हम्बोल्ट का भूगोल के विकास में योगदान
विषय-सूची
✍️ हम्बोल्ट का सामान्य परिचय
हम्बोल्ट का जन्म प्रशिया के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनका प्रारम्भिक अध्ययन वनस्पति विज्ञान एवं भूगर्भ शास्त्र में हुआ था। प्रतिष्ठित शास्त्रीय भूगोल के विकास में हम्बोल्ट का व्यक्तित्व महान् है। हम्बोल्ट ने आधुनिक भूगोल की नींव रखी जिस कारण उन्हें वर्तमान भूगोल का संस्थापक कहा जाता है।
गंटिगटन तथा फ्रीबर्ग विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद हम्बोल्ट महोदय ने खनन भू-वैज्ञानिक के पद पर कार्य किया एवं इसके अध्ययन के लिए वह फार्स्टर के साथ आल्पस पर्वत पर बवेरिया, इटली, आस्ट्रिया व स्विट्जरलैण्ड देशों में भी गया।
सन् 1798 में हम्बोल्ट फ्रैंच वनस्पति वैज्ञानिक ए. बौन्पलैण्ड के साथ मेड्रिड पहुँचा, जहाँ ऊँचाई के अनुसार बदलते तापमान का अध्ययन किया तथा बताया कि ज्यों-ज्यों ऊपर जाते हैं, तापमान में कमी आती है।
✍️ हम्बोल्ट का भूगोल में योगदान
हम्बोल्ट का भूगोल में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में जर्मनी में इनके नाम पर अनेक वैज्ञानिक संस्थायें स्थापित हैं जहाँ भूगोल सहित कई विज्ञानों को अध्ययन तथा अन्वेषण किये जाते हैं। हम्बोल्ट ने अपनी यात्राओं में स्वयं द्वारा एकत्रित तथ्यों तथा प्रेक्षणों का विश्लेषण करके एक युक्तिसंगत वर्णन प्रस्तुत किया था। उन्होंने अपने मूल विषय से हटकर भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, शरीर रचना तथा शरीर क्रिया विज्ञान से भी अन्वेषण किये थे।
हम्बोल्ट को जैव भूगोल का संस्थापक माना जाता है, इन्होंने ही सर्वप्रथम विश्व की प्राकृतिक वनस्पति तथ फसलों का ऊँचाई तथा तापमान से सम्बन्ध स्पष्ट किया।
अल्फ्रेड रसेल वालेस द्वारा 1876 में लिखित पुस्तक ‘जीवों का भौगोलिक विवरण’ में स्पष्ट किया गया है कि हम्बोल्ट के जीव-जन्तुओं तथा पादपों पर लिखे विभिन्न लेखों के बाद ही जैव भूगोल को पादप भूगोल तथा प्राणी भूगोल नामक शाखाओं में विभक्त किया गया।
यात्राओं के दौरान पहली बार कालमापी का प्रयोग करके धरातल पर देशान्तरों को निश्चित किया तथा वायुदाबमापी की सहायता से ऊँचाइयाँ निर्धारित कीं। तदुपरान्त हम्बोल्ट दक्षिणी अमेरिका की यात्रा पूर्ण करके 1804 में फ्रांस पहुँचा जहाँ 21 वर्षों तक पेरिस में रहा। फ्रांस पहुँचने के 25 वर्ष बाद रूसी सरकार का निमन्त्रण प्राप्त हुआ। रूसी सरकार का निमन्त्रण मिलने पर उन्होंने यूराल पर्वतीय क्षेत्र के धात्विक खनिज प्रदेशों का भ्रमण किया।
1830 में हम्बोल्ट रूस से बर्लिन लौटे जहाँ पर अपने जीवन के शेष 29 वर्ष व्यतीत किये। समताप रेखा तथा हिमावरित शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग हम्बोल्ट ने ही किया। इसके अलावा उन्होंने ‘one spirit one life’ तथा ‘Unity in Multiplicity’ की संकल्पना भी दी। हम्बोल्ट ने प्राकृतिक तथा मानवीय तथ्यों पर शुद्धतापूर्ण उल्लेख किया था। हम्बोल्ट प्रकृति की एकता में तथा प्राकृतिक कारणत्व में विश्वास रखता था।
