इरेटोस्थनीज की भूगोल को देन
इरेटोस्थनीज का भूगोल के विकास में योगदान निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
विषय-सूची
✍️ इरेटोस्थनीज का पृथ्वी सम्बन्धी विचार
इरेटोस्थनीज का विचार था कि पृथ्वी की आकृति गोलाभ है। यह अपने अक्ष पर 24 घण्टे में एक बार चक्कर लगाती है। इसे घूर्णन कहते हैं। इस गति से पृथ्वी पर दिन-रात होते हैं। उसका यह भी विचार था कि पृथ्वी के चारों ओर अनन्त ब्रह्माण्ड है जिसमें यह स्वतन्त्र घूमती है। सूर्य और चन्द्रमा भी गतिशील आकाशीय पिण्ड हैं जो ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनकी गतिशील क्रिया से ही पृथ्वी पर मौसमी परिवर्तन होते हैं। उसने सूर्य की स्थिति के अनुसार पृथ्वी पर अक्षांश व देशान्तरों को निर्धारित करने का भी प्रयास किया। समझा जाता है कि इसमें उसने अपने पूर्व के भूगोलवेत्ता पायथस के ज्ञान का लाभ उठाया। पायथस का मानना था कि गर्मियों में सूर्य मध्यान्ह के समय जिस स्थान पर जो सूर्य किरणों का कोण बनता है वही कोण उसका अक्षांश है। यह विचार आज भी सही है।
✍️ इरेटोस्थनीज के द्वारा पृथ्वी की परिधि-मापन
पृथ्वी की आकृति गोलाभ मानते हुए इरेटोस्थनीज ने दो भिन्न स्थानों पर सूर्य घड़ी नोर्मोन द्वारा सूर्य-किरणों का कोण मापन किया। ये दो स्थान सीन अर्थात् मिश्र में वर्तमान असवान और सिकन्दरिया थे इसके लिए उसने तीन परिकल्पनाएँ कीं—
(1) सीन तथा सिकन्दरिया के बीच की क्षैतिज दूरी 5000 स्टेडिया है।
(2) सीन नगर ठीक कर्क रेखा पर स्थित है इसलिए जून में इस नगर पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं।
(3) सीन और सिकन्दरिया एक ही देशान्तर रेखा पर स्थित हैं।
उस समय सीन में एक कुएं को इस कार्य के लिए चुना। इस कुएं में जून महीने में सूर्य-किरणें लम्बवत् पड़ने के कारण सूर्य की पानी में परछाई पड़ती थी। उसने देखा कि जब सीन पर सूर्य किरणें लम्बवत् रहती हैं तब सिकन्दरिया पर वो एक कोणी झुकाव पर होती है। यह कोणवृत्त का पचासवाँ भाग (1/50) होता है अर्थात् यह 7°12′ का होता है। इस आधार पर उसने यह ज्ञात किया कि यदि सीन और सिकन्दरिया के बीच क्षैतिज दूरी 5000 स्टेडिया और उनके बीच सूर्य का झुकाव 1/50 है तो सम्पूर्ण पृथ्वी के परिधि वृत्त की लम्बाई 5000×50 = 2,50,000 स्टेडिया होगी। यह लम्बाई इंग्लिश मील में 28000 मील होगी। आजकल परिष्कृत यंत्रों की सहायता से मापी गई लम्बाई 24,899 मील है। इस प्रकार इरेस्टोथनीज का परिधि मापन का तरीका तो सही था परन्तु उसमें कुछ सैद्धान्तिक अशुद्धियों के कारण वह सही परिधि नहीं निकाल सका।
उसकी मान्यताएँ निम्नलिखित आधार पर कुछ अशुद्ध रहीं-
1. पृथ्वी पूरी तरह गोल नहीं है। यह ध्रुवों पर चपटी है इसलिए इसकी भूमध्यरेखीय परिधि ध्रुवीय परिधि को तुलना में अधिक है।
2. सीन नगर ठीक कर्क रेखा पर स्थित नहीं है, वह वास्तव में 24°5’30” उत्तरी अक्षांश पर स्थित है। वह कर्क रेखा से 35′ उत्तर में या 38 मील (31640 मीटर) उत्तर में है। इसलिए उस स्थान पर 21 जून को सूर्य की किरणें ठीक लम्बवत् नहीं होती है।
3. सीन और सिकन्दरिया नगरों के बीच वास्तविक दूरी 5000 स्टेडिया न होकर 4530 स्टेडिया है। इस कारण परिधि में अशुद्ध हो जाना स्वाभाविक था।
4. सीन और सिकन्दरिया एक ही देशान्तर पर स्थित नहीं हैं, वास्तव में सीन सिकन्दरिया से 3°3′ अधिक पूर्व में है।
