राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता | Lokdevata

राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता

  • क्षेत्रीय स्तर पर समय-समय पर उत्कृष्ट कार्य, बलिदान, उत्सर्ग या परोपकार करने वाले महापुरुषों को लोक देवता या पीर कहा जाता है
  • भूमि रक्षक देवताओं को भौमिया कहा जाता है। 
  • गांव रक्षक देवताओं को क्षेत्रपाल कहा जाता है। 
  • मारवाड़ के पंच पीर निम्न प्रकार है। गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी, रामदेव जी, मेहा जी।

पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया मेहा। 

पाँचों पीर पधारजो गोगाजी गेहा।।


लोकदेवता रामदेवजी


  • बाबा रामदेव राजस्थान के सर्वाधिक आराध्य लोकदेवता है। रामदेव जी रामसा पीर, रुणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध है।
  • रामदेव जी को कृष्ण का तथा उनके बड़े भाई बीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है। 
  • डॉ. सोनाराम विश्नोई के अनुसार रामदेवजी का जन्म वि.स.1409 को उंडूकाश्मीर गाँव (शिव – तहसील, बाड़मेर ) में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को हुआ।
  • इनके पिता का नाम – अजमलजी तंवर, माता-मैणादे, पत्नी – निहालदे /नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थी। ये कृष्ण के वंशज माने जाते है।
  • इनके गुरु का नाम – बालीनाथ है। बालीनाथजी का मन्दिर मसूरिया, जोधपुर में स्थित है।
  • रामदेव जी मल्लीनाथ के समकालीन माने जाते है।
  • रामदेव जी हड़बूजी व पाबूजी के समकालीन भी माने जाते है। 
  • इन्होंने रूणेचा (जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल पर भाद्रपद शुक्ला दशमी को समाधि ली थी।
  • हिन्दु रामदेवजी को कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान रामसा पीर के रुप में इनकी पूजा करते है। 
  • रामदेवजी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी मुँह बोली बहिन डाली बाई ने एक दिन पहले समाधि ली।
  • रामदेवजी की सगी बहिनो के नाम लाछा बाई, सुगना बाई है। सुगना बाई का विवाह पुंगलगढ़ के पड़िहार राव विजयसिंह के साथ हुआ था।
  • बाबा रामदेव के चमत्कारों को परचा कहा जाता है। परचा शब्द से तात्पर्य परिचय से है। परिचय से तात्पर्य उनके अवतारी होने का परिचय देना है।
  • रामसापीर उपनाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल में कई परचे (चमत्कार) दिखाये। उन्होंने मक्का से पधारे पंचपीरों को भोजन कराते समय उनका कटोरा प्रस्तुत कर उन्हें चमत्कार दिखाया जिससे मक्का के उन पीरों ने कहा कि हम तो केवल पीर हैं, पर आप तो पीरों के पीर हैं। लखी बणजारा को परचा, रामदेव जी द्वारा तांत्रिक भैरव का वध, समाज सुधारक के रुप में जम्मा जागरण अभियान आदि जनमानस में प्रचलित है।
  • इन्होंने सातलमेर (पोकरण) में भैरव राक्षस का वध किया था।
  • इनके प्रमुख शिष्य- हरजी भाटी, आईमाता है। 
  • नेजा – रामदेवजी की पचरंगी ध्वजा को कहा जाता है।
  • जातरु – रामदेवजी के तीर्थ यात्री को कहा जाता है।
  • देवरा – रामदेवजी के मंदिर को कहा जाता है।
  • थान – रामदेवजी के कंदब के वृक्ष के नीचे बनाए गए स्थान को बोला जाता है।
  • रामदेव जी के भक्त इन्हें कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते है।
  • रिखियां – रामदेवजी के मेघवाल भक्त को कहा जाता है।
  • बाबे री बीज – रामदेवजी का जन्मदिवस बाबे री बीज के नाम से जाना जाता है।
  • जम्मा जागरण – रामदेव जी द्वारा शोषण के विरुद्ध चलाया गया जनजागरण अभियान, जिसमें वे जिस गांव में जाते उसमें वे किसी अछूत कहे जाने वाले व्यक्ति के घर ही ठहरते थे। रात के समय भजन कीर्तन के लिए लोगों को इकट्ठा किया जाता था। 
  • रामदेवजी ने पश्चिमी भारत में मतान्तरण व्यवस्था को रोकने हेतु प्रभावी भूमिका निभाई थी।
  • यूरोप की क्रांति से बहुत पहले रामदेवजी द्वारा हिन्दु समाज को दिया गया संदेश समता और बंधुता था।
  • रामदेवजी को कुष्ठ रोग निवारक देवता व हैजा रोग के निवारक देवता के रुप में भी माना जाता है।
  • रामदेव जी का वाहन लीला घोड़ा था जिसका रंग सफेद था।
  • रामदेवजी द्वारा कामड़ पंथ की स्थापना की गई थी। राजस्थान में कामड़ पंथियों का प्रमुख केन्द्र पादरला गाँव (पाली) है, इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते हैं।
  • तेरहताली नृत्य – रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाएं मंजीरे वाद्य यंत्र का प्रयोग करके प्रसिद्ध तेरहताली नृत्य करती हैं।
  • प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को रामदेवरा (जैसलमेर) में बाबा रामदेवजी का भव्य मेला भरता है। पश्चिमी राजस्थान का यह सबसे बड़ा मेला साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए प्रसिद्ध है। रामदेवजी को पश्चिमी राजस्थान में इस्लामीकरण को रोकने का श्रेय भी दिया जाता है
  • रामदेवजी का प्रतीक चिह्न-पगल्यां (पत्थर पर उत्कीर्ण रामदेवजी के प्रतीक के रूप में दो पैर)। 
  • रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि थे। चौबीस वाणियां रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है।
  • रामदेवजी की फड़ को बीकानेर व जैसलमेर में ब्यावले भक्तों के द्वारा बाँचा जाता है।
  • रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। रामदेवजी के वंशज मृतक व्यक्ति को दफनाते है।
  • रामदेवजी के प्रमुख पूजा स्थल
    1. रामदेवरा / रुणेचा    –  जैसलमेर
    2. मसूरिया                –   जोधपुर
    3. बिराठिया              –    पाली
    4. बिठूजा                 –    बालोतरा बाड़मेर
    5. सुरताखेड़ा             –    चित्तौड़गढ़ 
    6. छोटा रामदेवरा        –   जूनागढ़, गुजरात

