मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग्स | राजस्थान की चित्र शैली | मेवाड़ शैली

मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग्स / मेवाड़ की चित्रकला


🐘 मेवाड़ शैली

  • चित्रकला की सर्वाधिक प्राचीन शैली।
  • मेवाड़ शैली को विकसित करने में महाराणा कुम्भा का विशेष योगदान रहा।
  • मेवाड़ शैली का स्वर्णकाल जगत सिंह प्रथम का काल रहा।
  • “विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र नामक ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मानव जीवन के सिद्वान्तों को समझाया गया है। 
  • पंचतन्त्र का फारसी अनुवाद कलिला दमना है, जो एक रूपात्मक कहानी है। इसमें राजा (शेर) तथा उसके दो मंत्रियों ( गीदड़ ) कलिला व दमना का वर्णन किया गया है।
  • मेवाड़ शैली में कलिला और दमना नाम से चित्र चित्रित किए गए थे। 
  • यह चित्र शैली राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक और मौलिक रूप है।
  • मेवाड़ में आरम्भिक चित्र ‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी’ (सावग पड़ीकमण सुत चुन्नी) ग्रन्थ से 1260 ई. के प्राप्त हुए है। जिसका चित्रकार कमलचंद था। इस ग्रन्थ का चित्रांकन राजा तेजसिंह के समय में हुआ। यह मेवाड़ शैली का सबसे प्राचीन चित्रित ग्रन्थ है।
  • दूसरा ग्रन्थ सन् 1423 ई. में महाराणा मोकल के समय देलवाड़ा में सुपासनह चरियम नामक चित्र चित्रकार हिरानंद के द्वारा चित्रित किया गया।
  • केशव की रसिक प्रिया तथा गीत गोविन्द मेवाड़ शैली के उदाहरण है।

✍️ मेवाड़ शैली की प्रमुख विशेषताएँ

  • भित्ति चित्र परम्परा का विशेष महत्व, रंग संयोजन की विशेष प्रणाली, मुख्य व्यक्ति अथवा घटना का चित्र, सजीवता और प्रभाव उत्पन्न करने के लिए भवनों का चित्रण, पोथी ग्रंथों का चित्रण आदि। 
  • इस शैली में पीले रंग की प्रधानता है।
  • मेवाड़ शैली के चित्रों में प्रमुख कदम्ब के वृक्ष को चित्रित किया गया है।
  • वेशभूषा– सिर पर पगड़ी, कमर में पटका, कानों में मोटी, घेरदार जामा
  • पुरुष आकृति – लम्बी मूछें, बड़ी आँखे, छोटा कपोल व कद,गठीला शरीर।
  • स्त्री आकृति– लहंगा व पारदर्शी ओढ़नी, छोटा कद, दोहरी चिबुक, ठुड्डी पर तिल, मछली जैसी आँखे, सरल भावयुक्त चेहरा।

