मनोविज्ञान | Psychology
>> मनोविज्ञान का अतीत बहुत लम्बा है जबकी इतिहास बहुत छोटा है। —- एबिंगठास
>> मनोविज्ञान का इतिहास 16वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है जबकि अतीत 400 ई.पू. से प्रारम्भ हो जाता है।
>> ‘मनोविज्ञान’ का सर्वप्रथम प्रयोग 1590, ई. में रुडोल्फ गोलकर ने अपकी पुस्तक ‘Psychologia’ के अन्तर्गत किया।
>> मनोविज्ञान के जनक अरस्तु (एसीस्टोटल )
>> मनोविज्ञान की जननी – दर्शनशास्त्र
>> Psychology शब्द की उत्पत्ति लैटिन व यूनानी (ग्रीक) भाषा के दो शब्दो psyche + logos से मिलकर हुई है। psyche (साइकी) का अर्थ होता है- आत्मा का तथा logos का अर्थ – अध्ययन करना ।
>> इसी शाब्दिक अर्थ के आधार पर सर्वप्रथम प्लेटो, अरस्तु, डेकार्ट आदि के द्वारा मनोविज्ञान को “आत्मा का विज्ञान’ माना गया। आत्मा शब्द की स्पष्ट व्याख्या नहीं होने के कारण 16वीं शताब्दी के अंत में यह परिभाषा अमान्य हो गई।
>> 17वीं शताब्दी में इटली के मनोवैज्ञानिक पोम्पोलॉजी’ ने मनोविज्ञान को मन या मस्तिष्क का विज्ञान माना ।
>> 19वीं शताब्दी में विलियम वुंट, विलियम जेम्स, वाइल्स, जेम्स सली आदि के द्वारा मनोविज्ञान को ”चेतना का विज्ञान’ माना गया। अपूर्ण अर्थ होने के कारण यह परिभाषा अमान्य रही।
>> विलियम वुण्ट ने जर्मनी के लिपजिग नामक स्थान पर 1879 में प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित की। इसलिए वुण्ट को, प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जनक माना जाता।
>> इसी समय (1879) से मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र की शाखा रूप से अलग होकर एक स्वतंत्र विषय के रूप में सामने आया।
>> लिपजिंग विश्वविद्यालय को वर्तमान में कार्ल मार्क्स विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।
>> विलियम मैकडुगल ने अपनी पुस्तक आउटलाइन साइकोलॉजी के पृष्ठ, न 16 पर ‘चेतना’ शब्द की कड़ी निंदा की।
>> 20 वीं शताब्दी में मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान माना गया और आज तक यही भाषा प्रचलित है।
>> व्यवहारवाद के जनक:- वाटसन तथा व्यवहारवादी वंशानुक्रम में कम विश्वास करते है तथा वातावरण में अधिक विश्वास करते हैं।
>> इसलिए “वाटसन” ने कहा :- “तुम मुझे कोई भी बालक दे दो, मैं उसे वैसा बना सकता हूं जैसा में बनाना चाहता हूँ।
>> वुडवर्थ: “मनोविज्ञान ने सर्वप्रथम अपनी आत्मा का त्याग किया, फिर मन का त्याग किया फिर चेतना का त्याग किया और आज मनोविज्ञान व्यवहार की विधि के रूप में स्वीकार करता है।”
>> क्रो एण्ड क्रो – 20 वीं शताब्दी बच्चो (बालकों) की शताब्दी है।
NOTE- वर्तमान समय में मनोविज्ञान को व्यवहार व अनुभूति का विज्ञान माना गया।
>> मनोविज्ञान के जनक – अरस्तू
>> शिक्षा मनोविज्ञान के जनक – थॉर्नडाइक
>> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक – विलियम वुंट,
>> आधुनिक मनोविज्ञान के जनक – विलियम वुंट,
>> अमेरिकन मनोविज्ञान के जनक – विलियम जेम्स,
>> विकासात्मक मनोविज्ञान के जनक – जीन पियाने,
>> किशोर मनोविज्ञान के जनक – स्टेनले हॉल
>> व्यक्तित्व मनोविज्ञान के जनक – ऑल पोर्ट
>> मौलिक व्यवहारवादी – स्कीनर
>> मूल प्रवृति के जनक – मैक्डूगल
विषय-सूची
✍️ मनोविज्ञान की मुख्य शाखाएँ
>> सामान्य मनोविज्ञान
>> असामान्य मनोविज्ञान
>> तुलनात्मक मनोविज्ञान