✍️ हम्बोल्ट की प्रमुख रचनाएँ
हम्बोल्ट के निम्नलिखित ग्रन्थ हैं
1. ‘राइनलैण्ड बेसाल्ट’ पर लिखा गया शोध ग्रन्थ, 1789
2. प्रकृति दिग्दर्शन, 1847
3. दोनों गोलाद्धों की चट्टानों की विशिष्ट स्थिति पर भूवैज्ञानिक लेख, 1823
4. मध्य एशिया, 1829; दो खण्डों में
5. भूमध्यरेखीय प्रदेशों का वर्णन, 1815-1820
6. दक्षिणी अमेरिका के मूल वंशज
7. मैक्सिको तथा क्यूबा का प्रादेशिक वर्णन किया है।
8. कॉसमॉस
कॉसमॉस एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जो 1845 व 1862 के मध्य पाँच खण्डों में प्रकाशित हुआ। उपर्युक्त ग्रन्थों में हम्बोल्ट द्वारा अपने जीवन में की गई यात्राओं, प्रकृति से एकत्र तथ्यों व प्रेक्षणों का विश्लेषण है।
✍️ हम्बोल्ट द्वारा प्रस्तुत संकल्पनाएँ
हम्बोल्ट ने भूगोल की सात पक्षीय संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया था, जिनके आधार पर भूगोल का विकास हो रहा है। ये निम्न प्रकार हैं:-
1. पृथ्वी तल की संकल्पना मानवीय निवास के रूप में – हम्बोल्ट महोदय के अनुसार भूगोल में पृथ्वी तल का अध्ययन मानवीय निवास के रूप में किया जाता है। पृथ्वी तल की इस संकल्पना को उसके अनुदर्शकों ने माना तथा आगामी भूगोलवेत्ता भी सम्भवतः मानेंगे।
2. संसार के स्थानिक वितरणों का विज्ञान – हम्बोल्ट की मान्यता थी कि भूगोल स्थानिक वितरणों का शास्त्र है। वास्तविक रूप से स्थानिक वितरणों की संकल्पना ही भूगोल की मूलभूत संरचना है। स्थानिक वितरणों में सम्पूर्ण संसार का अध्ययन होता है जहाँ मानव निवास कर अपनी क्रियाएँ सम्पादित करता है।
3. सामान्य भूगोल ही भौतिक भूगोल है – हम्बोल्ट ने सामान्य भूगोल को ही भौतिक भूगोल माना है, जिसमें मानवीय अध्ययन को सम्मिलित किया है। अपने ग्रन्थ ‘कॉसमॉस’ में जलवायु के विस्तृत विवरण तथा शैलों पर फैली वनस्पति एवं मानव समुदायों का विवरण दिया है। उन्होंने भौतिक भूगोल का उद्देश्य सजीव एवं निर्जीव के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन करना बताया है।
4. भूगोल सम्बन्धों का अध्ययन है – हम्बोल्ट महोदय ने बताया कि भूगोल का प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी पर मानवीय तथा भौतिक तथ्यों के मध्य परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन है। भूगोल में प्राकृतिक पर्यावरण तथा मानव निर्मित दृश्यावली का अध्ययन किया जाता है। उन्होंने ‘कॉसमॉस’ में लिखा है कि “निर्जीव भू सतह में वही तत्त्व है जो जन्तुओं तथा पादपों में। सभी जैविक तथा अजैविक तत्त्वों में परस्पर सम्बन्ध पाया जाता है।” प्राकृतिक दृष्टिकोण से मानवीय क्षमता पादपों तथा जीव जन्तुओं की अपेक्षा बेहतर है। वह अपनी मानसिक क्षमता के बल पर प्रकृति में व्याप्त भिन्न प्रकार की जवलायु तथा दुर्गम भू दृश्यों में अपना असन्तुलन स्थापित कर लेता है तथा यथाशीघ्र प्राकृतिक नियन्त्रणों से बाहर निकल जाता है। तथापि मानव प्रकृति की पार्थिव एकता से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।