5. उसने वृत्त के पचासवें भाग के लिए दोनों नगरों के बीच कोण को 7°12′ माना, वास्तव में यह 7°30′ होना चाहिए।
उपर्युक्त सभी कारणों से उसके परिकलन में अशुद्धि हो गई। परन्तु वह वास्तविकता के काफी निकट पहुँच चुका था। वह स्वयं जानता था कि उसके परिकलन पूर्णतः शुद्ध नहीं हैं इसलिए उसने भूमध्य रेखा पर प्रत्येक देशान्तर के बीच 70 मील की दूरी मानी और पूरी पृथ्वी पर 360 देशान्तर माने। इस गणना से उसने कहा कि पृथ्वी की परिधि 360×70 = 25,200 मील है, परन्तु ये भी सही नहीं थी।
इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी को 7,80,000 स्टेडिया और सूर्य की दूरी को 40,00,000 स्टेडिया बताया जो बहुत अशुद्ध है, परन्तु उसके पास अच्छे दूरदर्शक यन्त्र नहीं थे। उसने तारों की सापेक्षिक स्थिति से ही दूरियाँ ज्ञात की थीं और अच्छे यन्त्रों के अभाव में ये अशुद्धियाँ हो जाना स्वाभाविक था।
✍️ इरेटोस्थनीज के द्वारा अक्षांश-देशान्तरों का निर्धारण
इरेटोस्थनीज ने उस समय के प्रसिद्ध नगरों के अक्षांश-देशान्तरों का भी निर्धारण किया, उसने भूमध्य रेखा के उत्तर में चार प्रमुख अक्षांश बताये। पहला अक्षांश मेरो अक्षांश था जो नील नदी स्थित मेरो नगर से होता हुआ भारत के दक्षिणी भाग से गुजरता था। भारत की समुचित जानकारी न होने के कारण उसने सोचा कि इस देश का विस्तार इसी अक्षांश तक है। उन्होंने बताया कि इससे और अधिक दक्षिण में पूर्वी सागर (एरीथीयन) है। दूसरा अक्षांश सिकन्दरिया का है जो दजला-फरात घाटियों में होता हुआ भारत के उत्तरी भाग से गुजरता है। तीसरा मुख्य अक्षांश रोड़ का है जो पश्चिम में जिब्राल्टर से प्रारम्भ होकर पूर्व में हिमालय तक जाता है। चौथा अक्षांश उत्तरी ध्रुव पर बताया जिसे थूले अक्षांश का नाम दिया। इस अक्षांश को वर्तमान में आर्कटिक वृत्त कहते हैं। उसने ये सभी नोमेन यंत्र की सहायता से मापे थे। उनकी वर्तमान स्थित आज के अनुसार काफी अशुद्ध है, परन्तु यह उस समय एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
इरेटोस्थनीज ने देशान्तरों का भी निर्धारण किया। उसने सिकन्दरिया से गुजरता हुआ मध्य देशान्तर बताया। इस देशान्तर को उसने सीन, मेरो, रोड्स, त्रोआस, बिर्जेन्टाइन और बोरोस्थनीज नगरों से गुजरता हुआ दिखाया। यह एक बड़ी अशुद्धि थी क्योंकि ये नगर भिन्न-भिन्न देशान्तरों पर स्थित है। उसने दूसरा देशान्तर कार्थेज, रोम, मसीन, जलडमरूमध्य होता हुआ दिखाया। तीसरा देशान्तर पूर्व में दजला-फरात घाटी से गुजरता हुआ, चौथा फारस से, पाँचवाँ भारत की पश्चिमी सीमा से और छठा भारत की पूर्वी सीमा पर खींचा गया। सम्भवतः ये देशान्तरों का निर्धारण उसने अपनी सुविधानुसार किया किन्तु ये वास्तविकता से परे थे।
✍️ इरेटोस्थनीज का विश्व का मानचित्र
इरेटोस्थनीज ने 220 ई.पू. में ज्ञात विश्व का मानचित्र बनाया। इसमें सिकन्दर तथा उसके उत्तराधिकारियों द्वारा एकत्रित भौगोलिक ज्ञान को दर्शाया गया था। यह मानचित्र अक्षांश व देशान्तर रेखाओं के जाल पर था। इसमें 7 अक्षांश तथा 7 देशान्तर रेखाएँ निरूपित थीं। उसका विचार था कि पृथ्वी पर मानव के रहने योग्य भूमि का विस्तार पश्चिम-पूर्व दिशा में अधिक है और उत्तर दक्षिण में कम है। उसके अनुसार पश्चिम में अटलांटिक महासागर से पूर्व में पूर्वी सागर तक यह भूमि 78,000 स्टेडिया लम्बी है। उत्तर में थूले से दक्षिण