संख्या (Number) | संख्याओं के बारे में चर्चा | What is the Number

    संख्या (Number) आओ संख्याओं के बारे में चर्चा करते हैं ?

    1. दो संख्याओं में वही संख्या बड़ी होती है, जिसमें अंकों की संख्या अधिक होती है। यदि दोनों में अंकों की संख्या समान है, तब हम उनके सबसे बाएँ स्थित अंकों की तुलना करते हैं और जिस संख्या में यह अंक बड़ा होगा वही बड़ी भी होगी। अगर ये अंक भी समान हैं, तब हम इसी प्रकार अंकों की तुलना करते जाते हैं।
    2. दिए गए अंकों से संख्या बनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि संख्या को किन प्रतिबंधों के साथ बनाना है । जैसे अंकों 7, 8, 3 व 5 से, किसी भी अंक को बिना दोहराए, चार अंकों की बड़ी से बड़ी संख्या बनाने के लिए सबसे बड़े अंक 8 को सबसे बाईं ओर रखना होगा और फिर उससे छोटे अंक रखते जाएँगे।
    3. चार अंकों की सबसे छोटी संख्या 1000 है। जिसका अर्थ है कि तीन अंकों की सबसे बड़ी संख्या 999 होगी। पाँच अंकों की सबसे बड़ी संख्या 10,000 ( दस हज़ार ) है, जिसका अर्थ है कि चार अंकों की बड़ी से बड़ी संख्या 9999 है । इसी प्रकार आगे, छ : अंकों की छोटी से छोटी संख्या 1,00,000 ( एक लाख ) है जिसका अर्थ है कि पाँच अंकों की बड़ी से बड़ी संख्या 99999 है। यही क्रम और बड़ी संख्याओं के लिए भी लागू होता है,अल्पविरामों का प्रयोग, संख्याओं के लिखने तथा पढ़ने में सहायता करता है।
    4. भारतीय संख्यांकन पद्धति में पहला अल्पविराम दाईं ओर से प्रारंभ कर तीन अंकों बाद और बाकी दो – दो अंकों बाद लगाए जाते हैं और ये अल्पविराम क्रमश : हज़ार, लाख व करोड़ को अलग – अलग करते हैं।
    5. अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति में अल्पविराम दाईं ओर से प्रारंभ कर तीन – तीन अंकों के बाद लगाए जाते हैं। तीन और छ : अंकों के बाद अल्पविराम क्रमशः हज़ार व मिलियन को अलग – अलग करते हैं।
    6. दैनिक जीवन में अनेक स्थानों पर हमें बड़ी – बड़ी संख्याओं की भी आवश्यकता होती है। जैसे किसी विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या, गाँव या शहर की जनसंख्या, बड़े – बड़े लेन – देन में धन तथा दो बड़े शहरों के बीच की दूरी।
    7. याद रखिए किलो का अर्थ है- हज़ार, सेंटी का अर्थ है- सौवाँ भाग तथा मिली का अर्थ है- हज़ारवाँ भाग, इस प्रकार 1 किलोमीटर = 1000 मीटर, 1 मीटर = 100 सेंटीमीटर = 1000 मिलीमीटर
    8. अनेक स्थितियों में हमें पूर्णतया सही – सही संख्याओं की आवश्यकता नहीं होती बल्कि एक उपयुक्त आकलन से ही काम चल सकता है। जैसे एक अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच के दर्शकों की संख्या बताने के लिए कह देते हैं कि लगभग 51,000 दर्शकों ने मैच देखा। यहाँ हमें दर्शकों की सही संख्या की आवश्यकता नहीं है।
    9. आकलन में किसी संख्या को एक वांछित मात्रा तक परिशुद्ध करना होता है। जैसे 4117 का सन्निकटन, हज़ारों में 4000 तथा सैकड़ों में 4100 किया जा सकता है, जो आवश्यकता पर निर्भर करता है।
    10. अनेक स्थितियों में हमें संख्याओं पर संक्रियाओं के फलस्वरूप प्राप्त परिणामों का भी आकलन उपयोगी सिद्ध होता है। ऐसे आकलनों में हम पहले प्रयोग होने वाली संख्याओं को सन्निकटित कर शीघ्रता से परिणाम प्राप्त कर लेते हैं।
