हेरोडोटस का भूगोल में योगदान | Herodotus

हेरोडोटस का भूगोल में योगदान

     हेरोडोटस यूनान का ऐसा विद्वान हुआ जिसका भौगोलिक योगदान उल्लेखनीय है। हेरोडोटस का जन्म ईसा से 480 वर्ष पूर्व हेलीकारनेसस (यूनान का एक नगर) में हुआ। यह नगर प्रमुख शिक्षा केन्द्र मिलेटस के निकट था। हेरोडोटस एक धनी कुलीन परिवार का सदस्य था, जिस कारण विशेष सम्मानित माना गया था। प्रारम्भिक रूप से वह इतिहासकार था जिसने मानव जन-जातियों का भी अध्ययन किया, इन अध्ययनों में भौगोलिक जानकारी भी है। उसने अनेक देशों का भ्रमण कर ज्ञान अर्जित किया। कहा जाता है कि उसने अपनी पुस्तकें यूनान के प्रसिद्ध नगर एथेन्स में लिखी। इसके बाद 433 वर्ष ई.पू. दक्षिणी इटली के धुरी नगर में चला गया और वहाँ अपने अध्ययन व लेखन का कार्य पूरा किया।

✍️ हेरोडोटस के भ्रमण एवं अन्वेषण 

      हेरोडोटस को प्राचीनकाल का महान् यात्री एवं अन्वेषक माना जाता है। इन्होंने 20 वर्षों तक ज्ञात विश्व के अनेक भागों का भ्रमण किया। यूरोपियन देशों में यूनान, इटली, सिसली तथा भूमध्यसागरीय द्वीपों, मिश्र, एजियन सागर तट, बेबीलोन, सूसा, असीरिया आदि देशों का भ्रमण कर भौगोलिक विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने इटली, यूनान और कालासागरी क्षेत्रों में जाने में बोसफोरस और मारमरा के संकीर्ण जलमार्गों को पार किया। इसके बाद वह थल मार्गों द्वारा रूस के स्टैपीज घास के मैदानों तक गया। उसने ईस्टर नदी के मुहाने में प्रवेश कर मध्य यूरोप की यात्राएँ कीं। दक्षिण में उसने मिश्र और लीबिया की यात्राएँ कीं। मिश्र में वह नील नदी घाटी में एलीफैन्टाइन जल-प्रपात तक गया था। उसने कॉकेशस पर्वतीय क्षेत्र का भी भ्रमण किया तथा कोल्ची जल जनजातियों की जानकारी प्राप्त की।

✍️ हेरोडोटस का पृथ्वी की आकृति सम्बन्धी विचार 

      वह पृथ्वी को गोल आकृति की तश्तरी के समान मानता था। परन्तु वह इस बात को नहीं मानता था कि इसके चारों ओर समुद्र है जो नदी जल की भाँति प्रवाहित है। उसकी यह मान्यता थी कि भूमध्य सागर पृथ्वी के बीचों-बीच स्थित है। इस सागर के उत्तर व दक्षिण में भूमि का विस्तार बराबर है। उत्तर में मुख्य नदी ईस्टर है। इसी प्रकार दक्षिण में नील है। उत्तरी और दक्षिणी भागों में सम्मति है। इसी प्रकार उसने पूर्वी और पश्चिमी भागों को भी एक रेखा द्वारा पृथक् किया जो उत्तर में इस्टर नदी के मुहाने से लेकर दक्षिण में नील नदी के मुहाने को जोड़ती है। अक्षांश व देशान्तर खींचने का यह एक अपक्व तरीका था।

       हेरोडोट्स ने यह पहली बार बताया कि कैस्पीयन सागर एक झील और उसका बाहरी समुद्रों से कोई सम्बन्ध नहीं है। दक्षिण की ओर एक महासागर है जो लीबिया से भारत तक फैला है। इसी प्रकार उत्तर की ओर भी एक महासागर है जो स्किथिया से इसीडोन तक फैला है। यूक्सीन के बारे में उन्होंने लिखा कि यह सबसे सुन्दर सागर है। इसकी लम्बाई 1100 स्टेडिया व चौड़ाई 1300 स्टेडिया है। यूक्सीन के उत्तर में एक अन्य सागर है जिसका नाम पालसमे ओटिस बताया। यह सागर वर्तमान में अजोव सागर है। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में एरीथ्रियन (हिन्द महासागर) और पश्चिम में अटलांटिक महासागर है। उसे यह भी ज्ञात था कि एरीथ्रियन का ही विस्तार लाल सागर में है जो उत्तर से दक्षिण में फैला है।