लोकदेवता गोगाजी चौहान


  • पंच पीरों में सर्वाधिक प्रमुख स्थान गोगाजी चैहान का है। इनका जन्म विक्रम संवत् 1003 में, ददरेवा (चूरू) में हुआ। इनके पिता का नाम – जेवरजी चौहान तथा माता का नाम बाछल दे, एवं पत्नी का नाम राजकुमारी केलमदे (मेनलदे), (कोलुमण्ड,फलौदी, जोधपुर ) था। इनके गुरु का नाम योगी गोरखनाथ था।
  • केलमदे की मृत्यु साँप के काटने से हुई जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने अग्नि अनुष्ठान किया। जिसमें कई साँप जलकर भस्म हो गये फिर साँपों के मुखिया ने आकर उनके अनुष्ठान को रोककर केमलदे को जीवित किया। तभी से गोगाजी साँपों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • गुजराती पुस्तक श्रावक वृतादि- अतिचार, रणकपुर प्रशस्ति व दयालदास री ख्यात के अनुसार इन्होंने अपने चचेरे भाई अर्जुन सुर्जन के साथ भूमि विवाद पर युद्ध करते हुए वीरगति पाई थी। युद्ध करते समय गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेड़ी (शीषमेड़ी) तथा धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धड़मेड़ी / धुरमेड़ी / गोगामेड़ी भी कहते हैं।
  • बिना सिर के ही गोगाजी को युद्ध करते हुए देखकर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहर पीर ( प्रत्यक्ष पीर ) कहा। 
  • उत्तर प्रदेश में गोगाजी को जहर उतारने के कारण जहर पीर / जाहर पीर भी कहते हैं।
  • गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया।
  • गोगामेड़ी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है तथा इसकी आकृति मस्जिदनुमा है।
  • गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है।
  • प्रतिवर्ष गोगानवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) को गोगाजी की याद में गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ में भव्य मेला भरता है।
  • गोगाजी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं। 
  • गोगामेड़ी में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी है। मुस्लिम पुजारी को चायल कहा जाता है।
  • गोगाजी का प्रतीक चिन्ह सर्प हैं।
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी का निवास स्थान माना जाता है।
  • ‘गोगाजी की ओल्ड़ी’ नाम से प्रसिद्ध गोगाजी का अन्य पूजा स्थल किलोरियों की ढाणी साँचौर (जालौर) में स्थित है। मान्यता है कि इसकी स्थापना पाटम के दो भाइयों द्वारा की गई थी।
  • केरिया गांव के कुम्हार राजाराम ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • गोगाजी की पूजा घरों में मिट्टी का घोड़ा बनाकर अश्वारोही योद्धा के रुप में की जाती है।
  • गोगाजी से सम्बन्धित वाद्ययंत्र डेरु है।
  • गोगाजी के भक्त नृत्य करते समय नगाड़ा या ढोल वाद्य यंत्र का प्रयोग करते है जिसे माठ कहते है।
  • किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी गोगाराखड़ी बांधते हैं। इसमें नौ गांठे होती है।
  • इनकी सवारी नीली घोड़ी है। जिसे गोगा बाप्पा के नाम से भी जाना जाता है।
  • कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गोगाजी ने अपने 47 पुत्रों एवं 60 भतीजों के साथ सतलज या चिनाब नदी को पारकर महमूद गजनवी से युद्ध किया और अपने पूरे परिवार की आहूति दे दी। गोगाजी ने 11 बार मुसलमानों से युद्ध किया था।
  • कायम सिंह गोगाजी के 17वीं पीढ़ी का शासक, जिसे बलपूर्वक मुसलमान बना दिया गया और इनके वंशज कायमखानी मुसलमान कहलाए।
  • गोगामेड़ी के चारों तरफ के जंगल को गोगाजी की पणी, रोपण एवं जोड़ के नाम से जाना जाता।