    11. संख्याएँ 1 , 2 , 3 , … जिनका प्रयोग हम गिनने के लिए करते हैं , प्राकृत संख्याएँ कहलाती हैं ।
    12. यदि आप किसी प्राकृत संख्या में 1 जोड़ते हैं तो आपको इसका परवर्ती मिलता है । यदि किसी प्राकृत संख्या में से 1 घटाते हैं , तो आपको इसका पूर्ववर्ती प्राप्त होता है ।
    13. प्रत्येक प्राकृत संख्या का एक परवर्ती होता है। 1 को छोड़कर प्रत्येक प्राकृत संख्या का एक पूर्ववर्ती होता है ।
    14. यदि प्राकृत संख्याओं के संग्रह में हम संख्या 0 जोड़ते हैं, तो हमें पूर्ण संख्याओं का संग्रह प्राप्त होता है । इस प्रकार संख्याएँ 0, 1, 2, 3, … पूर्ण संख्याओं का संग्रह बनाती हैं।
    15. प्रत्येक पूर्ण संख्या का एक परवर्ती होता है। 0 को छोड़कर प्रत्येक पूर्ण संख्या का एक पूर्ववर्ती होता है।
    16. सभी प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ होती हैं । लेकिन सभी पूर्ण संख्याएँ, प्राकृत संख्याएँ नहीं होती हैं ।
    17. हम एक रेखा लेते हैं। इस पर एक बिंदु अंकित करते हैं, जिसे 0 से नामांकित करते हैं। फिर हम 0 के दाईं ओर समान अंतराल ( दूरी ) पर बिंदु अंकित करते जाते हैं। इन्हें क्रमशः 1, 2, 3, … से नामांकित करते हैं। इस प्रकार हमें एक संख्या रेखा प्राप्त होती है जिस पर पूर्ण संख्याओं को दर्शाया जाता है। हम इस संख्या रेखा पर आसानी से संख्याओं का जोड़, व्यवकलन, गुणा और भाग जैसी संक्रियाएँ कर सकते हैं।
    18. संख्या रेखा पर दाईं ओर चलने पर संगत योग प्राप्त होता है जबकि बाईं ओर चलने पर संगत व्यवकलन प्राप्त होता है। शून्य ( 0 ) से प्रारंभ करके समान दूरी के कदम से गुणा प्राप्त होता है।
    19. दो पूर्ण संख्याओं का योग हमेशा एक पूर्ण संख्या ही होता है। इसी प्रकार, दो पूर्ण संख्याओं का गुणनफल हमेशा एक पूर्ण संख्या होता है। हम कहते हैं कि पूर्ण संख्याएँ योग और गुणनफल के अंतर्गत संवृत ( Closed ) होती हैं। जबकि पूर्ण संख्याएँ व्यवकलन ( घटाना ) और भाग ( विभाजन ) के अंतर्गत संवृत नहीं होती हैं ।
    20. शून्य से भाग ( विभाजन ) परिभाषित नहीं है ।
    21. शून्य को पूर्ण संख्याओं के योग के लिए तत्समक अवयव (identity element) या ( तत्समक ) कहते हैं ।
    22. पूर्ण संख्या 1 को पूर्ण संख्याओं के गुणन के लिए तत्समक कहते है।
    23. आप दो पूर्ण संख्याओं को किसी भी क्रम में जोड़ सकते हैं। आप दो पूर्ण संख्याओं को किसी भी क्रम में गुणा ( गुणन ) कर सकते हैं। इसलिए हम कहते हैं कि पूर्ण संख्याओं के लिए योग और गुणन क्रमविनिमेय (commutative) हैं।
    24. पूर्ण संख्याओं के लिए योग और गुणन साहचर्य (Associative) हैं।
      पूर्ण संख्याओं के लिए योग पर गुणन का वितरण ( या बंटन ) होता है।
    25. पूर्ण संख्याओं के क्रमविनिमेय, साहचर्य और वितरण गुण परिकलन को आसान बनाने में उपयोगी हैं और हम अनजाने में इनका प्रयोग करते हैं।
    26. संख्याओं के प्रतिरूप न केवल रोचक होते हैं, बल्कि मौखिक कलन में मुख्यतः उपयोगी होते हैं और संख्याओं के गुणों को भली भाँति समझने में सहायता देते हैं ।
    27. एक संख्या का गुणनखंड उस संख्या का पूर्ण विभाजक होता है।
      प्रत्येक संख्या स्वयं का एक गुणनखंड होती है। प्रत्येक संख्या का एक गुणनखंड होता है।
    28. दी हुई संख्या का प्रत्येक गुणनखंड उस संख्या से छोटा या उसके बराबर होता है।