✍️ हेरोडोटस की यात्राओं के अनुसार संसार में तीन प्रमुख क्षेत्र

       अपनी यात्राओं से उसने यह अनुभव किया कि संसार में तीन प्रमुख क्षेत्र हैं- 1. यूरोप, 2 एशिया, 3. लीबिया (अफ्रीका)। इन तीनों के बारे में उन्होंने अपने अनुभव से उस समय तक ज्ञात जानकारियाँ दी हैं।

(1) यूरोप 

       यह महाद्वीप पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में कैस्पीयन तक विस्तृत बताया गया। उसके उत्तर-पश्चिमी भाग में कैल्ट, मध्य में स्कीथिया और उत्तर पूर्व में इसेडोन क्षेत्र हैं। यहाँ की मुख्य नदी इस्टर है जिसकी सहायक नदियाँ आल्पिस, कापिस, मारिस, टिरास, बेरिस्थनीज, हाइफैनिस आदि हैं। दूसरी बड़ी नदी टेनस है जिसकी कई छोटी-छोटी सहायक नदियाँ हैं।

     हैरोडोटस को यूरोप की उत्तरी सीमा तथा उत्तरी आर्कटिक महासागर की जानकारी नहीं थी। उसे स्पेन की आकृति का पूरा ज्ञान था। उसे भूमध्य सागर के विस्तार के बारे में सही जानकारी थी। इसमें स्थित द्वीप सिरेनस, साड, साइप्रस आदि के बारे में भी मालूम था। वह स्वयं यूक्सीन सागर तटीय क्षेत्रों में रुका। उनके अनुसार बोरिस्थनीज (नीस्टर) इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी थी। उन्हें आल्पस पर्वतों की जानकारी नहीं थी। उनका ज्ञान स्कीथिया क्षेत्र के बारे में काफी अच्छा था। उसने यहाँ रहने वाली जनजातियों का भी वर्णन किया है। उसने लिखा कि बोरिस्थनीज नदी घाटी क्षेत्र में स्थाई कृषि करने वाले लोग रहते हैं। 

      पालस मोओटिस सागर तट पर राज परिवार के शाही लोग रहते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में न्यूरी, एगेस्थीसी, एण्ड्रोफागी, मेलेनशलानी, बुडीनी, सोरोमेशी आदि आदि प्रजातियाँ निवास करती हैं। ये सभी लोग मुख्य स्कीथियन जाति से भिन्न हैं। इन प्रजातियों की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। न्यूरी जाति मानव मांसभक्षी हैं और बहुत ही असभ्य है। इनके रीति-रिवाज भी भिन्न हैं। इसके विपरीत एगेस्थीसी लोग सबसे सभ्य और सुसंस्कृत हैं। न्यूरी जनजाति के पूर्व में मेलेनशलानी लोग रहते हैं जो कि श्याम वर्ण के हैं। इनके उत्तरी भाग में बुडीनी जनजातियाँ रहती हैं जिनकी नीली आँखें और बाल लाल रंग के हैं। 

      हेरोडोटस ने लिखा कि यह घने वन प्रदेश तथा पहाड़ी भूमि पर रहने वाली घुमक्कड़ जनजाति है। उन्होंने बताया कि गेलोनी जाति सभ्य है जो स्थायी कृषि से अपना जीवन यापन करती है। उसने लिखा कि यूराल पर्वत के पूर्वी भागों में आर्गीपियन जनजाति रहती है और कैस्पियन सागर के पूर्व में इसेडोन और मेसागेटी लोग रहते हैं। हैरोडोटस ने इन क्षेत्रों का स्वयं भ्रमण किया तथा ज्ञान अर्जित किया। 

(2) एशिया 

         हेरोडोटस को भूमध्यसागरीय एशिया के अतिरिक्त शेष भागों की जानकारी कम थी। उसे एशिया माइनर की अच्छी जानकारी थी, क्योंकि यह क्षेत्र यूरोप काला सागर के समीप स्थित है। उसने भौतिक भूगोल के महान् सिद्धान्त के बारे में बताते हुए कहा कि टर्की की मियेन्डर नदी में उत्पन्न हुए मुड़ावों की उत्पत्ति नदी तट पर इकट्ठी हुई तलछट के कारण हुई। यह उनकी एक महान् उपलब्धि थी। उसने यह भी बताया कि नदियों के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण तलछट के जमाव के कारण होता है जिससे थल भाग का प्रसार समुद्र की ओर होता है। 