लोकदेवता पाबूजी राठौड़


  • पाबूजी का जन्म 1239 ई. में कोलुमण्ड / कोलूगढ़ गाँव (फलौदी,जोधपुर) में हुआ।
  • इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़, माता का नाम कमलादे एवं पत्नी का नाम फूलमदे / सुपियार दे सोढ़ी है। 
  • पाबूजी राठौड़ राजवंश से संबंधित है। राठौड़ों के मूलपुरुष राव सीहा के वंशज है।
  • फूलमदे अमरकोट के राजा सूरजमल सोढ़ा की पुत्री थी। 
  • मारवाड़ में साण्डे (ऊँटनी) लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है।
  • पाबूजी ऊँटों के देवता, गौरक्षक देवता, हाड़-फाड़ वाले देवता तथा प्लेग रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध है।
  • पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। 
  • ऊंटों की पालक जाति राईका / रेबारी / देवासी के आराध्य देव पाबूजी हैं।
  • पाबूजी की घोड़ी का नाम केसर कालमी है यह काले रंग की घोड़ी उन्हें देवल चारणी ने दी, जो जायल, नागौर के काछेला चारण की पत्नी थी।
  • पाबूजी की फड़ नायक जाति के भील भोपे रावण हत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं। पाबूजी की फड़ चाँदी की फड़ है।
  • पाबूजी की स्मृति में इनके उपासक थाली नृत्य करते है। 
  • पाबूजी ने थोरी जाति के बहिष्कृत लोगों को आश्रय दिया था। 
  • पाबूजी की जीवनी पाबू प्रकाश के रचयिता – आशिया मोड़जी है।
  • पाबूजी विवाह के चौथे फेरे के बीच में ही विवाह छोड़ गायों को बचाने पहुँचे। बहनोई जायल (नागौर के शासक) जींदराव खींची से युद्ध लड़ते हुए 1276 ई. में देंचूँ (जोधपुर) में 37 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए। इसलिए पाबूजी के अनुयायी आज भी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फेरे ही लेते है।
  • पाबूजी की पत्नी उनके वस्त्रों के साथ सती हुई। इस युद्ध में पाबूजी के भाई बूड़ोजी भी शहीद हुए। 
  • जींदराव खींची से युद्ध की जानकारी मर्दुम शुमानी रिपोर्ट 1891 से प्राप्त होती है।
  • पाबूजी के भतीजे व बूड़ोजी के पुत्र रुपनाथ जी ने जींदराव खींची को मारकर अपने पिता व चाचा की मृत्यु का बदला लिया। रुपनाथ जी को भी लोकदेवता के रूप में पूजते हैं।
  • राजस्थान में रुपनाथ जी के प्रमुख मंदिर कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) तथा सिम्भूदड़ा (नोखा मण्डी, बीकानेर ) में है। हिमाचल प्रदेश में रुपनाथ जी को बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है।
  • मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर नाम से पुकारते है।
  • हरमल व चाँदा डेमा, सलजी सोलंकी पाबूजी के रक्षक थे
  • माघ शुक्ला दशमी तथा भाद्रपद शुक्ला दशमी को कोलुमण्ड गाँव (फलौदी, जोधपुर) में पाबूजी का प्रसिद्ध मेला भरता है।
  • पाबूजी के पवाड़े / पावड़े ( गाथा गीत ) प्रसिद्ध है, जो माठ वाद्य यंत्र के साथ गाये जाते हैं।
  • इनका प्रतीक चिन्ह भाला लिए हुए अश्वारोही तथा बायीं ओर झुकी हुई पाग है।
  • राजस्थान में ऊँटों के बीमार होने पर पाबूजी की पूजा की जाती है। 
  • पाबूजी अल्पआयु में ही छुआछूत का विरोध करते थे।