5. सांसारिक दृश्य घटनाओं की समझ – भौगोलिक अध्ययन में सांसारिक परिघटनाओं का अध्ययन प्रमुख कार्य है। ये घटनाएँ अत्यन्त जटिल होती हैं। इनमें ज्वालामुखी उद्गार, मनुष्य के कृषि व्यवसाय, परिवहन साधन, जलवायु के अनुसार मानवीय रहन-सहन आदि प्रमुख हैं। इनके कारण तथा परिणाम अलग-अलग होते हैं। यह आवश्यक नहीं कि समान जलवायु दशाएँ, मृदा, यातायात के साधन तथा सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर मनुष्य एक ही प्रकार की कृषि करे। इस प्रकार इन घटनाओं में पायी जाने वाली विभिन्नता तथा समाकलन का अध्ययन करके हम इनमें व्याप्त जटिलताओं को समझते हैं।
6. भूगोल में दृश्य घटनाओं की विषमांगता – हम्बोल्ट ने अन्य विद्वानों से भूगोल को अलग बताते हुए कहा कि अन्य विद्वानों में सम्पादित विभिन्न दृश्य घटनाओं में परस्पर समानता होती है, लेकिन भौगोलिक अध्ययन में सम्मिलित परिघटनाओं में विषमता पायी जाती है।
7. प्राकृति की एकता – हम्बोल्ट सदैव प्रकृति की एकता में विश्वास करता था। इन्होंने बताया कि सम्पूर्ण प्रकृति में प्राकृतिक परिघटनाओं के वितरण में भिन्नताएँ होते हुए भी एकता है। इस एकता को भूगोल प्रदर्शित करता है। उनके अनुसार उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक केवल एक ही आत्मा प्रकृति को सजीव बनाती है। पृथ्वी पर पत्थरों, नदियों, भवनों, वनस्पति, जीव जन्तुओं तथा मानवीय ओत-प्रोत में एक ही जीवन है। अर्थात् प्रकृति एक ऐसा समन्वय है जो सृष्टि की समस्त वस्तुओं का परस्पर सम्मिश्रण करती है। प्रकृति एक महत्त्वपूर्ण इकाई है जो जीवन प्राण द्वारा चेतन और सजीव है। इस प्रकार हम्बोल्ट बहुलता में एकता का अन्वेषण करने के प्रतिपादक थे।
✍️ हम्बोल्ट की शोध विधियाँ
भौगोलिक अध्ययन के लिए हम्बोल्ट ने निम्न पाँच पक्ष अपनाये थे —
(1). आनुभाविक विधि
प्रेक्षण तथा परीक्षण द्वारा ज्ञान प्राप्त करना। इसमें यन्त्रों का नूतन ज्ञान व प्रयोग समाहित है। (2). क्रमबद्ध विधि
अध्ययन में वर्गीकरण को महत्त्व देना, जैसे भौतिकी, भूविज्ञान आदि प्राकृतिक विज्ञानों की तरह भूगोल के क्रमबद्ध अध्ययन पर बल दिया गया।
(3). तुलनात्मक विधि
दृश्य घटनाओं तथा वितरणों के प्रेक्षणों, उदाहरणों और तथ्यों की तुलना करके निष्कर्ष निकालना।
(4). पूर्ण शुद्धता
प्रत्येक प्रक्रिया में शुद्धता का अनुसरण करना।
(5). मानचित्र विधियाँ
मानचित्र एवं रेखाचित्रों द्वारा तथ्यों को प्रदर्शित करना।
✍️ हम्बोल्ट की भौगोलिक खोज यात्रायें व साहसिक कार्य