    29. प्रत्येक संख्या अपने प्रत्येक गुणनखंडों का एक गुणज होती है ।
      दी हुई संख्या का प्रत्येक गुणज उस संख्या से बड़ा या उसके बराबर होता है।
      प्रत्येक संख्या स्वयं का एक गुणज है।
    30. वह संख्या जिसके दो ही गुणनखंड होते हैं, संख्या स्वयं और 1, अभाज्य संख्या कहलाती है। संख्या 2 सबसे छोटी अभाज्य संख्या है जो एक सम संख्या भी है, अन्य सभी अभाज्य संख्याएँ विषम होती हैं।
    31. जिन संख्याओं के दो से अधिक गुणनखंड होते हैं वे संख्याएँ भाज्य संख्याएँ कहलाती हैं।
    32. दो संख्याएँ जिनका सार्व गुणनखंड केवल 1 हो, सह – अभाज्य संख्याएँ कहलाती हैं।
    33. यदि एक संख्या दूसरी संख्या से विभाज्य है , तो वह दूसरी संख्या के प्रत्येक गुणनखंड से भी विभाजित होगी।
    34. वह संख्या(Number) जो दो सह – अभाज्य संख्याओं से विभाज्य होती है, उनके गुणनफल से भी विभाज्य होगी।
    35. संख्याओं को बिना भाग की क्रिया किए उनकी छोटी 2, 3, 4, 5, 8, 9 और 11 से विभाज्यता की जाँच कर सकते हैं। हमने संख्या के अंकों का विभिन्न संख्याओं से विभाज्यता के संबंधों का अन्वेषण किया है ।
      (a) 2, 5 और 10 से विभाज्यता केवल इकाई अंक को देखकर बताई जा सकती है।
      (b) 3 और 9 से विभाज्यता संख्या के अंकों के योग द्वारा की जा सकती है।
      (c) 4 से विभाज्यता इकाई और दहाई तथा 8 से विभाज्यता इकाई, दहाई व सैकड़े से बनने वाली संख्या द्वारा जाँची जा सकती है।
      (d) 11 से विभाज्यता दाईं ओर से सम स्थानों के अंकों के योग और विषम स्थानों के अंकों के योग के अंतर द्वारा जाँची जा सकती है ।
    36. यदि दो संख्याएँ एक संख्या से विभाजित होती हैं, तो उन दोनों का योग तथा अंतर भी उस संख्या से विभाजित होता है।
    37. दो या अधिक संख्याओं का म.स. ( HCF ) उसके सार्व गुणनखंडों में से सबसे बड़ा होगा ।
    38. दो या अधिक संख्याओं का ल.स. ( LCM ) उसके सार्व गुणजों में से सबसे छोटा होगा ।
    39. पूर्णांक, संख्याओं का एक विशाल संग्रह है, जिसमें पूर्ण संख्याएँ और उनके ऋणात्मक सम्मिलित हैं।
    40. पूर्णांक, योग एवं व्यवकलन दोनों के लिए संवृत्त होता है । अर्थात्, a + b और a – b दोनों पुनः पूर्णाक होते हैं, जहाँ a और b कोई भी पूर्णांक हैं ।
    41. पूर्णांकों के लिए योग क्रमविनिमेय है, अर्थात् सभी पूर्णांकों a तथा b के लिए, a + b = b + a होता है।
    42. पूर्णांकों के लिए योग साहचर्य है, अर्थात् सभी पूर्णांकों a, b तथा c के लिए ( a + b ) + c = a + ( b + c ) होता है।
    43. योग के अंतर्गत पूर्णांक शून्य तत्समक है, अर्थात किसी भी पूर्णांक के लिए, a + 0 = 0 + a = a होता है।
    44. एक धनात्मक एवं एक ऋणात्मक पूर्णांक का गुणनफल एक ऋणात्मक पूर्णांक होता है, जबकि दो ऋणात्मक पूर्णांकों का गुणनफल एक धनात्मक पूर्णांक होता है। उदाहरणतः (- 2) x (7) = – 14 और (- 3) x ( – 8 ) = 24 है ।
    45. ऋणात्मक पूर्णांकों की संख्या सम होने पर उनका गुणनफल धनात्मक होता है जबकि यह संख्या विषम होने पर उनका गुणनफल ऋणात्मक होता है।
      पूर्णांक गुणन के अंतर्गत कुछ गुणों को दर्शाते हैं।-
      (a) गुणन के अंतर्गत पूर्णांक संवृत होते हैं, अर्थात् किन्हीं दो पूर्णांकों a तथा b के लिए a x b एक पूर्णांक होता है।