लोकदेवता हड़बूजी


  • मारवाड़ के पंच पीरों में से एक हड़बूजी है जिनके पिता का नाम मेहाजी सांखला है। इनका जन्म भूंडोल, नागौर में हुआ था। 
  • यह जोधपुर के शासक जोधाजी के समकालीन थे।
  • हड़बूजी बाबा रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। इनके गुरु बालीनाथ थे।
  • हड़बूजी को वचन सिद्ध पुरुष / चमत्कारी पुरुष / योगी संन्यासी / वीर योद्धा आदि उपनामों से जाना जाता है। 
  • संकटकाल में हड़बूजी ने जोधपुर के राजा राव जोधा को तलवार भेंट की और राव जोधा ने इन्हें बैंगटी (फलौदी, जोधपुर ) की जागीर प्रदान की।
  • बैंगटी में इनका प्रमुख पूजा स्थल है। यहाँ हड़बूजी की गाड़ी (छकड़ा / ऊँट गाड़ी) की पूजा होती है। इस गाड़ी में हड़बूजी विकलांग गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते थे। 
  • हड़बू जी के पुजारी सांखला राजपूत होते है। 
  • इनके मंदिर का निर्माण 1721 ई. में जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था।
  • हड़बूजी के मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती।
  • हड़बूजी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे।
  • हड़बूजी की सवारी सियार मानी जाती है। 
  • समाधि लेने के बाद रामदेवजी ने हड़बूजी को दर्शन देकर एक रतन कटोरा व सोहन चुटिया भेंट की थी। 
  • हड़बूजी ने रूणेचा में बाबा रामदेवजी के समाधि लेने के आठ दिन बाद स्वंय जीवित समाधि ली थी

लोकदेवता मेहाजी मांगलिया जी


  • मांगलियों के ईष्ट देव होने के कारण इन्हें मांगलिया मेहाजी कहा जाता है।
  • इनके पिता का नाम – गोपालराज सांखला था। ये राव चूड़ा के समकालीन थे।
  • इनके घोड़े का नाम-किरड़ काबरा था।
  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया और उससे युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
  • बापिणी गाँव (ओसियां, जोधपुर ) में इनका प्रमुख पूजा स्थल है। जहाँ कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी ) को लोकदेवता मेहाजी की जन्माष्टमी मनाई जाती है।

लोकदेवता वीर तेजाजी


  • ‘मारवाड़ का जाट’ में भाट छोटूनी की बही अनुसार इनका जन्म – 1074 ई. (वि.स. 1131 ), खड़नाल / खरनाल (नागौर) में, माघ शुक्ला चतुदर्शी को हुआ। 
  • तेजाजी धौल्या गोत्र के नागवंशीय जाट थे। इनके पिता का नाम-ताहड़जी जाट, माता का नाम – राजकुंवरी / रामकुंवरी, पत्नी-पेमलदे ( पनेर के रायचन्द्र की पुत्री थी)।
  • तेजाजी ने लाछा गुर्जरी की गायों को मेर (वर्तमान आमेर) के मीणाओं से छुड़ाया।
  • सुरसरा (किशनगढ़, अजमेर) में जीभ पर साँप काटने से तेजाजी को वीरगति प्राप्त हुई।
  • इनकी घोड़ी का नाम लीलण (सिणगारी) था।
  • तेजाजी की मृत्यु की सूचना उनकी घोड़ी ने घर आकर दी।
  • तेजाजी के पुजारी को घोड़ला कहते थे। 
  • काला और बाला के देवता, धौलियावीर, कृषि कार्यों के उपकारक देवता, गौरक्षक देवता के रूप में पूजनीय। 
  • अजमेर व नागौर में विशेष पूजनीय। 
  • तेजाजी की याद में प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ला दशमी ) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है। 
  • सेंदरिया, ब्यावर, भावतां, सुरसरा (अजमेर) तथा खरनाल (नागौर) में तेजाजी के प्रमुख पूजा स्थल है।
  • साँप काटने पर तेजाजी के भोपे चबूतरे (तेजाजी के थान ) पर पीड़ित व्यक्ति को ले जाकर गौमूत्र से कुल्ला करके तथा दाँतों में गोबर की राख दबाकर साँप कांटे हुए स्थान से जहर चूसना प्रारम्भ करता है।
  • तेजाजी पर 2011 में पाँच रुपये का डाक टिकट जारी किया गया था।
  • राज्य में किसान हल चलाने से पूर्व तेजाजी का स्मरण करते है तथा तेजाजी को लेकर रचे गए लोक साहित्य को तेजा टेर/ तेजा गीतकहा जाता है।

