मारवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग्स | राजस्थान की चित्रकला शैली
विषय-सूची
🐪 जोधपुर शैली
- जोधपुर शैली पर मुगल शैली का प्रभाव हैं।
- जोधपुर शैली का प्रारम्भिक विकास राव मालदेव ( 52 युद्धों का विजेता) के काल में हुआ।
- स्वर्णकाल, जसवंत सिंह प्रथम का काल रहा।
- जोधपुर शैली मालदेव के समय में स्वतंत्र अस्तित्व में आयी, पहले इस पर मेवाड़ शैली का स्पष्ट प्रभाव था इस काल की प्रतिनिधि चित्र शैली के उदाहरण चोखे का महल व चित्रित उत्तराध्ययन सूत्र से प्राप्त होते है।
- जोधपुर में सूरसिंह के समय ढोला-मारू प्रमुख चित्रित ग्रन्थ है।
- इन चित्रों में शीर्षक नागरी लिपि व गुजराती भाषा मे लिखे गए।
- पाली का रागमाला सम्पुट मारवाड़ का प्राचीनतम तिथियुक्त कृति के रूप में महत्व रखता है
- 1623 ईस्वी में वीर जी द्वारा पाली के प्रसिद्ध वीर पुरुष विठ्ठलदास चंपावत के लिये रागमाला चित्रवाली चित्रित किया गया।
- मुगल शैली का प्रभाव मोटा राजा उदयसिंह के समय पड़ा।
- अन्य संरक्षक मानसिंह, शूरसिंह, अभय सिंह थे ।
- चित्रित विषय – राजसी ठाठ-बाट, दरबारी दृश्य आदि ।
- जोधपुर शैली के चित्रकार – किशनदास भाटी, देवी सिंह भाटी, अमर सिंह भाटी, वीर सिंह भाटी, देवदास भाटी, शिवदास भाटी, रतन भाटी, नारायण भाटी, गोपालदास भाटी, प्रमुख थे।
- जोधपुर शैली के प्रमुख चित्र – इस चित्रकला शैली में मुख्यतः लोकगाथाओं का चित्रण किया गया। जैसे – मूमलदे, निहालदे, ढोला-मारू, उजली जेठवा, कल्याण रागनी, नाथ चरित्र ( मानसिंह नाथ संप्रदाय, भगवान शंकर से प्रभावित था), सूरसागर, रागमाला, पंचतंत्र, कामसूत्र ।
- रागमाला चित्रवाली, शुद्ध राजस्थानी में अंकित है।
- महाराज गजसिंह के शासन काल मे ढोला मारू, भागवत ग्रन्थ चित्रित किये गए।
- महाराज अजीत सिंह के समय के चित्र मारवाड़ चित्र शैली के सबसे सुंदर चित्र माने जाते है।
- अभयसिंह जी का नृत्य देखते हुए चित्र डालचंद द्वारा चित्रित किया गया है।
- महाराज भीमसिंह के समय चित्रित दशहरा दरबार जोधपुर चित्रशैली का सुंदरतम उदाहरण है।
- महाराज मानसिंह के समय शिवदास द्वारा स्त्री को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है।
- विषय – प्रेमाख्यान प्रधान रहा जैसे ढोला मारवल, रूपमति बाज बहादुर, कल्पना रागिनी प्रमुख ।
- प्रकृति चित्रों में मरु टीले, झाड़ एवं छोटे पौधे, विद्युत रेखाओं का सर्पाकार रूप में व मेघो को गहरे काले रंग में गोलाकार दिखाया गया।
- पशुओ में ऊँट, घोड़ा, हिरन तथा श्वान को अधिक चित्रित किया है।
- बादामी आँखे, व ऊँची पाग जोधपुर शैली की अपनी देन है।
- प्रमुख चित्रकार – शिवदास भाटी, नारायण दास, बिशन दास, किशनदास, अमरदास, रामू, नाथो, डालू, फेज अली, उदयराम, कालू, छज्जू भाटी, जीतमल प्रमुख चित्रकार रहे है।
- रंग– लाल व पीले रंग का बाहुल्य है, जो स्थानीय विशेषता है।
🦚 किशनगढ़ शैली
- उदयसिंह के 9वें पुत्र किशनसिंह ने सन् 1609 ई. मे अलग राज्य किशनगढ़ की नीव डाली।
- यहां के राजा वल्लभ सम्प्रदाय मे दीक्षित रहे, इसलिए राधा कृष्ण की लीलाओं का साकार स्वरूप चित्रण के माध्यम से हुआ।
- बहुलता से (1643-1748 ई) काव्य और चित्रकला का क्रमिक विकास हुआ।
- भंवरलाल, सूरध्वज आदि चित्रकारों ने इसे खूब बढ़ाया।
- किशनगढ़ शैली अपनी धार्मिकता के कारण विश्वप्रसिद्ध हुई ।
- राजसिंह ने चित्रकार निहालचंद को चित्रशाला प्रबंधक बनाया।
- राजा सावन्तसिहं का काल (17481764 ई.) किशनगढ़ शैली की दृष्टि से स्वर्णयुग कहा जा सकता हैं।
