विषय-सूची
चित्रकला की प्रमुख संस्थाऐं
- जोधपुर – चितेरा, धोरा
- उदयपुर – खमल, तुलिका कला परिषद
- जयपुर – कलावृत, आयाम, पैंग, क्रिएटिव संस्थाऐं, जवाहर कलाकेन्द्र 1993 में
- भीलवाड़ा – अंकन
- राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स – महाराजा रामसिंह के काल में जयपुर में स्थापित। पुराना नाम – मदरसा-ए-हुनरी।
- राजस्थान ललित कला अकादमी – 24 नवम्बर 1957 को जयपुर में स्थापित है।
प्रमुख चित्रकला संग्रहालय
- पोथी खाना – जयपुर
- जैन भण्डार – जैसलमेर
- पुस्तक / मान – प्रकाश – जोधपुर
- सरस्वती भण्डार – उदयपुर
- अलवर भण्डार – अलवर
- कोटा भण्डार – कोटा
प्रमुख चित्रकार
👳रामगोपाल विजयवर्गीय
- जन्म- बालेर (सवाईमाधोपुर) में हुआ।
- राजस्थान में एकल चित्रण प्रणाली की परम्परा प्रारम्भ करने वाले प्रथम चित्रकार थे।
- नारी चित्रण इनका प्रमुख विषय था।
- इन्हे राजस्थान की आधुनिक चित्रकला का जनक कहते है।
🧓 गोवर्धन लाल बाबा
- जन्म – कांकरोली (राजसमंद) में हुआ।
- भीली जीवन का चित्रण इनका प्रमुख विषय था।
- इन्हें भीलों का चितेरा भी कहा जात है।
- इनका प्रमुख / प्रसिद्ध चित्र बारात है।
🧔 परमानन्द चोयल
- इनका जन्म- कोटा में हुआ।
- भैसों का चित्रण इनका प्रमुख विषय था, इन्हें भैसों का चितेरा भी कहा जाता है।
👨 जगमोहन माथोड़िया
- इनका जन्म- जयपुर में हुआ।
- इनके चित्रण के विषय श्वान थे, इन्हें श्वानों का चितेरा भी कहा जाता है।
👲 भूर सिंह शेखावत
- इनका जन्म- बीकानेर में हुआ।
- ग्रामीण परिवेश व देश भक्तों का चित्रण इनका प्रमुख विषय था।
- इन्हें गांवों का चितेरा कहा जाता है।
👨🦳 कृपाल सिंह शेखावत
- इनका जन्म मऊगांव (सीकर) में हुआ।
- इन्हें ब्लयू पॉटरी का जादूगर कहा जाता है।
- परम्परागत पॉटरी में ब्लयू (नीला) व हरा रंग किया जाता था।
- कृपाल सिंह शेखावत ने पॉटरी में 25 प्रयोग किये थे।
- इन्हें सन् 1974 में पद्म श्री पुरस्कार दिया गया।
👳 सोभाग मल गहलोत
- इनका जन्म- जयपुर में हुआ।
- पक्षियों के घोसलों का चित्रण इसका प्रमुख विषय था, इन्हें नीड़ का चितेरा कहते है ।
👩🦰 सुरजीत कौर चायल
- इनका कार्यक्षेत्र जयपुर रहा।
- राज्य की प्रथम चित्रकार है जिनको चित्रकला का प्रदर्शन जापान की फुकाको कला दीर्घा में किया गया।
🤵 देवकी नन्दन शर्मा
- पशु पक्षियों का चित्रण इनका प्रमुख विषय रहा।
- इन्हें Man of nature and living objects कहते है।
🧔 राजा रवि वर्मा
- केरल निवासी राजा रवि वर्मा को भारतीय चित्रकला का जनक कहा जाता है।
👨🦳 ए.एच. मूलर
- जर्मनी के परम्परावादी चित्रकार जिनके चित्र बीकानेर संग्रहालय में संग्रहीत है।
भित्ति चित्रण
>> भिति चित्रण की प्रमुख रूप से तीन विधियां है।
(१) फेसको ब्रुनो
- ताजा पलस्तर की हुई नम भिति पर किया गया चित्रण।
- इस कला को मुगल सम्राट अकबर के समय इटली से भारत लाया गया।
- जयपुर रियासत के शासकों के मुगलों से प्रगाढ़ सम्बन्ध के कारण भिति चित्रण की यह परम्परा जयपुर से प्रारम्भ हुई और फिर पूरे राजस्थान में फैली।
- राजस्थान में इस कला को आलागीला / आरायश कला कहते है।
- शेखावाटी क्षेत्र में इस शैली को पणा कहा जाता है।
(२) फेसको सेको
- इटली की इस कला में पलस्तर की हुई भित्ति के सुखने के पश्चात् चित्रण किया जाता है।
(३) साधारण भित्ति चित्रण
- साधारण दीवार पर किया गया चित्रण ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- राजस्थान की चित्रकला शैलियों में मोर पक्षी को प्रधानता दी गई है।