लोकदेवता देवनारायणजी


  • देवनारायाण जी का जन्म 1243 ई. (वि.सं. 1300 ) में बगड़ावत वंश के नागवंशीय परिवार में हुआ। इनका वास्तविक नाम उदयसिंह था। इनकी शिक्षा देवास (मध्यप्रदेश) में हुई।
  • इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं।
  • देवनारायण जी को उदलजी / उदल भगवान / औषधियों वाला देवता के उपनाम से जाना जाता है।
  • इनको आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान था इसी कारण इन्हें आयुर्वेद का ज्ञाता भी कहा जाता है।
  • इनके दादा का नाम बाघसिंह, पिता का नाम सवाईभोज, माता का नाम सेढू देवी तथा पत्नी का नाम पीपलदे है।
  • इनके घोड़े का नाम लीलागर था।
  • देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही इनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से संघर्ष करते हुए अपने 23 भाईयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायणजी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा बगड़ावत महाभारत के रुप में प्रसिद्ध है। 
  • देवजी की फड़ – गुर्जर जाति के कुँआरे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
  • 1 मंतर = 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना गया है।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • यह एकमात्र लोकदेवता है जिनकी फड़ पर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी किया (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट)।
  • गुर्जरों का तीर्थ स्थल- सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा) में है। जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मेला लगता है।  
  • जोधपुरिया धाम (टोंक), देवडूंगरी (चित्तौड़गढ़) में देवनारायण जी के अन्य पूजा स्थल है।
  • महाराणा सांगा के आराध्य देव देवनारायणजी थे। इसके कारण सांगा ने चित्तौड़गढ़ में देवनारायण जी के मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • देवमाली (ब्यावर,अजमेर ) में भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को देवनारायण जी का देहान्त हुआ था।
  • देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है।
  • देवनारायण के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईंटों की पूजा की जाती है।
  • देवनारायण जी ने भिनाय (अजमेर) के शासक को मारकर अपने भाई महेन्द्रु को राजा बनाया था।
  • देवनारायण जी की पूजा नीम के पत्तो से की जाती है। देवनारायण जी के बारे में लोगों को विश्वास है कि उनका जन्म नहीं हुआ था वे कमल के फूल में अवतरित हुए थे।
  • देवनारायण जी पर (स्वंय) 2011 में पाँच रुपये का डाक टिकट जारी हुआ था।