- राजा सावन्तसिहं स्वयं एक अच्छा चित्रकार एव धार्मिक प्रकृति का व्यक्ति था । अपनी विमाता द्वारा दिल्ली के अन्तःपुर से लाई हुई सेविका उसके मन मे समा गई। इस सुन्दरी का नाम बणी-ठणी था। शीघ्र ही यह उसकी पासवान बन गई।
- महाराजा सांवत सिंह के समय इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र बणी-ठणी को सांवत सिंह के चित्रकार मोरध्वज निहाल चन्द द्वारा चित्रित किया गया।
- इस शैली के चित्र बणी-ठणी पर सरकार द्वारा 1973 ई. में 20 पैसें का डाक टिकट जारी किया जा चुका।
- इस शैली का प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी ही है जिसे एरिक डिक्सन ने भारत की ‘मोनालिसा’ कहा हैं।
- इस शैली को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर दिलाने का श्रेय एरिक डिक्सन तथा फैयाज अली को दिया जाता है।
- नागरीदास जी के काव्य प्रेम, गायन, बणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रकार ने किशनगढ़ की चित्रकला सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा दिया।
- नागरीदास की प्रेमिका बणी-ठणी को राधा के रुप मे अंकित किया जाता हैं।
- किशनगढ़ शैली की अलौकिकता धीरे-धीरे विलीन होने लगी और विकृत स्वरूप सामने आने लगा।
- यह शैली कांगड़ा शैली, से प्रभावित रही है ।
- वेसरि किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण ।
✍️ किशनगढ़ शैली की विशेषताएं
- शैली में पुरुषाकृति मे लम्बा छरहरा नील छवियुक्त शरीर, जटाजूट की भांति ऊपर उठी हुई मोती की लड़ियों से युक्त श्वेत या मँगिया पगड़ी, समुन्नत ललाट, लम्बी नासिका, मधुर, पतली आदि निजी विशेषताएं हैं।
- सारे मुखमंडल मे नेत्र इतने प्रमुख रहते हैं कि दर्शक की प्रथम द्रष्टि वही पर मँडराने लगती हैं।
- अलंकारों ओर फूलो से आवेष्टित सारा शरीर किशनगढ़ शैली मे अनोखा हैं।
- किशनगढ़ शहर तथा रुपनगढ़ का प्राकृतिक परिवेश जिस प्रकार झीलों, पहाड़ों, उपवनों और विभिन्न पशु-पक्षियों से युक्त रहा है। यही चित्रण बूँदी शैली मे सीमित क्षेत्र मे हुआ हैं।
- चाँदनी रात मे राधाकृष्ण की केलि-क्रीड़ाएं, प्रातः कालीन और सांध्यकालीन बादलों का सिन्दूरी चित्रण शैली मे विशेष हुआ हैं।
- किशनगढ़ शैली के चित्रों मे कई जगह ताम्बूल सेवन का वर्णन मिलता हैं।
- शैली के अन्य प्रमुख चित्र- दीपावली, सांझी लीला, नौका विहार (दा बोट ऑफ लव), राधा / बणीठणी (1760 ई), गोवर्धन धारण (1755) ई. इनके चित्रकार निहालचंद थे।
- चांदनी रात की संगीत गोष्ठी चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया।
- लाल बजरा (1735-1757 ई.), राजा सावंत सिहं की पूजा और बणीठणी (1740 ई), ताम्बूल सेवा (1780 ई), दा डिवाईन कपल (1780ई.) भी उल्लेखनीय चित्र हैं।
- चित्रकार – किशनगढ़ शैली के चित्रकारों मे’ अमीरचंद’, धन्ना, भंवरलाल, छोटू, सूरतराम, सूरध्वज, बदन सिंह, मोरध्वज, निहालचंद, नानकराम, सीताराम रामनाथ, तुलसीदास आदि नाम उल्लेखनीय हैं।
- किशनगढ के शासक सांमत सिंह अन्तिम समय में राजपाट छोड़कर वृदांवन चले गए और कृष्ण भक्ति में लीन हो गए। उन्होने अपना नाम नागरीदास रखा तथा नागर समुच्चय नाम से काव्यरचना करने लगे।
🐫 बीकानेर शैली
- यह शैली मुगल शैली से प्रभावित रही।
- बीकानेर शैली के चित्रों में कलाकार का नाम, उसके पिता का नाम और संवत उपलब्ध होता हैं।
- बीकानेर शैली का प्रादुर्भाव 16 वी शती के अन्त मे माना जाता है।
- राव रायसिंह के समय चित्रित भागवत पुराण प्रारंभिक चित्र माना जाता हैं इस समय यह शैली चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास रायसिंह राठौड़ के समय हुआ।
- महाराज अनूपसिंह के काल मे विशुद्ध बीकानेर शैली के दर्शन होते हैं।
