इमेनुअल काण्ट का भूगोल में योगदान

इमेनुअल काण्ट का भूगोल में योगदान

✍️ इमेनुअल काण्ट का जीवन परिचय

       इमेनुअल काण्ट का जन्म पूर्वी प्रशिया के कोनिंग्सबर्ग (लिनिनग्राड) में 22 अप्रेल, 1724 ई. को हुआ था। वह एक साधारण परिस्थितियों वाले जीनसाज और साज निर्माता का चौथा बालक था। उसके माता-पिता ने उसे कठोर धार्मिक मत जो उस समय रूसी अधिपत्य में 1758 ई. तक कोनिंग्सबर्ग में प्रचलित था, में पाला गया था। उसकी प्रारम्भिक शिक्षा उपनगरीय अस्पताल विद्यालय में हुई थी। विद्यालय के दिनों में काण्ट लेटिन भाषा के प्रति बहुत उत्साहित रहा था, अतः उसने प्राचीन उच्च भाषा शास्त्र में अध्ययन करने का मानस बना लिया था, बाद में वह लेटिन के एक विशेषज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसके स्थानीय नगर कोनिंग्सबर्ग के विश्वविद्यालय से उसने हाईस्कूल की परीक्षा पास की। 

       काण्ट की रुचि दर्शन, गणित व प्राकृतिक विज्ञानों में अधिक थी। कोनिग्सबर्ग विश्वविद्यालय से अपना अध्ययन पूरा कर लेने के पश्चात् उसने 1746 ई. से 1775 ई. के कुछ वर्षों तक कोंनिग्सबर्ग के निकट एक धनाढ्य परिवार में निजी शिक्षक का कार्य किया। वह अपने शिक्षक कार्यकाल में अपनी योग्यता के सम्बन्ध में पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं था किन्तु उसने यह समय आगे के अध्ययन और उत्साहपूर्वक पुस्तकों में लगाया। इमेनुअल काण्ट का बाद का जीवन एक विस्तृत अध्ययन वाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्धि का आधार बना।

✍️ इमेनुअल काण्ट का भूगोल में योगदान

          काण्ट ने भूगोल की रूपरेखा सामान्य भूगोल के रूप में मानी है। काण्ट ने तार्किक ढंग से सम्पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने में भूगोल की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ज्ञान दो प्रकार से प्राप्त होता है— (1) शुद्ध तर्क द्वारा, (2) इन्द्रियों के माध्यम से प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा। इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव या तो आन्तरिक इन्द्रियों से प्राप्त होता है या बाह्य इन्द्रियों से।

>> इमेनुअल काण्ट के भौगोलिक योगदान के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं :-

1. भूगोल के दार्शनिक आधार का शिलान्यासकर्ता – इमेनुअल काण्ट ने भूगोल के दार्शनिक आधार का शिलान्यास किया। दार्शनिक भूगोलवेत्ता इमेनुअल काण्ट का जर्मन भूगोलवेत्ताओं में महत्त्वपूर्ण स्थान है। काण्ट पराभौतिक शास्त्र तथा तर्कशास्त्र का अध्ययन कराते थे। काण्ट ने अनेक स्रोतों से अपने भौगोलिक अध्ययन के लिए आँकड़े एकत्रित किये। उसके भारी, दार्शनिक प्रकाशनों और व्याख्या के रूप में उसके अथक कार्यों की तुलना में भौगोलिक लिखित सामग्री जो उसने आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ी, वह अल्प और अपर्याप्त दिखती है।

2. भौतिक भूगोल – काण्ट की रुचि मुख्य रूप से भौतिक भूगोल में थी। काण्ट का भौतिक भूगोल वैसा नहीं था जैसा इसे हम जानते हैं और समझते हैं, क्योंकि उसमें मानव जातीय समूहों, उनकी पृथ्वी पर शारीरिक क्रियाओं और प्राकृतिक अवस्थायें उसके व्यापक शब्द के अर्थ में विवेचना की गई है। उसकी भौतिक भूगोल में रुचि आनुभाविक ज्ञान के समस्त क्षेत्र के दार्शनिक अनुसंधान से जाग्रत हुई थी। काण्ट एक सैद्धान्तिक भूगोलवेत्ता थे जिसने आनुभविक तथ्यों को वर्गीकृत करने का प्रयास किया। भौतिक भूगोल के सम्बन्ध में उसकी समझ यह थी कि यह केवल पृथ्वी गोलक की प्राकृतिक रचना और उस पर प्रत्येक वस्तु का अर्थात् महासागर, स्थल, पर्वत, नदियाँ, वायुमण्डल, मनुष्य, प्राणी और पौधों का मूल्यांकन किया जाता है। काण्ट के अनुसार मानचित्र द्वारा चित्रांकन कम महत्त्वपूर्ण है, उसके अनुसार जो मानचित्र आज उपलब्ध हैं उनका केवल शैक्षणिक और प्रदर्शन के उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें प्रकृति का अध्ययन किया जाता है। भौतिक भूगोल को ही अन्य सभी शाखाओं का आधार माना है, जिनका सम्बन्ध स्थल व नियत से है। अतः भौतिक भूगोल संसार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक अनिवार्य विषय है।