        एशिया की अन्य नदियों के विषय में उसे दजला-फरात और सिन्धु का ही ज्ञान था। प्रमुख नगरों में उसने सिन्धु पर केसापिरस और फरात पर बेबीलोन स्थित होना बताया। उन्हें फारसी साम्राज्य के विस्तार की जानकारी थी। फारस का साम्राज्य पश्चिमी मिश्र से लेकर पूर्व में सिन्धु नदी तक विस्तृत था। ये सम्पूर्ण साम्राज्य 20 प्रशासनिक प्रान्तों में विभक्त था। यहाँ चार मुख्य जातियाँ रहती थीं—पर्शियन, मेडीस, सस्पीरियन, कोल्शीयन। 

        हेरोडोटस ने एशिया माइनर के फारस की खाड़ी तक एक शाही सड़क होने का भी वर्णन किया। उसने लिखा है कि ये सड़क सार्डिस से सूसा तक जाती है और 13500 स्टेडिया लम्बी है। सड़क के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनी हुई हैं। व्यापार ऊँटों पर होता है तथा व्यापारी इन सरायों में विश्राम करते हैं। उन्होंने फारस नदी के पश्चिम में अरेबिया मरुस्थल का होना भी बताया है। उन्होंने इसकी दक्षिण सीमा को निर्धारित नहीं किया।

       मोटे तौर पर उन्होंने लिखा कि अरेबिया के दक्षिण से भारत तक एक ही महासागर एरीथ्रियन फैला हुआ है। उसने फारस की खाड़ी को भी इस महासागर से पृथक् नहीं किया, परन्तु वह यह अवश्य जानता था कि अरेबिया के पश्चिम में अरब की खाड़ी (लाल सागर) है जो एशिया व अफ्रीका को पृथक् करती है। 

      हेरोडोटस को भारत के विषय में अधूरी जानकारी थी। उसने मानचित्र में सिन्धु नदी को पश्चिम-पूर्व दिशा में बहता दिखाया। भारत के विषय में उन्होंने आने-जाने वाले व्यापारियों से जो सुन रखा था, वह लिखा। उन्होंने लिखा कि यहाँ के लोग धनुष बाण बनाते हैं, कपास और ऊन के कपड़े पहनते हैं। यहाँ बहुत घने जंगल हैं जिनमें वन्य जीव रहते हैं। उन्हें गंगा नदी व इसके मैदान की जानकारी नहीं थी क्योंकि उन्होंने लिखा कि सिन्धु नदी के पूर्व में रेगिस्तान है जो वास्तविकता से परे है। 

        एशिया की जनजातियों के बारे में उन्होंने बहुत कम लिखा। उनके अनुसार दजला-फरात नदी घाटियों में सीरिया और फारसी लोग रहते हैं। इनके उत्तरी पहाड़ी भागों में मेटीनी लोग निवास करते हैं। उन्हें एशिया के पूर्वी विस्तार के बारे में मालूम नहीं था क्योंकि उन्होंने अपने विश्व मानचित्र में इसका चित्रण नहीं किया।

(3) अफ्रीका

        अफ्रीका के भूमध्य सागरीय तटीय भागों का ज्ञान हैरोडोटस को बहुत अधिक था। इस भाग का विस्तार हरक्यूलीज के स्तम्भों से नील नदी तक बताया गया है। इस तट पर दो मुख्य नगर कार्थेज तथा सीरोन थे। उन्होंने नील नदी घाटी की यात्राएँ की इसलिए उन्हें यहाँ के नगरों की जानकारी अच्छी थी, किन्तु फिर भी उन्होंने अपने मानचित्र में नील नदी की स्थिति को सही नहीं दर्शाया। उन्होंने नदी का उद्गम स्थान पश्चिमी अफ्रीका को दर्शाया और उसके प्रारम्भिक प्रवाह भाग को पश्चिम-पूर्व दिशा में बताया जो बिल्कुल गलत है। उन्होंने नील नदी के तट पर स्थित मैम्फिस, थेबिस, सीन, मेरा और ओतोमेती नगरों का वर्णन किया है। वे नील नदी में नावों द्वारा जल मार्ग से गये थे। उन्होंने लिखा है कि इसमें प्रपात है जिसमें पहला प्रपात एलीफैन्टाइन है, इसे पार करने में उन्होंने रस्सों की सहायता ली जिसे यहाँ के मनुष्यों ने बैल की तरह जुतकर खींचा। 

       मैम्फिस के बारे में उन्होंने लिखा कि यह सुन्दर नगर है और यहाँ के राजाओं की राजधानी है। मेरोस नगर को उन्होंने इथोपिया की राजधानी बताया। उन्होंने बताया कि मेरोस के पास नील नदी की दो शाखाएँ आकर मिलती हैं जो नील और श्वेत नील है। मेरोस के दक्षिणी भाग में असमाश जातियाँ रहती हैं जो कि मिश्र छोड़कर यहाँ आ बसी थीं। असमाश का शाब्दिक अर्थ है—’भगोड़े लोग’। इन लोगों से ये मिश्र के लोग अधिक परिश्रम करवाते थे और यातनाएं देते थे, इस कारण ये लोग भागकर यहाँ आ गये।