      (b) पूर्णांकों के लिए गुणन क्रमविनिमेय होता है, अर्थात् किन्हीं दो पूर्णांको a तथा b के लिए a x b = b x a होता है ।
      (c) गुणन के अंतर्गत पूर्णांक 1 तत्समक होता है, अर्थात् किसी भी पूर्णांक a के लिए 1 x a = a x 1 = a होता है।
      (d) पूर्णाकों के लिए गुणन साहचर्य होता है, अर्थात् किन्हीं तीन पूर्णांकों a, b तथा c के लिए (a x b) x c = a x ( b x c ) होता है।
      योग एवं गुणन के अंतर्गत पूर्णांक एक गुण को दर्शाते हैं, जिसे वितरण गुण कहा जाता है, अर्थात् किन्हीं तीन पूर्णांकों a, b तथा c के लिए a x ( b + c ) = a x b + a x c होता है।
    46. योग एवं गुणन के अंतर्गत क्रमविनिमेयता, सहचारिता और वितरणता के गुण हमारे परिकलन को आसान बनाते हैं।
    47. जब एक धनात्मक पूर्णांक को एक ऋणात्मक पूर्णांक से भाग दिया जाता है या जब एक ऋणात्मक पूर्णांक को एक धनात्मक पूर्णांक से भाग दिया जाता है, तो प्राप्त भागफल एक ऋणात्मक होता है।
    48. एक ऋणात्मक पूर्णांक को दूसरे ऋणात्मक पूर्णांक से भाग देने पर प्राप्त भागफल एक धनात्मक होता है।
    49. किसी भी पूर्णांक a के लिए , हम पाते हैं कि :-
      (a) a ÷ 0 परिभाषित नहीं है।
      (b) a ÷ 1 = a होता है ।
    50. दो भिन्नों को गुणा करने के लिए उनके अंशों एवं हरों को पृथक् – पृथक् गुणा किया जाता है और फिर गुणनफल को  अंशो का गुणनफल/हरों का गुणनफल के रूप में लिखा जाता है ।
    51. दो उचित भिन्नों का गुणनफल, गुणा किए गए प्रत्येक भिन्न से कम होता है ।
    52. एक उचित और एक विषम भिन्न का गुणनफल विषम भिन्न से कम होता है और उचित भिन्न से अधिक होता है ।
    53. दो विषम भिन्नों का गुणनफल , गुणा किए गए दोनों भिन्नों में से प्रत्येक से बड़ा होता है ।
    54. एक भिन्न का व्युत्क्रम इसके अंश और हर को परस्पर बदलने से प्राप्त होता है ।
    55. एक पूर्ण संख्या(Whole Number) को किसी भिन्न से भाग करते समय हम पूर्ण संख्या को भिन्न के व्युत्क्रम से गुणा करते हैं ।
    56. एक भिन्न को पूर्ण संख्या से भाग करने के लिए हम भिन्न को पूर्ण संख्या के व्युत्क्रम से गुणा करते हैं ।
    57. एक भिन्न को दूसरी भिन्न से भाग करने के लिए हम पहली भिन्न को दूसरी भिन्न के व्युत्क्रम से गुणा करते हैं ।
    58. दो दशमलव संख्याओं को गुणा करने के लिए सर्वप्रथम हम उन्हें पूर्ण संख्याओं के रूप में गुणा करते हैं । दोनों दशमलव संख्याओं में दशमलव बिंदु के दाईं तरफ अंकों की संख्या को गिनते हैं । गिनी हुई अंकों की संख्या का योग ज्ञात करते गुणनफल में दशमलव बिंदु रखा जाता है, सबसे दाएँ स्थान से अंकों को गिनते हुए यह गिनती पूर्व में प्राप्त योग के समान होनी चाहिए । उदारण :- 0.5 × 0.7 = 0.35
    59. एक दशमलव संख्या को 10, 100 अथवा 1000 से गुणा करने के लिए हम उस संख्या में दशमलव बिंदु को दाईं तरफ उतने ही स्थान से विस्थापित करते हैं जितने 1 के अतिरिक्त शून्य होते हैं । अतः 0.53 x 10 = 5.3 , 0.53 x 100 = 53 , 0.53 x 1000 = 530
    60. एक दशमलव संख्या को पूर्ण संख्या से भाग करने के लिए सर्वप्रथम हम उन्हें पूर्ण संख्याओं के रूप में भाग देते हैं । तब भागफल में दशमलव बिंदु को वैसे ही रखा जाता है जैसे दशमलव संख्या में ।