- राजस्थान की चित्रकला शैलियों में लाल व पीले रंग का बहुतायत से प्रयोग किया गया है।
- भित्ति चित्रांकन की दृष्टि से कोटा तथा बूंदी रियासत राजस्थान की समृद्ध रियासत है।
- बीकानेर शैली तथा शैखावटी शैली के चित्रकार चित्रों पर अपना नाम व तिथि अंकित करते थे।
- विभिन्न प्रकार का आभूषण बसेरी (नाक में) किशनगढ़ शैली के चित्र में दर्शाया गया है।
- वीरजी जोधपुर शैली के प्रमुख चित्रकार रहे है। उत्तरध्यान व कल्याण रागिनी वीर जी के प्रमुख चित्र है।
- कोटा की झाला हवेली शिकारी दृश्यों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध रही है, इनका निर्माण झाला जालिम सिंह द्वारा किया गया।
- शेखावाटी में गोपालदास की छत्तरी पर किया गया भिति चित्रण सबसे प्राचीन/पारम्परिक है। जो देवा नामक चित्रकार द्वारा तैयार किए गए है।
- राजस्थानी चित्रकला शैलियों में सबसे प्राचीन चित्र दसवैकालिका सुत्र चूर्णि जैसलमेर शैली के अन्तर्गत चित्रत किया गया जो वर्तमान में जैन भण्डार में संग्रहित है।
- शेखावटी क्षेत्र के अन्तर्गत स्थानीय चित्रकारों ने हवेलियां, मन्दिरो, बाडियों, इत्यादि को चित्रित किया।
- शेखावटी क्षेत्र के कस्बे हवेली भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध रहे है। मण्डावा, जवलगढ़ लक्ष्मणगढ़, महनसर, फतेहपुर इत्यादि कस्बे इसके अन्तर्गत आते है।
- पैर में से कांटा निकालती हुई नायिका चित्र कोटा शैली का है। मुकन्दरा की पहाड़ियों व अरावली पर्वत श्रेणियों में कुछ शैल चित्रों की खोज इसका प्रमाण है।
- कोटा के दक्षिण में चम्बल के किनारे, माधोपुर की चट्टानों से आलनिया नदी से प्राप्त शैल चित्रों का जो ब्योरा मिलता है उससे लगता है कि यह चित्र बगैर किसी प्रशिक्षण के मानव द्वारा वातावरण प्रभावित, स्वाभाविक इच्छा से बनाए गए थे।
- कालीबंगा और आहड़ की खुदाई से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों पर किया गया अलंकरण भी प्राचीनतम मानव की लोक कला का परिचय प्रदान करता है।
- ज्यामितिक आकारों में चौकोर, गोल, जालीदाल, घुमावदार, त्रिकोण तथा समानान्तर रेखाओं के अतिरिक्त काली व सफ़ेद रेखाओं से फूल-पत्ती, पक्षी, खजूर, चौपड़ आदि का चित्रण बर्तनों पर पाया जाता है।
- आज भी राजस्थान में मांडना नामक लोक कला के रूप में घर की दीवारों तथा आंगन में बने हुए देखे जा सकते हैं। इस प्रकार इनमें आदिम लोक कला के दर्शन सहित तत्कालीन मानव की आन्तरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज प्राप्त होती है।
- सर्वप्रथम विक्रम संवत 1117(1080 ई.) के दो सचित्र ग्रंथ जैसलमेर के जैन भण्डार से प्राप्त होते हैं। औघनियुक्ति और दसवैकालिक सूत्रचूर्णी नामक यह हस्तलिखित ग्रन्थ जैन दर्शन से सम्बन्धित है।
- राजस्थान की चित्रकला पर प्रारम्भ में जैन शैली, गुजरात शैली और अपभ्रंश शैली का प्रभाव बना रहा, किन्तु बाद में राजस्थान की चित्रशैली मुगल काल से समन्वय स्थापित कर परिमार्जित होने लगी ।
- सत्रहवीं शताब्दी से मुगल साम्राज्य के प्रसार और राजपूतों के साथ बढ़ते राजनीतिक और वैवाहिक सम्बन्धों के फलस्वरूप राजपूत चित्रकला पर मुगल शैली का प्रभाव बढ़ने लगा ।
- 17वीं शताब्दी और 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णयुग मानते हैं ।
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