लोकदेवता वीर कल्लाजी राठौड़


  • वीर कल्लाजी का जन्म सामियान गांव (मेड़ता – नागौर) में विक्रम संवत 1601 (1544 ई.) में हुआ। इनके पिता का नाम राव अचलाजी, दादा का नाम आससिंह था। वीर कल्लाजी मीराबाई के भतीजे थे।
  • वीर कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ थे। कल्लाजी की कुल देवी का नाम नागणेची माता था।
  • कल्लाजी को चार हाथ वाले देवता के रुप में माना जाता है। 
  • 1567 ई. में अकबर के विरुद्ध तथा उदयसिंह के पक्ष में युद्ध करते हुए जयमल राठौड़ तथा पत्ता सिसोदिया सहित वीर कल्लाजी भी शहीद हुए। युद्ध भूमि में इन्होंने अपने ताऊ राव जयमल को कंधे पर बैठाकर युद्ध किया था जिसके कारण इनकी ख्याति चार हाथों वाले लोकदेवता के रुप में हुई। 
  • लोकमान्यता के अनुसार युद्ध क्षेत्र में सिर कटने के बाद कल्लाजी अपने विवाह का वचन पूरा करने के लिए शिवगढ़ के शासक रावकृष्ण दास की पुत्री कृष्णा कुँवर के पास पहुँचे थे। कृष्णा कुँवर ने इन्हें अपना पति मानकर इनके शव के साथ रूंडेला में सती हुई।
  • कल्लाजी को औषधि विज्ञान और योगाभ्यास में विशेष महारत हासिल थी।
  • कल्लाजी अस्त्र-शस्त्र शिक्षा में भी पारंगत थे। 
  • कल्लाजी शेषनाग के अवतार के रूप में पूजनीय है।
  • कल्लाजी के सिद्ध पीठ को रनेला कहते हैं।
  • डूंगरपुर के सामलिया गांव में इनकी काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। जिस पर प्रतिदिन भीलों द्वारा केसर व अफीम चढ़ाई जाती है।
  • चित्तौड़गढ़ किले के भैरवपोल के पास कल्लाजी की छतरी बनी हुई है। 
  • कल्लाजी के थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का इलाज होता है।
  • कल्लाजी को बालब्रह्मचारी, योगी कमधण, अस्त्र-शस्त्र विद्या के पारंगत आदि उपनामों से भी जाना जाता है। 
  • मेवाड़ में प्रचलित मान्यता के अनुसार वे अपने बलिदान वर्ष में श्रावण शुक्ल अष्टमी को पुनः प्रकट हुए थे। 
  • कल्लाजी अपनी कुलदेवी नागणेची माता के भक्त, महान योगी व सिद्ध चिकित्सक थे।

भूरिया बाबा ( बाबा गौतमेश्वर )


  • भूरिया बाबा को गौतम बाबा के नाम से भी जाना जाता यह मीणा जाति के आराध्य देवता है।
  • मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा ( गौमतेश्वर) की झूठी कसम नहीं खाते हैं।
  • दक्षिण राजस्थान के गौड़वाड़ क्षेत्र में इनके मन्दिर हैं। 
  • गौतमेश्वर महादेव (भूरिया बाबा ) का प्रसिद्ध मंदिर प्रतापगढ़ व सिरोही में स्थित है।
  • सिरोही में स्थित गौतमेश्वर बाबा के मंदिर में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर हमला हुआ था। 
  • भूरिया बाबा का प्रसिद्ध मंदिर पोसलिया गाँव (सिरोही) में स्थित है, जहाँ वर्दीधारी पुलिसकर्मियों का जाना मना है।
  • गौतमेश्वर ऋषि महादेव (भूरिया बाबा) का प्रमुख मंदिर स्थित है। जिसका निर्माण एक गुर्जर ने शुरू किया था परंतु मीणा जाति ने इसे पूर्ण करवाकर यहाँ प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की।
  • भूरिया बाबा का मुख्य स्थल डूंगरपुर जिले में है।
  • भूरिया बाबा शौर्य का प्रतीक माने जाते हैं।

लोकदेवता मल्लीनाथ जी


  • इनका जन्म 1358 ई. में तिलवाड़ा (बाड़मेर) में हुआ था। इनके पिता का नाम – राव सलखा (मारवाड़ के राजा), दादा रावतीड़ा, माता का नाम-जाणीदे एवं ताऊ का नाम कान्हड़दे (मारवाड़ शासक ) था।
  • इनके गुरु – उगमसी भाटी थे ( पत्नी रुपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथजी उगमसी भाटी के शिष्य बने)।
  • इनके नाम पर बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नामकरण हुआ था। 
  • मल्लीनाथ जी निर्गुण, निराकार ईश्वर को मानते थे। मल्लीनाथ जी को सिद्धपुरुष, चमत्कारी योद्धा के उपनामों से जाना जाता है। 
  • लोकमानस में इन्हें त्राता ( रक्षक ) के रुप में जाना जाता है।
  • खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन व फिरोजशाह तुगलक की संयुक्त सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की। 
  • प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर भी है। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला कहलाता है। यहाँ तिलवाड़ा के पास ही माला जाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रुपादे का मन्दिर है। 
  • मल्लीनाथजी महोबा के शासक थे और ये शाक्तमत के कुण्डापंथ (जहाँ मत के अनुयायी एक कुण्डे में ही खाते-पीते है) के अनुयायी थे।