    61. एक दशमलव संख्या को 10, 100 अथवा 1000 से भाग करने के लिए दशमलव संख्या में दशमलव बिंदु को बाईं तरफ़ उतने ही स्थान से विस्थापित करते हैं जितने 1 के अतिरिक्त शून्य होते हैं । इस प्रकार भागफल की प्राप्ति होती है । इसलिए 23.9 ÷ 10 = 2.39, 23.9 ÷ 100 = 0 .239, 23.9 ÷ 1000 = 0.0239
    62. दो दशमलव संख्याओं को भाग करते समय सर्वप्रथम हम दोनों संख्याओं में दशमलव बिंदु को दाईं तरफ़ समान स्थानों से विस्थापित करते हैं और तब भाग देते हैं। अतः 2.4 ÷ 0.2 = 24 ÷ 2 = 12
    63. परिमेय संख्याएँ योग व्यवकलन और गुणन की संक्रियाओं के अंतर्गत संवृत हैं ।
    64. परिमेय संख्याओं के लिए योग और गुणन की संक्रियाएँ
      (i) क्रमविनिमेय हैं ।
      (ii) साहचर्य हैं ।
    65. परिमेय संख्याओं के लिए परिमेय संख्या शून्य योज्य तत्समक है ।
    66. परिमेय संख्याओं के लिए परिमेय संख्या 1 गुणनात्मक तत्समक है ।
    67. परिमेय संख्या  $latex \displaystyle \frac{a}{b}$ का योज्य प्रतिलोम -$latex \displaystyle \frac{a}{b}$ है और विलोमतः भी सत्य है ।
    68. यदि $latex \displaystyle \frac{a}{b}$ X $latex \displaystyle \frac{c}{d}$ = 1 तो परिमेय संख्या $latex \displaystyle \frac{a}{b}$ का व्युत्क्रम अथवा गुणनात्मक प्रतिलोम  $latex \displaystyle \frac{c}{d}$ है।
    69. परिमेय संख्याओं की वितरकता : परिमेय संख्याएँ a , b और C के लिए a ( b + c ) = ab + ac और a ( b – c ) = ab – ac है ।
    70. परिमेय संख्याओं को संख्या रेखा पर निरूपित किया जा सकता है ।
    71. दी हुई दो परिमेय संख्याओं के मध्य अपरिमित परिमेय संख्याएँ होती हैं ।
    72. दो परिमेय संख्याओं के मध्य परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने में माध्य की अवधारणा सहायक है ।
    73. संख्या r को परिमेय संख्या कहा जाता है , यदि इसे $latex \displaystyle \frac{p}{q}$ के रूप में लिखा जा सकता हो , जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q # 0 है ।
    74. संख्या s को अपरिमेय संख्या कहा जाता है , यदि इसे $latex \displaystyle \frac{p}{q}$ के रूप में न लिखा जा सकता हो , जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q # 0 है ।
    75. एक परिमेय संख्या का दशमलव प्रसार या तो सांत होता है या अनवसानी आवर्ती होता है । साथ ही , वहसंख्या , जिसका दशमलव प्रसार सांत या अनवसानी आवर्ती है , परिमेय होती है ।
    76. एक अपरिमेय संख्या का दशमलव प्रसार अनवसानी अनावर्ती होता है । साथ ही , वहसंख्या जिसका दशमलव प्रसार अनवसानी अनावर्ती है , अपरिमेय होती है ।
    77. सभी परिमेय और अपरिमेय संख्याओं को एक साथ लेने पर वास्तविक संख्याओं का संग्रह प्राप्त होता है ।
    78. संख्या रेखा के प्रत्येक बिन्दु के संगत एक अद्वितीय वास्तविक संख्या होती है । साथ ही , प्रत्येक वास्तविक संख्या के संगत संख्या रेखा पर एक बिंदु होता है ।
    79. यदि r परिमेय है और s अपरिमेय है , तब r + s और r – s अपरिमेय संख्याएँ होती हैं तथा r × s और $latex \displaystyle \frac{r}{s}$ अपरिमेय संख्याएँ होती हैं यदि r # 0 है ।
    80. धनात्मक वास्तविक संख्याओं a और b के संबंध में निम्नलिखित सर्वसमिकाएँ लागू होती हैं :
      ( i ) $latex \displaystyle \sqrt{{ab}}=\sqrt{a}\sqrt{b}$
      (ii) $latex \displaystyle \sqrt{{\frac{a}{b}}}$ =  $latex \displaystyle \frac{√a}{√b}$ 
