वारेनियस का भूगोल में योगदान

वारेनियस का भूगोल में योगदान

        बर्नहार्ड वारेनियस (1622-1650 A.D.) का वास्तविक नाम बनहार्ड वारेन है। इनका जन्म 1622 में हेम्बर्ग के निकट हिजेकर नामक कस्बे में हुआ था। यह स्थान एल्ब नदी के तट पर स्थित है। वारेनियस एक युवा प्रतिभावान भूगोलवेत्ता थे जिन्हें वर्तमान भूगोल संस्थापकों में से एक माना जाता है। उन्होंने 18 वर्ष की आयु में ही हेम्बर्ग विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र, गणित, भौतिकी तथा जीव विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। आयुर्विज्ञान में दो बार इनका प्रवेश हुआ लेकिन रुचि नहीं होने के कारण इस क्षेत्र में अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके। इसके पश्चात् 1647 में एम्स्टरडम में एक परिवार में निजी शिक्षक का कार्य प्रारम्भ किया जहाँ उनकी भूगोल के प्रति रुचि बढ़ती गई। यहाँ पर उन्होंने 3 वर्ष तक कार्य किया। उस समय एस्टरडम एक व्यस्त व्यापारिक केन्द्र था जहाँ डच व्यापारी सुदूरवर्ती प्रदेशों (दक्षिणी-पूर्व एशिया, प्रशान्त महासागर के द्वीपों तथा जापान) में अधिक सक्रिय थे। डच भौगोलिक अवस्थाओं, उत्पादों, व्यापारिक वस्तुओं, नगरों, बन्दरगाहों तथा लोगों के सामाजिक जीवन और संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने को उत्सुक रहते थे। इस बात का वारेनियस पर भूगोल के अध्ययन और रुचि की दृष्टि से गहरा प्रभाव पड़ा।

✍️ वारेनियस की प्रमुख रचनाएँ

वारेनियस की दो रचनाएँ प्रमुख हैं जिन्हें विभिन्न खण्डों में विभक्त किया गया।

जापान और स्याम का भौगोलिक वर्णन (1649)

पाँच भागों में-

(A) जापान का वर्णन

(B) स्काओटन के द्वारा स्याम के वर्णन का लैटिन अनुवाद

(C) जापान के धर्मों पर एक निबन्ध 

(D) लियो अफ्रीकानास द्वारा अफ्रीका के धर्मों पर लिखे गये लेखों का सार

(E) स्याम पर एक लघु निबन्ध

सामान्य भूगोल (1650)

दो भागों में –

(A) सामान्य या विश्व भूगोल

(a) निरपेक्ष या सार्वभौम भाग

(b) सापेक्षिक भाग

(c) तुलनात्मक भाग

(B) विशिष्ट या क्षेत्र विवरण भूगोल

(a) खगोलीय गुणधर्म 

(b) पार्थिक गुणधर्म

(c) मानवीय गुणधर्म

    जर्मन भूगोलवेत्ता वारेनियस को न केवल 17वीं शताब्दी का वरन् मध्यकालीन अवधि का सर्वश्रेष्ठ भूगोलवेत्ता माना जाता है। उनका प्रमुख योगदान खगोलविद्या और मानचित्रकला में माना जाता है तथा उनके समय के विभिन्न सिद्धान्तों का समालोचनात्मक विश्लेषण किया।

     उन्होंने भूगोल को सामान्य और विशिष्ट दो वर्गों में विभक्त किया जिससे क्रमशः क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल का विकास हुआ। इस प्रकार उन्होंने क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल की द्वैधता का शुभारम्भ किया। अतः वारेनियस को द्वैतवाद का जनक कह सकते हैं।

       वारेनियस ने अपनी द्वितीय रचना ‘सामान्य भूगोल’ को दो महत्वपूर्ण खण्डों में विभक्त किया जिससे प्रथम खण्ड को सामान्य या विश्व भूगोल तथा द्वितीय खण्ड को विशिष्ट या क्षेत्र विवरण भूगोल नाम दिया। प्रथम खण्ड विश्व भूगोल में अधिकांश गणितीय एवं खगोल विज्ञान सम्बन्धी पक्ष थे। इस प्रथम खण्ड को भी निम्नलिखित तीन उपविभागों में विभाजित किया गया।

(A) निरपेक्ष या सार्वभौम भाग – इसमें पृथ्वी उसके स्वरूप, विस्तार एवं भूमण्डल पर जल-थल का वितरण एवं मैदान, पर्वत, शुष्क एवं आर्द्रस्थल, मरुस्थल, जलमण्डल की विशेषता एवं वायुमण्डल के प्रारम्भिक तथ्यों का वर्णन दिया गया। इसे भौमिक या पार्थिव भाग भी कहते हैं।