बाबा तल्लीनाथ


  • मंडोर के राव चूड़ा के भाई तथा वीरमदेव के पुत्र बाबा तल्लीनाथ का वास्तविक नाम राठौड़ गांगदेव था।
  • तल्लीनाथ जी ने शेरगढ़ (जोधपुर) पर शासन किया था। 
  • तल्लीनाथ जी के गुरू का नाम जालन्धर नाथ था। 
  • तल्लीनाथ जी प्रकृति प्रेमी थे। अतः इन्हें प्रकृति प्रेमी लोकदेवता के रूप में माना जाता है। 
  • जहरीला जानवर काटने पर तल्लीनाथ की पूजा की जाती है।
  • तल्लीनाथ जी ओरण (धार्मिक मान्यता से पशुओं के चरने के लिए जो स्थान रिक्त छोड़ा जाता है) के देवता के रूप प्रसिद्ध है। 
  • भारत की पहली ओरण पंचायत – ढोंक गाँव (चौहटन, बाड़मेर ) है, जहाँ पर वीरात्रा माता का मंदिर है।
  • बाबा तल्लीनाथ जालौर के प्रसिद्ध लोकदेवता है। 
  • जालौर जिले के पाँचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार बाबा तल्लीनाथ जी की मूर्ति स्थापित है। इस स्थान पर कोई भी पेड़-पौधें को नहीं काटता।

देव बाबा


  • देव बाबा का प्रसिद्ध मंदिर नंगला जहाज गाँव (भरतपुर) में स्थित है। जहाँ भाद्रपद शुक्ला पंचमी व चैत्र शुक्ला पंचमी को मेला भरता है।
  • देवबाबा के प्रति गुर्जर जाति में अपार श्रद्धा पाई जाती है।
  • पशु चिकित्सा का ज्ञात होने के कारण इन्हें ग्वालों के पालनहार, कष्ट निवारक देवता आदि उपनामों से भी जाना जाता है। इनकी याद में चरवाहों को भोजन करवाया जाता है। इसे ग्वाला जीमण दावत कहा जाता है।
  • देव बाबा की वाहन (सवारी) भैंसा (पाड़ा) होता है। 
  • लोक मान्यता के अनुसार इन्होंने अपनी मृत्यु के बाद भी अपनी बहिन एलादी को भात पहनाया था।
  • इनका स्थान हमेशा नीम के पेड़ के नीचे होता है।

वीर फत्ताजी


  • वीर फत्ताजी का जन्म सार्थौ गाँव (जालौर) में गज्जारणी परिवार हुआ था।
  • इनके गाँव पर लूटेरों के आक्रमण के समय इन्होंने भीषण युद्ध किया था। 
  • इनकी स्मृति में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला नवमी को मेला भरता है।

बाबा झुंझारजी


  • इनका जन्म इमलोहा गाँव (सीकर) में हुआ था।
  • झुंझारजी का थान प्रायः खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होता है। 
  • झुंझारजी की याद में रामनवमी को स्यालोदड़ा (सीकर) में इनका मेला भरता है।
  • स्यालदोड़ा में झुंझारजी व उनके दोनों भाइयों के साथ-साथ दूल्हा व दूल्हन के प्रस्तर स्तंभ भी पूजनीय है। 

वीर बिग्गाजी


  • इनका जन्म बीकोनर जिले के रीड़ी गांव में वि.स. 1358 में जाट परिवार में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम राव मोहन एवं माता का नाम सुल्तानी देवी था। 
  • इन्हें बीकानेर के जाखड़ समाज का कुल देवता माना जाता है। 
  • 1393 ई. में राठाली जोहड़ी के युद्ध में गौरक्षार्थ मुस्लिम लुटेरों से लड़ते हुए मारे गए।
  • बीकानेर की श्रीडूंगरपुर तहसील में बिग्गा नामक गांव इन्हीं की स्मृति में बसाया गया था। इस गांव में हर वर्ष 14 अक्टूबर को वीर बिग्गा का मेला आयोजित किया जाता है।

डूंगजी – जवाहरजी


  • सीकर जिले के बाठोठ-पाटोदा नामक स्थान के निवासी डूंगजी जवाहर जी कछवाहा वंश के राजपूत थे।
  • ये सीकर जिले के लूटेरे लोकदेवता (धावड़िया) थे, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बांट देते थे। 
  • डूंगजी – जवाहर जी को बलजी-भूरजी के उपनाम से भी जाना जाता है।