      (iii) $latex \displaystyle (\sqrt{a}+\sqrt{b})$ $latex \displaystyle (\sqrt{a}-\sqrt{b})$ = a − b
      (iv) $latex \displaystyle (a+\sqrt{b})$ $latex \displaystyle (a-\sqrt{b})$ = a ² − b
      (v) $latex \displaystyle {{(\sqrt{a}+\sqrt{b})}^{2}}$  = a + 2$latex \displaystyle \sqrt{{ab}}$ + b
    81. $latex \displaystyle \frac{1}{√a + b}$ के हर का परिमेयकरण करने के लिए , इसे हम $latex \displaystyle \frac{√a-b}{√a-b}$  से गुणा करते हैं। जहाँ a और b पूर्णांक हैं |
      मान लीजिए a > 0 एक वास्तविक संख्या है और m और n परिमेय संख्याएँ हैं । तब ,
      ( i ) am × an = am+n
      ( ii ) $latex \displaystyle \frac{{{{a}^{m}}}}{{{{a}^{n}}}}$  = am-n
      (iii) am × bm = (ab)m
      ( iv ) ( am)n = amn
    82. यूक्लिड विभाजन प्रमेयिकाः
      दो धनात्मक पूर्णांक a और b दिए रहने पर , हम a = bq + r , 0 ≤ r < b को संतुष्ट करने वाली पूर्ण संख्याएँ q और r ज्ञात कर सकते हैं अर्थात् ऐसी संख्याओं का अस्तित्व है । यूक्लिड विभाजन एल्गोरिथ्म : यह यूक्लिड विभाजन प्रमेयिका पर आधारित है । इसका प्रयोग कर दो धनात्मक पूर्णांकों a और b , ( a > b ) का HCF नीचे दर्शाई विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है :-
      चरण 1 : q और r ज्ञात करने के लिए यूक्लिड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए , जहाँ a = bq + r , 0 ≤r < b है ।
      चरण 2 : यदि r = 0 है तो HCF = 6 है । यदि r# 0 है तो b और r पर यूक्लिड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए |
      चरण 3 : इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखिए जब तक शेषफल शून्य न प्राप्त हो जाए । इस स्थिति वाला भाजक ही HCF ( a , b ) है । साथ ही , HCF ( a , b ) = HCF ( b , r )
    83. अंकगणित की आधारभूत प्रमेयः
      प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में व्यक्त ( गुणनखंडित ) किया जा सकता है तथा यह गुणनखंडन अद्वितीय होता है , इस पर कोई ध्यान दिए बिना कि अभाज्य गुणनखंड किस क्रम में आ रहे हैं ।
    84. यदि p कोई अभाज्य सन्ख्या है और p , a2 को विभाजित करता है तो p , a को भी विभाजित करेगा , जहाँ a एक धनात्मक पूर्णांक है ।
    85. उपपत्ति कि √2 , √3 इत्यादि अपरिमेय संख्याएँ हैं ।
    86. मान लीजिए x एक परिमेय सन्ख्या (rational number) है जिसका दशमलव प्रसार सांत है । तब , हम x को $latex \displaystyle \frac{p}{q}$ के रूप में व्यक्त कर सकते हैं , जहाँ p और q सहअभाज्य हैं तथा q का अभाज्य गुणनखंडन 2m × 5n के रूप का है , जहाँ m , n ऋणेतर पूर्णांक हैं ।
    87. मान लीजिए_ x = $latex \displaystyle \frac{p}{q}$ एक ऐसी परिमेय संख्या(rational number) है कि q का अभाज्य गुणनखंडन 2m × 5n bके रूप का जहाँ m, n ऋणेतर पूर्णांक हैं तो x का दशमलव प्रसार सांत होगा ।
    88. मान लीजिए x = $latex \displaystyle \frac{p}{q}$ एक ऐसी परिमेय संख्या(ational number) है कि q का अभाज्य गुणनखंडन 2m × 5 n के रूप का नहीं है , जहाँ m, n ऋणेतर पूर्णांक हैं तो x का दशमलव प्रसार असांत आवर्ती होगा।


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