        हेरोडोटस ने लिखा कि इथोपियो के मूल निवासी मैकोबियन हैं जो बहुत लम्बे, हृष्ट-पुष्ट और सुन्दर हैं। इनकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक होती है। ये मॉस और दूध खाते-पीते हैं। ये अपने मृतकों को पारदर्शी ताबूतों में बन्द करके दफनाते हैं। इनके पास सोना भी बहुत अधिक होता है। ये अपने कैदियों को भी सोने की जंजीरों में बांधते हैं। मैकोबियन लोगों से उसका तात्पर्य सोमालिया के लोगों से था जो आज भी इस प्रकार के रीति-रिवाज रखते हैं।

      अफ्रीका के उत्तरी तट के बारे में उन्हें पूरा ज्ञान था। इस क्षेत्र के पूर्वी भाग को उसने रेगिस्तानी और अनुपजाऊ तथा पश्चिमी भाग को वन आच्छादित तथा उपजाऊ बताया। रेगिस्तानी क्षेत्र में सीरीन नगर की स्थिति बताई गई है। यहाँ नील नदी के तटीय भागों पर उपजाऊ मिट्टी में खेती होती है। पश्चिमी उपजाऊ क्षेत्र में अच्छी वर्षा होती है और पहाड़ी घाटियों में भरपूर कृषि की जाती है। इस क्षेत्र का विस्तार हरक्यूलीज के स्तम्भ तक बताया गया है। ये सभी वर्णन आज के परिप्रेक्ष्य में सही हैं।

      हेरोडोटस ने तटीय भागों के दक्षिण में लीबिया नामक देश का वर्णन किया जहाँ मूक व्यापार होता है। यह आन्तरिक भागों में है। यहाँ के लोगों के पास सोना अधिक मात्रा में है। इसलिए कार्थेजियन लोग इस क्षेत्र में व्यापार के लिए जाते हैं। यहाँ मूक व्यापार होता है। व्यापारी माल से लदी नावें लेकर पहुँचते हैं तथा तटीय भागों पर आग व धुआ उत्पन्न करते हैं जिसे देखकर यहाँ के निवासी सोना लेकर आते हैं तथा तट पर रखकर कुछ दूर खड़े हो जाते हैं। यदि कार्थेजियन्स को अपने माल के बदले सोना पर्याप्त लगता है तो ही वे नाव से उतरकर माल उतारते हैं और सोना ले जाते हैं अन्यथा वे मूक बनकर नाव में ही बैठे रहते हैं। वास्तव में सहारा क्षेत्र में इस प्रकार का कोई क्षेत्र आजकल नहीं है जहाँ इतना अधिक सोना हो। शायद हैरोडोटस का तात्पर्य पश्चिमी अफ्रीकन क्षेत्रों से रहा हो जहाँ आज भी सोना मिलता है। 

       हैरोडोटस ने उस समय ज्ञात अफ्रीका के तीन जलवायु खण्ड किये। उसने कहा कि पहले खण्ड में तटीय मैदान जो नील-नदी डेल्टा से एटलस पर्वत तक फैले हैं। ये उपजाऊ क्षेत्र हैं जहाँ स्थायी कृषि होती है। परन्तु यहाँ कुछ घुमक्कड़ जातियाँ भी रहती हैं। इसके दक्षिण में घास के अधिक मैदान हैं जहाँ जंगली जानवर रहते हैं। तीसरा क्षेत्र मरुस्थली सहारा है जहाँ केवल मरुद्यानों में ही खेती की जाती है। उसने इस क्षेत्र के पाँच मरुद्यानों का भी वर्णन किया जो कि एक-दूसरे से दस दिन की यात्राओं पर स्थित हैं। इनके नाम अमोनियम, आंगीला, गारमैन्टस, एटारैन्स और अटलांटिस बताये गये। यद्यपि वर्तमान में इनके नाम बदल गये हैं परन्तु इन्हें सहारा मरुस्थल में आज भी पहचाना जाता है।

        हैरोडोटस ने इन अफ्रीकन क्षेत्रों में और मरुद्यानों को अपने मानचित्र में सही नहीं दिखाया। उस समय भूमि- मापन के सही तरीके ज्ञात नहीं थे और न ही मानचित्र कला विकसित हो पाई थी। इसलिये ये अशुद्धियाँ रह जाना स्वाभाविक था। फिर भी हेरोडोटस यूनानी भूगोल की एक महान् विभूति था जिसके ज्ञान का लाभ भावी भूगोलवेत्ताओं ने उठाया।


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