>> प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ( नियंत्रित परिस्थितियों में किया गया अध्ययन )
>> सामाजिक मनोविज्ञान
>> औद्योगिक मनोविज्ञान
>> बाल विकास, (गर्भावस्था – किशोरावस्था तक अध्ययन)
>> किशोर मनोविज्ञान
>> प्रौढ़ मनोविज्ञान
>> विकासात्मक मनोविज्ञान( गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक का अध्ययन)
>> शिक्षा मनोविज्ञान ( बालक के व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों में अध्ययन)
>> निदानात्मक / उपचारात्मक मनोविज्ञान, – ( क्लिनिकल) (समस्यात्मक बालको का अध्ययन)
>> पशु मनोविज्ञान
>> परा मनोविज्ञान ⇒ आधुनिकतम् शाखा,उलजी हुई गुथियों की चर्चा,
✍️ बाल विकास
★बाल विकास का इतिहास
>> 18 वीं शताब्दी में सर्व प्रथम “पेस्टोलॉजी” के द्वारा बाल विकास का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत किया।
>> पेस्टालॉजी ने अपने ही 3½ वर्षीय पुत्र पर अध्ययन किया तथा बेबी बायोग्राफी तैयार की।
>> 19वीं शताब्दी में अमेरिका में बाल अध्ययन आन्दोलन की शुरुआत हुई, इसके जन्म दाता स्टेनले हॉल थे।
>> स्टेलने ने ‘चाइल्ड स्टडी सोसायटी’ व ‘child Welfare organisation’, जैसी संस्थाओं की स्थापना की।
>> 1887 में न्यूयॉर्क में सबसे पहला “बाल सुधार गृह” स्थापित किया गया।
>> भारत में बाल विकास के अध्ययन की शुरुआत लगभग 1930 से मानी जाती है।
★ अभिवृद्धि व विकास में अभिवृद्धि अन्तर
अभिवृद्धि | विकास |
1. केवल शारीरिक पक्ष में होने वाला पंरिवर्तन | 1. सम्पूर्ण पक्षों में होने वाला परिवर्तन |
2. संकुचित अर्थ | 2. व्यापक अर्थ |
3. बाह्य स्वरूप | 3. बाह्य व आंतरिक स्वरूप |
4. कुछ समय पश्चात रुक जाना | 4. जीवन पर्यन्त चलना |
5. केवल आकार बढ़ने से सम्बंधित | 5. सम्पूर्ण परिवर्तनो से सम्बंधित |
6. सीधे मापा – तौला जा सकता है। | 6. सीधे मापन सम्भव नहीं |
7. परिमाणात्मक/मान्त्रात्मक / संख्यात्मक | 7. परिमाणात्मक व गुणात्मक |
8. रचनात्मक | 8. रचनात्मक व विनासात्मक |
9. विवृद्धि सूचक | 9. विवृद्धि सूचक व ह्यस सूचक |
NOTE- रचनात्मक परिवर्तन व्यक्ति को किशोरावस्था की ओर ले जाते हैं जबकि विनासात्मक परिवर्तन व्यक्ति को वृद्धावस्था की ओर ले जाते हैं।
👉 विकास की परिभाषाएँ :
>> गैंसल :- विकास एक तरह का परिवर्तन है क्योकि इसी से बालक मैं नवीन योग्यताओं व विशेषताओं का विकास होता है।
>> ब्रुनर – विकास की किसी भी अवस्था में कुछ भी सीखाया जा सकता है।
>> बर्क :- बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जन्म पूर्व अर्थात् गर्भावस्था से किशोरावस्था अथवा परिपकवस्था तक होने वाले विकास का अध्ययन किया जाता है।
→ श्रीमती हरलॉक ने विकास क्रम में होने वाले परिवर्तनों को चार भागों में बांटा ।
- आकार में परिवर्तन
- अनुपात में परिवर्तन
- पुराने चिह्नों का लोप (जैसे- दुध के दांत)
- नवीन चिह्नों का उदय (जैसे – दाढ़ी मूंछ का आना)
👉 विकास के नियम :
- समान प्रतिमान का नियम – विकास समान नियमों पर आधारित होता है, इससे किसी प्रकार का भेदभाव नही होता है।
- क्रमबद्धता का नियम / निश्चित श्रृंखला का नियम – विकास कुमानुसार होता है।
- सतत् विकास का नियम / निरन्तरता का नियम – विकास जीवनपर्यन्त चालता रहता है।