(B) सापेक्षिक भाग — इस भाग में भू-ग्रहीय सम्बन्ध गतियाँ, सूर्य व पृथ्वी के सम्बन्ध, अक्षांश-देशान्तर ज्ञात करना, जलवायु एवं जलवायु खण्ड आदि का वर्णन किया गया। इसे ग्रहीय भाग भी कहते हैं।

(C) तुलनात्मक भाग—इसमें भूमण्डल का सामान्य विवरण प्रस्तुत किया गया। इसमें भू-तल के विभिन्न स्थानों को स्थिति, महत्त्वपूर्ण भौतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों का विकास, विभिन्न महासागरों-सागरों, उनकी भूमध्य एवं फारस की खाड़ी जैसी विस्तृत इकाइयों का वर्णन प्रस्तुत किया गया। विभिन्न स्थानों तथा क्षेत्रों की सापेक्षिक स्थिति बताई गई नौसंचालन के सिद्धान्तों को समझाया गया।

      वारेनियस के ग्रंथ ‘सामान्य भूगोल’ के दूसरे खण्ड को विशिष्ट या क्षेत्र विवरण भूगोल नाम दिया गया जिसका पूरा A Complete System of General Geography’ Explaining the Nature & Properties of the Earth है। ग्रन्थ में इस दूसरे खण्ड का प्रारम्भिक भाग ही लिखा जा सका क्योंकि 28 वर्ष की अल्पायु में ही वारेनियस को मृत्यु हो गई थी। इस प्रकार इस खण्ड की विस्तृत रुपरेखा तैयार कर तीन उप-भागों में विभक्त किया गया था।

(A) खगोलीय गुणधर्म — इसमें आकाशीय पिण्डों के वायुमण्डल एवं जलवायु का विवरण सम्मिलित किया गया था।

(B) पार्थिव गुणधर्म—इसमें विभिन्न देशों की स्थिति, उच्चावच, पर्वत, पठार, मैदान, सागर, नदियों, वनों, मरुस्थलों तथा पशुजीवन का विवरण सम्मिलित किया गया था। 

(C) मानवीय गुणधर्म – इसमें विभिन्न देशों के लोगों, उनके परिवहन, व्यापार और सरकारों को लिखा गया था। वारेनियस ने मानव भूगोल को विशेष भूगोल की श्रेणी में रखा था जिसका कारण प्रथाओं का पालन करना बताया था।

      वारेनियस के इस ग्रंथ की प्रामाणिकता पर विश्वस्त होकर प्रसिद्ध गणितज्ञ न्यूटन ने इसका अंग्रेजी अनुवाद करवाया। वारेनियस द्वारा वर्णित भौतिक भूगोल तथा जल विज्ञान के पक्ष अधिक महत्त्वपूर्ण हैं जिसमें जलीय चक्र का आभास मिलता है। इन्होंने अपरदन और निक्षेप को भी भलीभाँति समझाया है।

✍️ वारेनियस का योगदान

         हार्टशोर्न ने अपने ग्रंथ में वारेनियस के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि क्रमबद्ध भूगोल का सबसे बड़ा ग्रंथ वारेनियस ने लिखा था। उनके ग्रंथ ‘सामान्य भूगोल’ को काम्ट और हम्बोल्ट ने आगे चलकर ‘भौतिक भूगोल’ नाम दिया। वारेनियस के अनुसार ‘सामान्य भूगोल’ विज्ञान का वह भाग है, जिसके अन्तर्गत पृथ्वी का सामान्य अध्ययन किया जाता है तथा साथ ही पृथ्वी के विभिन्न भागों तथा सभी परिघटनाओं का विवरण दिया जाता है जो पूर्ण इकाई को प्रभावित करते हैं।

       1649 में वारेनियस के ‘जापान एवं थाइलैण्ड (स्याम) का प्रादेशिक भूगोल’ एवं ‘जापान का धर्म’ नामक ग्रंथ प्रकाशित हुए जिनमें उनकी चिन्तन शैली को प्रारम्भिक स्तर पर ही स्पष्ट कर दिया गया। इन पुस्तकों में अधिकांश भागों में मानवीय पक्षों का विवरण दिया गया था।

     वारेनियस ने ही सर्वप्रथम मनुष्य को भूपृष्ठ का अभिन्न अंग माना तथा स्पष्ट किया कि भौगोलिक स्थिति तथा जलवायु का प्रभाव मानव जीवन, सभ्यता-संस्कृति, रहन-सहन, उद्योग, व्यापार आदि पर पड़ता है। इस दृष्टि से वे नियतिवादके समर्थक माने जाते हैं।


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