशभक्त एवं महान् क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह को 23 मार्च, 1931 को फाँसी लग गई।  भगत सिंह के खून का रंग अंग्रेजी साम्राज्यवाद के लिए कलंक और देश के लिए  गौरव बन गया। 

” इन्कलाब जिन्दाबाद “


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