हरिराम बाबा


  • हरिराम बाबा का जन्म वि.स. 1959 में हुआ था। हरिराम बाबा के पिता का नाम रामनारायण व माता का नाम चंदणी देवी था।
  • हरिराम बाबा का प्रमुख पूजा स्थल नागौर जिले में झारेड़ा गांव में स्थित है।
  • इस मंदिर में साँप की बाँबी एवं बाबा के प्रतीक रुप में चरण कमल की पूजा की जाती है।
  • इनके गुरु का नाम भूरा था।
  • इन्होंने साँप काटे हुए पीड़ित व्यक्ति को ठीक करने का मंत्र सीखा था।

पनराजजी


  • इनका जन्म नयागाँव, जैसलमेर में हुआ।
  • मुस्लिम लूटेरों से काठौड़ी गाँव के ब्राह्मणों की गायें छुड़ाते हुए शहीद हुए। 
  • इनकी स्मृति में जैसलमेर जिले के जनराजसर गांव में वर्ष में दो बार भाद्रपद शुक्ल दशमी और माघ शुक्ल दशमी को मेला लगता है। 

लोकदेवता केसरिया कुंवरजी


  • लोकदेवता गोगाजी के पुत्र।
  • इनका जन्म ददरेवा (चुरू) में हुआ था। इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।
  • इनका भोपा भी सर्पदंश का इलाज करते है।

लोकदेवता भौमियाजी


  • ये लोकदवेता गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रुप में प्रसिद्ध है।
  • भौमिया जी को गाँव की सीमाओं का रक्षक माना जाता है। 
  • जयपुर में नाहरसिंह जी भौमिया व दौसा दुर्ग के समीप श्री सूरजमल भौमिया का मंदिर संपूर्ण राज्य में प्रसिद्ध है। 
  • करौली जिले के नन्दा भौमिया की भी विशेष प्रसिद्धि है।

लोकदेवता मामादेव


  • यह वर्षा के देवता माने जाते है।
  • मामादेव की कोई मूर्ति नहीं होती है। गाँव के बाहर लकड़ी के तोरण के रूप में मामादेव पूजे जाते हैं। 
  • इनका प्रमुख मंदिर स्यालदोड़ा (सीकर) में स्थित है जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला लगता है। 
  • इनकी याद में भैंस की कुर्बानी दी जाती है।

लोकदेवता इलोजी


  • इलोजी मारवाड़ के लोकदेवता है।
  • इन्हें छेड़छाड़ का देवता माना जाता है। 
  • मारवाड़ में मान्यता है कि इलोजी अविवाहितों को जीवनसाथी, नवदम्पत्तियों को सुखद जीवन तथा बाँझ स्त्रियों को संतान देने वाले लोकदेवता है।
  • इलोजी की मूर्ति आदमकद नग्न अवस्था में होती है। 
  • धूलंडी के अवसर पर बाड़मेर में इनकी बारात निकाली जाती है। 
  • लोक मान्यता- लोकजीवन में प्रचलित मान्यता के अनुसार राजपरिवार से जुड़े हुए यह ईलोजी (ईला ) राजा हिरण्यकश्यप के बहनोई थे। जब ईलोजी बारात लेकर पहुँचे तो वहाँ हिरणकश्यप की बहन होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठी थी। ईलोजी की शादी से पहले ही होलिका जल कर मर चुकी थी जिसके वियोग में तड़पते हुए ईलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर लगाई तथा आजीवन कुंवारे रहे इसलिए आज भी जिसका विवाह नहीं हो पाता है उसे ईलोजी नाम ही थरप दिया जाता है। ईलोजी द्वारा अपने शरीर पर राख लपेटने का वही प्रसंग धुलंडी नाम से प्रारंभ हुआ। इसलिए प्रथम दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन धुलंडी को सारे लोग धूल-गुलाल उछालते मौज-मस्ती करते हैं।

जूंजी बावजी


  • जूंजी बावजी राज्य के एकमात्र लोकदेवता है जिनका स्थान तालाब की तलहटी में स्थित है। 
  • चित्तौड़ जिले में स्थित जूंजी बावजी के स्थान पर नाव से जाकर नाव से ही पूजा की जाती है। 

वीर बावसी


  • वीर बावसी आदिवासियों के प्रसिद्ध लोकदेवता माने जाते है।। 
  • वीर बावसी प्रतापसिंह मंडेला के पुत्र थे जिन्होंने गौ रक्षार्थ अपने प्राण त्याग दिए थे।
  • वीर बावसी का मंदिर अरावली पर्वतमाला की दुर्गम घाटियों में काला टोकरा नामक स्थान पर बना हुआ है।


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