- परस्पर संम्बंध का नियम – विकास के चारो पक्ष (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व संवेगात्मक) परस्पर सम्बधित होते हैं, लेकिन घनिष्ठ सम्बंध शारीरिक व मानसिक विकास में होता है।
- सामान्य से विशिष्ट हियाओं का नियम – शिशु पहले सामान्य क्रियाएँ करता है व उसके बाद विशिष्ट किया करता है।
- निश्चित दिशा का नियम – (i) मस्तबोधमुखी नियम :- विकास हमेशा सिर से पैर की ओर अर्थात् ऊपर से नीचे की ओर होता
→ सेफेलोकोडल थ्योरी है – (सिर- धड़ – हाथ- पैर)
(ii) निकट-दूर नियम :- विकास केन्द्र से सिरों की ओर अर्थात अन्दर से बाहर की ओर होता है।
→ प्रोक्सिमोडिस्टल थ्योरी
- व्यक्तिगत विभिन्नता का नियम:, जन्म से ही कोई बालक प्रतिभाशाली होता है तो कोई सामान्य बुद्धि का होता है, तो कोई मंद बुद्धि का होता है।
- विकास की गति में भिन्नता का नियम :- प्रतिमा शाली बालक का विकास तीव्र गति, सामान्य बुद्धि का सामान्य गति से तथा मंद बुद्धि बालक का विकास मंद गति से होता है।
- अन्त: क्रिया का नियम :- देखकर, सुनकर व अनुकरण से सीखना, पहले बालक की अपेक्षा दूसरा बालक तीव्र गति से सीखता है।
- वर्तुलाकार का नियम – विकास केवल लम्बाई में न होकर अर्थात् रेखीय न होकर चारों ओर होता है।
- विकास में परावर्तन का नियम,
- पूर्वानुमान /पूर्वकथन / भविष्यवाणी का नियम,
- विकास की प्रत्येक अवस्था के अपने-अपने खतरे होते हैं।
- विकास की प्रत्येक अवस्था में सुख-शांति एक समान नहीं होती है।
- प्रारंभिक विकास परवर्ती विकास की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
- वंशानुक्रम व वातावरण के गुणनफल का नियम : व्यक्ति का विकास वंशानुक्रम व वातावरण का प्रतिफल है।
व्यक्ति = वंशानुक्रम (H) × वातावरण (E) ( सूत्र – वुडवर्थ)
👉 विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(1). वंशानुक्रम
यह विकास को प्रभावित करने वाला पहला प्रमुख कारक है। बालक को अपने माता- पिता व पूर्वजों की जो विशेषताएं जन्म या गर्भाधान के समय से प्राप्त होती है उसे वंशानुक्रम या आनुवंशिकता कहते हैं।
>> वंशानुक्रम के सिद्धान्त
(१). बीजमैन का जनन-द्रव्य की निरन्तरता का सिद्धान्त :
इस सिद्धान्त के अनुसार शरीर का निर्माण करने वाला ‘जनन- द्रव्य’ कभी भी नष्ट नहीं होता है, यह पीढ़ी दर पीढ़ी निरन्तर हस्तानान्तरित होता रहता है। यही कारण है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरन्तर गुणों का संचरण होता रहता है।
(२). उपार्जित गुणों के असंचरण का सिद्धान्त ( वीजमैन)
इस सिद्धान्त के अनुसार अर्जित गुणों का संचरण नहीं होता है।
समर्थक – बीजमैन (चूहे की पूँछ काटी गई)
(३). उपार्जित गुणों के संचरण का सिद्धान्त ( लैमार्क)
इस सिद्धान्त के अनुसार अर्जित गुणों का संचरण होता है।
समर्थक – ( लैमार्क) (जिराफ की गर्दन पर प्रयोग)
(४). गॉल्टन का नीवसांख्यिकी/ बायोमैट्री सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार बालक के गुणों का संचरण केवल माता-पिता से न होकर पूर्वजों से भी होता है।
(५). मैण्डल का सिद्धान्त
मैण्डल ने मटर के दानों तथा काले व सफेद चुहो पर प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला की एक ही माता- पिता से उत्पन्न संतानों में भी मिन्नता पाई जाती हैं।
>> वशानुक्रम के नियम
(१). समानता का नियम : जैसे माता-पिता वैसी ही संतान,
(२). भिन्नता का नियम: जैसे माता-पिता उनसे कुछ भिन्न संतान