में सिनामन प्रदेश तक इसका विस्तार 38000 स्टेडिया ही है। उसे यूरोपियन क्षेत्रों का समुचित ज्ञान था। उसने भूमध्य सागरी देशों का भ्रमण स्वयं किया था। वह स्पेन, पुर्तगाल, इटली, फ्रांस, यूनान आदि के बारे में अच्छी तरह जानता था परन्तु उसे उत्तरी जर्मनी, ब्रिटेन, काला सागर के उत्तर की भूमि के विषय में कम ज्ञान था। इनका वर्णन व मानचित्रण नाविकों से कही-सुनी बातों के आधार पर ही उसने किया। उसे स्कीथिया क्षेत्र की बहुत कम जानकारी थी इसलिए इसे उसने सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग में दिखाया। मध्य एशिया को उसने भी अन्य भूगोलवेत्ताओं की भाँति बैक्ट्रीया ही बताया।
एशिया का मानचित्रण इरेटोस्थनीज ने सिकन्दर के द्वारा दिये गये वर्णनों के अनुसार किया। उसने फिलीस्तीन क्षेत्र के टारस पर्वतों को सही दिखाया और यह बताया कि ये पर्वत लगातार श्रृंखलाबद्ध रूप में पूर्व की ओर आर्मीनिया, कुर्दिस्तान, एल्बुर्ज और हिमालय पर्वतों से जुड़े हुए हैं। उसने हिमालय का नाम इमोस पर्वत दिया है और बताया कि ये भारत के उत्तर में पश्चिम-पूर्व दिशा में फैले हुए हैं। उसने गंगा नदी का प्रवाह मार्ग भी पश्चिम-पूर्व दिशा में बताया और इसके मुहाने को पूर्वी सागर में दिखाया।
इरेटोस्थनीज को दक्षिणी भारत का पूरा ज्ञान नहीं था इसलिए उसने अपने मानचित्र में ये क्षेत्र उत्तर से दक्षिण-पूर्व दिशा में फैले हुए दिखाये। वह लंका द्वीप के बारे में जानता था जिसे उस समय तप्रोबन कहते। इसे उसने वास्तविक से कहीं अधिक बड़ा दिखाया है। उसने लिखा है कि भारत के सुदूर दक्षिणी भाग कोनियासी अर्थात् कुमारी अन्तरीप से तपोबन जाने के लिए सात दिन का समय लगता है। उसने अरब प्रायद्वीप का सही चित्रण किया, परन्तु फारस की खाड़ी की सीमाएँ वास्तविक से अधिक बड़ी दिखाई तथा इसका विस्तार भी अशुद्ध दिखाया। फारस क्षेत्र को उसने एरियाना कहा। उसे अरब प्रायद्वीप के पश्चिम में लाल सागर का मालूम था, उसने बताया कि इसका विस्तार उत्तर में स्वेज थलडमरूमध्य से दक्षिण में टोलेमिस एपीथैरा तक 9000 स्टेडिया है। उसने कैस्पीयन सागर को उत्तरी हिम सागर का ही एक भाग समझा जो कि गलत था।
अफ्रीका के बारे में वह नील घाटी और भूमध्य सागरी तट के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता था। उसे भी यह गलत धारणा थी कि मेरो और लीबिया के दक्षिण में एक महासागरी विस्तार है। अपने पूर्व के भूगोलवेत्ताओं की तुलना में उसने कई जानकारी दी कि नील नदी के पश्चिम में न्यूबियन जनजातियाँ रहती हैं।
✍️ इरेटोस्थनीज के अनुसार पृथ्वी के जलवायु क्षेत्र
इरेटोस्थनीज का यह योगदान उसकी महान् उपलब्धि था। उसने जलवायु क्षेत्रों का निर्धारण अक्षांशों के आधार पर किया। उसने पृथ्वी पर मानव के रहने योग्य स्थानों को मुख्यतः पाँच जलवायु क्षेत्रों में विभक्त किया। पृथ्वी के बीचों-बीच के क्षेत्र को उष्ण कटिबन्ध (Torrid Zone) कहा। ऐसा क्षेत्र जहाँ साल भर गर्मी रहती है, इस क्षेत्र का अक्षांशीय विस्तार भूमध्य रेखा से 24° उत्तर व 24° दक्षिण में फैला है जो वर्तमान में भी बिल्कुल सही है। इनके उत्तर व दक्षिण भाग में समशीतोष्ण कटिबन्ध है जहाँ न अधिक गर्मी रहती है और न अधिक सर्दी है। इनसे अधिक उत्तर-दक्षिण में शीत कटिबन्ध है जहाँ अत्यधिक सर्दी पड़ती है।
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