3. भूगोल व इतिहास — प्रत्येक व्यक्ति का दिक्काल और समय के सम्बन्ध में अनुभव सीमित होता है इसलिए व्यक्ति को उसके अनुभव को दूसरे अनुभवों से पूरा करना चाहिए, जो प्रेक्षण किया गया है उसकी विश्वसनीयता के बारे में हमेशा ध्यान रखना चाहिए। इस प्रकार उधार लिया हुआ अप्रत्यक्ष अनुभव दो प्रकार का होता है-वह या तो विवरणात्मक अथवा वर्णनात्मक होते हैं। प्रथम विवरणात्मक इतिहास है और दूसरा वर्णनात्मक भूगोल है। इस प्रकार आनुभाविक ज्ञान भी दिक्काल और समय से वर्गीकृत किया जाता है। दिक्काल के सन्दर्भ में तथ्यों का अध्ययन भूगोल है और समय के सन्दर्भ में अध्ययन इतिहास है। इस सम्बन्ध में काण्ट ने यह प्रस्तुत किया था कि भूगोल केवल समय और आकाश (दिक्काल और समय) के विचार से इतिहास में अन्तर है। इतिहास तथ्यों का एक विवरण होता है जो एक-दूसरे के बाद अनुकरण करते हैं और जिनका सन्दर्भ समय से होता है, बाद वाला भूगोल दिक्काल में एक-दूसरे के अतिरिक्त तथ्यों का विवरण होता है। इतिहास आख्यान है और भूगोल विवरणात्मक है।

     काण्ट ने यह प्रश्न भी प्रस्तुत किया था कि भूगोल अथवा इतिहास में से पहले कौन है ? उसने यह समाधान प्रस्तुत किया था कि भूगोल सभी समय में रहा है और यह इतिहास का आधार है। इस प्रकार से यदि इतिहास प्राचीन है तो भूगोल भी प्राचीन है जो इतिहास की घटनाओं को यह स्पष्ट करने में सहायता करता है। भौतिक भूगोल प्रकृति की रूपरेखा होती है और न केवल इतिहास का आधार बनती है वरन् सभी संभव भूगोलों का आधार भी होती है। भूगोल और इतिहास एक ही प्रकार के हैं क्योंकि ये दोनों संगठित विज्ञान हैं जिनके द्वारा विश्व का अध्ययन किया जाता है इसलिए इन दोनों के बीच व्यापक और पारस्परिक सम्बन्ध हैं। यद्यपि इनका संगठित आधार एक प्रकार से विपरीत है। भूगोल का संदर्भ पृथ्वी के अन्तराल से है जबकि इतिहास का सन्दर्भ समय से है।

4. गणितीय भूगोल – इसमें पृथ्वी की आकृति, आकार एवं गतियों का अध्ययन किया जाता है। इसमें सौरमण्डल की अवस्थिति का भी अध्ययन किया जाता है। काण्ट पृथ्वी को लगभग एक गोभाल आकाशीय पिण्ड के रूप में मानकर अध्ययन करता है। 

5. नैतिक भूगोल – भूगोल की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है जिसमें मानव के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, अनुष्ठानों और विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। वर्तमान सांस्कृतिक एवं सामाजिक भूगोल इसी के विकसित रूप हैं। उदाहरण के लिए पूर्वी सभ्यताओं में पितृ हत्या अत्यधिक भयानक कृत्य माना जाता है किन्तु इसके विपरीत लैपलैण्ड जहाँ शिकार करते पिता के घायल हो जाने पर वह आशा करता है कि उसका पुत्र उसकी हत्या कर देगा।