(३). प्रत्यागमन का नियम -जैसे माता-पिता उनके ठीक विपरित संतान (बुद्धिमान माता- पिता – मूर्ख संतान)
(2). वातावरण
यह विकास को प्रभावित करने वाला दूसरा प्रमुख कारक है।. ‘वातावरण’ का पर्यायवाची शब्द है ‘पर्यावरण’ जो कि दो शब्दों से मिलकर बना है। परि’ + ‘आवरण’
– ‘परि’ का अर्थ – चारों ओर
– ‘आवरण’ का अर्थ – ढकने वाला/ घेरने वाला
अर्थात् जो कुछ भी हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं वही पर्यावरण हैं।
>> ‘रोस’ – वातावरण कोई बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।
NOTE – वातावरण के अन्तर्गत बालक एक उच्च संगठित ऊर्जा है
⇒ वातावरण के अन्तर्गत निम्न कारक विकास को प्रभावित करते हैं।
(१) पारिवारिक वातावरण
परिवार अनौपचारिक शिक्षा का मुख्य साधन है, जिसके अन्तर्गत माँ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। माँ बालक की प्रथम गुरु होती है जिसके द्वारा संस्कारों की शिक्षा दी जाती है।
>> फ्रोबेल : माताएँ आदर्श अध्यापिकाएँ है तथा परिवार द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा महत्वपूर्ण व प्रभावशाली होती है।
>> पेस्टोलॉजी : परिवार सीखने का सर्वोत्तम स्थान तथा बालक का प्रथम विद्यालय है।
★ परिवार के अन्तर्गत निम्न कारक :
- परिवार की आर्थिक स्थिति
- माता-पिता का असन्तोषजनक व्यवहारिक जीवन
- पक्षतापूर्ण व्यवहार
- अत्यधिक ममता व लाड प्यार,
- कठोर नियंत्रण व अनुशासन
- जन्मक्रम
(२) विद्यालयी वातावरण
विद्यालय औपचारिक शिक्षा का मुख्य साधन है। विद्यालय के अन्तर्गत महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षक की होती है।
फ्रोबेल : शिक्षक बालोद्यान का कुशल माली हैं।
NOTE– फ्रोबेल :- पूर्व प्राथमिक शिक्षा के जनक, – इन्होंने जर्मनी के ब्लेकेनबर्ग नामक स्थान पर 1837 में सबसे पहला पूर्व-प्राथमिक विद्यालय “किंडर गार्डन” की स्थापना कर पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को जन्म दिया।
>> विद्यालय के अन्तर्गत निम्न कारक आते हैं:-
- विद्यालय का भौतिक वातावरण
- अनुचित शिक्षण विधियां
- दोषपूर्ण पाठ्यक्रम
- बालक को समस्यात्मक कहकर उसकी अवहेलना
- शिक्षक का व्यवहार
(३). सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण
1.आस-पडोस
- मित्र व साथी
- सिनेमा
- परम्पराएँ व रीति-रिवाज
- पूर्वाग्रह
- खान-पान, रहन-सहन, भाषा व संस्कृति
(४) भौगोलिक वातावरण
- जलवायु
- स्थलाकृतिक वातावरण
(५) मनोवैज्ञानिक वातावरण
- अभिप्रेरणा व पुनर्बलन
- मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति
3 निर्देशन व परामर्श
- प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार,
(६) जनसंसार माध्यम
- रेडियो
- टेलिफोन व मोबाईल
- कम्प्यूटर
(3). परिपक्वता एवं अधिगम
>> सर्वप्रथम ‘परिपक्वता’ शब्द का प्रयोग “अरनोल्ड गेसेल’ के द्वारा किया गया।
>> परिपक्वता का सम्बंध “वशांनुक्रम’ से होता है, जबकि अधिगम का सम्बंध वातावरण से होता है।
>> विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक – वंशानुक्रम व वातावरण है, इसके बाद महवपूर्ण स्थान “परिपक्वता व अधिगम ” का है।
>> अधिगम पर परिपक्वता का प्रभाव पड़ता है, लेकिन परिपक्वता पर अधिगम का प्रभाव नहीं पड़ता है।
>> अत: व्यक्ति का विकास वंशानुक्रम, वातावरण, परिपक्वता एव अधिगम का प्रतिफल है।
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