✍️ मेवाड़ शैली के प्रमुख चित्रकार

         कृपाराम, भेरुराम, हीरानंद, जगन्नाथ, मनोहर, कमलचंद्र, नसीरूद्दीन / निसारदीन

✍️ मेवाड़ शैली के प्रमुख चित्र

         रागमाला, बारहमासा, कृष्ण लीला, नायक-नायिका आदि

चित्रित ग्रन्थ– 1. आर्श रामायण  –   मनोहर व साहिबदीन द्वारा। 

                     2. गीत गोविन्द     –   साहबदीन द्वारा ।

  • चित्रित विषय – मेवाड़ चित्रकला शैली में धार्मिक विषयों का चित्रण किया गया। इस शैली में रामायण, महाभारत, रसिक गीत गोविन्द इत्यादि ग्रन्थों पर चित्र बनाए गए।
  • मेवाड़ चित्रकला शैली पर गुर्जर तथा जैन शैली का प्रभाव रहा है। 
  • राणा अमरसिंह प्रथम– 1597 से 1620 ई. – इनके समय रागमाला के चित्र चावण्ड में निर्मित हुए। इन चित्रों को निसारदीन ने चित्रित किया । इनका शासनकाल मेवाड़ शैली का स्वर्ण युग माना जाता है।
  • महाराणा अमरसिंह द्वितीय– इनके शासनकाल में शिव प्रसन्न, अमर-विलास महल मुग़ल शैली में बने जिन्हें आजकल बाड़ी महल माना जाता है।
  • राणा कर्णसिंह– इनके शासनकाल में मर्दाना महल व जनाना महल का निर्माण हुआ ।
  • राणा जगतसिंह प्रथम– इस काल में रागमाला, रसिक प्रिया, गीतगोविंद, रामायण आदि लघु चित्रों का निर्माण हुआ। प्रमुख चित्रकार साहबदीनमनोहर
  • जगतसिंह के महल में चितेरों की ओवरी नामक कला विद्यालय स्थापित किया गया जिसे तसवीरां रो कारखानों नाम से भी जाना जाता है।
  • महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय के बाद साहित्यिक ग्रंथों के आधार पर लघु चित्रों का समय लगभग समाप्त हो गया।

✍️ उदयपुर

  • पराक्रम शैली का विकास
  • राजकीय संग्रालय में मेवाड़ शैली के लघु चित्रों का विशाल भण्डार ।
  • यहाँ विश्व में मेवाड़ शैली के सबसे चित्र है।
  • इस संग्राहलय में रसिक प्रिया का चित्र सबसे प्राचीन है।

🐄 नाथद्वारा शैली

  • नाथद्वारा मेवाड़ रियासत के अन्तर्गत आता था, जो वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है।
  • यहां स्थित श्री नाथ जी मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराजा राजसिंह ने 1671-72 ई. में करवाया था।
  • यह मंदिर पिछवाई (मंदिर में मुर्ति के पीछे का पर्दा) कला के लिए प्रसिद्ध है, जो वास्तव में नाथद्वारा शैली का रूप है।
  • इस चित्रकला शैली का विकास मथुरा के कलाकारों द्वारा किया गया।
  •  महाराणा राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्ण काल कहलाता है। 
  • चित्रित विषय  – श्री कृष्ण की बाल लीलाऐं, गवालों का चित्रण, यमुना स्नान, अन्नकूट महोत्सव आदि । 
  • चित्रकार-खेतदान, नारायण, घासीराम, चतुर्भुज, उदयराम, खूबीराम आदि। 
  • कमला व इलायची नाथद्वारा शैली की महिला चित्रकार हैं।
  • नाथद्वारा में भित्ती चित्रण में आला गीला फ्रेस्को शैली का उपयोग किया गया है।

🐅 देवगढ़ शैली

  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराजा द्वारिकादास चुड़ावत के समय हुआ ।
  • इस शैली को प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय डॉ. श्रीधर अंधारे को है। 
  • चित्रित विषय – शिकार के दृश्य, अन्तःपुर, राजसी ठाठ-बाठ ।  
  • चित्रकार – बगला, कंवला, चीखा / चोखा, बैजनाथ आदि। –

🦄 शाहपुरा शैली

  • यह शैली भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा कस्बे में विकसित हुई।
  • शाहपुरा की प्रसिद्ध कला फड़ चित्रांकन में इस चित्रकला शैली का प्रयोग किया जाता है।
  •  फड़ चित्रांकन में यहां का जोशी परिवार लगा हुआ है। श्री लाल जोशी, दुर्गादास जोशी, पार्वती जोशी (पहली महिला फड़ चित्रकार) आदि। 
  • चित्र– हाथी व घोड़ों का संघर्ष (चित्रकास्ताजू)

🦌 चावण्ड शैली

  • इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराणा प्रताप के काल में हुआ। 
  • स्वर्णकाल – अमरसिंह प्रथम का काल माना जाता है।
  • चित्रकार- नसीरदीन (नसीरूद्दीन) इस शैली का चित्रकार हैं।
  • नसीरदीन ने रागमाला नामक चित्र बनाया।

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