6. राजनैतिक भूगोल – राजनैतिक भूगोल में प्रकृति और मानव के बीच अन्तर्सम्बन्धों का परिणाम, पृथ्वी का व्यक्तियों और राष्ट्रों की स्थितियों जो एक-दूसरे में व्याप्त रहते हैं, का दो प्रकार से मूल्यांकन किया जाता है। पहले तरीके के अनुसार यह देखा जाता है कि कैसे प्रासंगिक कारणों के द्वारा मानव व्यवस्था विकसित होती है। जैसे सरकारों में परिवर्तन, क्षेत्रों का अनुयोजन और राजनैतिक कुचक्र, यह सब क्षणिक हो सकते हैं किन्तु दूसरा ढंग अधिक स्थायी लक्षण होता है जैसे कि देशों की स्थिति और उनकी अवस्थिति और अवस्था, उनके उत्पाद, व्यापार, रीति-रिवाज और जनसंख्या। दोनों ही प्रकार से उनके अनिवार्य सम्बन्धों से समस्त चित्र को सहयोग करते हैं। इसके अन्तर्गत प्रादेशिक व राजनीतिक भूगोल दोनों समाविष्ट हैं।

7. व्यापारिक भूगोल – काण्ट ने स्थानिक विभिन्नता को मद्देनजर रखते हुए बताया कि किसी भौगोलिक क्षेत्र में किसी वस्तु का उत्पादन आवश्यकता से अधिक हो सकता है, जबकि इसके क्षेत्र में आवश्यकता से कम सम्भव है। इस भिन्नता के सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रारम्भ होता है, जिसके तहत दो क्षेत्रों में अधिकता व कमी वाली वस्तु का आदान-प्रदान होता है। काण्ट के सरल शब्दों में अर्थात् भूगोल की वह शाखा, क्यों किसी देश में किसी वस्तु का उत्पादन अधिक होता है और किसी अन्य देशों में उसका उत्पादन कम होता है, जिसके तहत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति उत्पन्न होती है, का कारण ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है।

8. धर्म या अध्यात्म भूगोल – इसे वातावरण विश्वास भूगोल भी कहते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के भौगोलिक वातावरणों में, धार्मिक सिद्धान्तों में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ सुदूर चीन, जापान एवं कोरिया इत्यादि के धर्म, विश्वास तथा यूरोपीय ईसाइयों के धार्मिक विश्वासों में काफी अन्तर पाया जाता है जिसकी भिन्न भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं।

✍️ इमेनुअल काण्ट के योगदान का निष्कर्ष

       काण्ट ने यह बताया कि भूगोल के अध्ययन की अधिक आवश्यकता है जिसके द्वारा हमारे तर्क-वितर्कों के लिए पर्याप्त सामग्री मिलती है। इसके अतिरिक्त काण्ट के कुछ महत्त्वपूर्ण भौगोलिक योगदानों का नीचे संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है—

1. आकाश की अवधारणा के सन्दर्भ में उसने दृढ़तापूर्वक कहा कि आकाश एक सापेक्ष अवलोकिता दृश्य है जो पदार्थ में सम्बन्धों का तंत्र होता है और आकाशीय विस्तार इसलिए केवल पदार्थ द्वारा कार्यकारी शक्तियों की तीव्रता का प्रयास है। काण्ट ने 1707 ई. में कहा था कि आकाश न कोई वस्तु है और न कोई परिणाम है, यह वस्तुओं और परिणामों का ढाँचा है, कबूतरों के कोष्ठ के समान एक क्रम है अथवा एक सन्दर्भ को शक्ति कहा जा सकता है, जो अनुभव पर आधारित नहीं है किन्तु अन्तर्ज्ञान रीति से अनुभव में उपयोग किया जाता है और अनुभव पर उचित रीति से लागू होता है।

2. ज्ञान के बारे में काण्ट के विचार थे कि यह या तो शुद्ध तर्क के प्रयोग द्वारा अथवा अनुभूति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और मानव के साथ-साथ ये मनुष्य के समस्त आनुभाविक ज्ञान का संसार प्रस्तुत करते हैं। विश्व जो आंतरिक अनुभूति से समझा जाता है आत्मा होती है अर्थात् जिसे आत्मा जैसा कि प्रकृति में बाह्य अनुभूति द्वारा देखा जाता है। 

3. काण्ट ने बताया कि आनुभाविक तथ्यों को क्रमबद्ध अध्ययन करने के उद्देश्य से आनुभाविक तथ्यों को दो विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने के तरीके हैं। तथ्यों का वर्गीकरण या तो प्रकृति के अनुसार किया जा सकता है अथवा उसके आकाश और काल में स्थिति के अनुसार किया जा सकता है। पहला वर्गीकरण तार्किक है जबकि दूसरा वर्गीकरण भौतिक। तार्किक वर्गीकरण, क्रमबद्ध विज्ञान के लिए आधार प्रस्तुत करता है।


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