- इस शैली का स्वर्णकाल महाराजा अनूपसिंह का काल माना जाता है।
- मुगल शैली का प्रभाव राजा कल्याणमल के समय पड़ा।
- बीकानेर नरेश रायसिंह (1574-1612 ई.) मुगल कलाकारों की दक्षता से प्रभावित होकर वह उनमें से कुछ कलाकारों को अपने साथ ले आये। इनमें उस्ता अली रजा व उस्ता हामिद रुकनुद्दीन थे। इन दोनों कलाकारों की कला की कलाकृतियों से चित्रकारिता की बीकानेर शैली का उद्भव हुआ।
- बीकानेर के प्रारंभिक चित्रो मे जैन स्कूल का प्रभाव जैन पति मथैरणों के कारण रहा।
- यहां दो परिवारों का ही प्रभाव चित्रकला पर विशेष रहा – मथैरण परिवार जैन मिश्रित शैली, मुगल दरबार मुगल शैली मे कुशल था।
- इस शैली का प्रयोग आला गिल्ला कारीगरी (नम दीवार पर किया गया चूने के माध्यम से भीती चित्रण आला गिला कारीगरी कहलाता है, इस कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया), काष्ठ चित्रांकन, मथैरण तथा उस्ता कला में किया गया।
- इस शैली के अन्तर्गत महाराजा राय सिंह के समय प्रसिद्ध चित्रकार हामिद रूकनुद्दीन थे।
- महाराजा गज सिंह के समय शाह मोहम्मद लाहौर से लाए गए।
- महाराजा अनूपसिंह के प्रमुख दरबारी चित्रकार हसन, अलीरज्जा और रामलाल थे।
- मुन्नालाल व मस्तलाल अन्य प्रमुख चित्रकार थे।
- इस शैली में चित्रण का विषय दरबारी दृश्य, बादल दृश्य थे।
- इस शैली में पुरूष आकृति दाड़ी मूंह युक्त तथा उग्र स्वभाव वाली दर्शाई गई।
- इस शैली का सबसे प्राचीन चित्र भागवत पुराण महाराजा रायसिंह के समय चित्रित किया गया।
- चित्रकार चित्र के नीचे अपने हस्ताक्षर व तिथि अंकित करते थे।
- ऊँची मारवाड़ी पगड़ियां, ऊँट, हिरण, बीकानेर रहन-सहन और राजपूती संस्कृति की छाप प्रमुखता देखने को मिलती हैं।
- भागवत कथा आदि पर भी चित्र बने ।
- मथैरण परिवार के चित्रकारों ने अपनी परम्परा को कायम रखा। उन्होंने जैन- ग्रंथ अनुकृति, धर्मग्रंथ का लेखन एवं तीज-त्यौहार व राजा व्यक्ति-चित्र उन्हें भेट किये।
- मुन्ना लाल, मुकुंद (1668), रामकिशन (1170) जयकिशन मथेरण. चन्दूलाल (1678), शिवराम ( 1788), जोशी मेघराज (1797 ) आदि चित्रकारों के नाम एवं संवत् अंकित चित्र आज भी देखने को मिलता है।
- चित्रकारों मे उस्ता परिवार के उस्ता कायम, कासिम, अबुहमीद, “शाह मोहम्मद, अहमद अली, शाहबदीन, जीवन आदि प्रमुख हैं। इन्होंने रसिकप्रिया, बारहमासा, रागरागिनी, कृष्ण लीला, शिकार, महफिल तथा सामन्ती वैभव का चित्रण किया था।
- बीकानेर राज्य का मुगल दरबार से गहन सम्बन्ध होने के कारण मुगल शैली की सभी विशेषताएं बीकानेर की प्रारंभिक चित्रकला मे द्रष्टव्य हैं।
- दक्षिणी शैली का प्रभाव बीकानेर शैली पर सर्वाधिक हैं। इस शैली मे आकाश को सुनहरे छल्लों से यूक्त मेघाच्छादित दिखाया गया है।
- बरसते बादलों मे से सारस-मिथुनों की नयनाभिराम आकृतिया भी इसी शैली की विशेषता है।
- यहां फव्वारों, दरबार के दीर्घाओं आदि मे दक्षिण शैली का प्रभाव दिखाई देता हैं।
🐏 जैसलमेर शैली
- राज्य की एकमात्र शैली है जिस पर किसी अन्य शैली का प्रभाव नहीं है।
- इस शैली में रंगों की अधिकता देखने को मिलती है। इस शैली का प्रसिद्ध चित्र मूमल है।
- मूमल को मांड की मोनालिसा कहा जाता है।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास हरराय भाटी के काल में हुआ।
- इस शैली का स्वर्णकाल अखैराज भाटी का काल माना जाता है।
🐄 नागौर शैली
- नागौर किले की दीवारों पर इस शैली के चित्र बने हुए हैं।
- इस शैली में धार्मिक चित्रण किया गया है।
- नागौर शैली में हल्के / बुझे हुए रंगों का प्रयोग किया गया है।
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