हम्बोल्ट में अपवाद स्वरूप तीक्ष्ण प्रेक्षण की प्रतिभा थी और क्षेत्रीय कार्य में वह अद्वितीय था। हम्बोल्ट एक अन्य फ्रेंच वनस्पति विज्ञानी ए. बोनपलाँ के साथ सन् 1795 ई. में स्पेन की राजधानी मेड्रिड पहुँचा। मेड्रिड जाते समय उसने तापक्रमों और ऊँचाइयों का प्रतिदिन अध्ययन किया। वह प्रथम व्यक्ति था जिसने स्पेनिश मेसेटा (स्पेन का मध्य पठारी भाग) का सही माप प्रस्तुत किया। मेड्रिड से हम्बोल्ट व बोनपला वेनेजुएला के बन्दरगाह क्यूमना पहुँचे। समुद्र के सहारे यात्रा कर वे कराकस पहुँचे और वेलेन्सिया झील की खोज की। उसने यह भी मालूम किया कि वेलेन्सिया झील सिकुड़ कर छोटी हो गई है और उसके किनारे की भूमि पर फसल उत्पन्न करने के लिए खेत तैयार किये गये हैं। उसने इस झील को सिकुड़ने के कारण निकट के क्षेत्रों में वनों को नष्ट किया जाना बताया।
हम्बोल्ट ने वनों और वर्षा के बीच सुस्पष्ट सम्बन्ध बताया। यह विचार कि अधिक वनों का अर्थ है अधिक वर्षा, उसका यह विचार आज भी महत्त्वपूर्ण ढंग से स्थायी है। हम्बोल्ट द्वारा 1800 ई. में ओरोनिको नदी की खोज की गई और इस तथ्य की पुष्टि की गई कि नदी का सम्बन्ध अमेजन नदी से है। इस नदी के तटीय भाग और बेसिन निर्जन हैं। इस वास्तविक कार्य में उसे और उसके साथियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इनके पास खाने के लिए केवल केले, जंगली फल और मछलियाँ थीं और ये लोग मच्छरों, चींटियों के झुण्डों और विषुवत रेखीय कीड़ों, मानवभक्षी मछलियों और मगरमच्छों द्वारा काट खाये जाते थे। इन विपरीत परिस्थितियों में भी हम्बोल्ट ने माप के लिए और स्थानों के सही अक्षांश और देशान्तर निश्चित किये। इस अक्षत प्रदेश से उसने हजारों की संख्या में पौधों और शैलों के नमूने एकत्रित किये और उन्हें क्यूबा भेज दिया। ये लोग नवम्बर, 1800 में क्यूबा के बन्दरगाह क्यूमना वापस आ गये और क्यूबा के निवासियों की अर्थव्यवस्था और समाज का अध्ययन किया।
हम्बोल्ट और बोनपलाँ सन् 1801 में कार्टगेना (कोलम्बिया) पहुंचे और इस बन्दरगाह से ये लोग एण्डीज, एक्वेडोर और पीरू पहुँचे। हम्बोल्ट ने यहाँ की विभिन्न उपजों के बारे में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया था और उपजों पर ऊँचाई, तापक्रम और वनस्पति के प्रभाव को समझाया था। उत्तरी एण्डीज के उर्ध्ववर्ती कटिबन्धों का उसका वर्णन आदर्श वर्णन है। उसने एक्वेडोर से अनेक ज्वालामुखियों का अध्ययन किया और सक्रिय ज्वालामुखी के क्रेटर में उतर कर उसमें से पृथ्वी के भीतर से निकलने वाली गैसों के नमूने वहाँ से एकत्रित किये। इसके अतिरिक्त हम्बोल्ट 6326 मीटर ऊँची चिम्बोराजो पर्वतीय चोटी पर भी चढ़ा और मानव शरीर पर ऊँचाई के प्रभाव का अध्ययन किया। यह हम्बोल्ट ही था जिसने न्यून भार के परिणामस्वरूप चक्कर आने की अनुभूति का विश्लेषण किया था। वास्तविकता में इस बीमारी का कारण ऊँचाई वाले स्थानों पर ऑक्सीजन की कमी होती है।
एण्डीज पर्वत के दक्षिण की ओर जाने पर यह दल लीमा पहुँचा। पीरू के तट पर गुआना चिड़ियाओं के बीट को उन्होंने देखा जिसकी अत्यधिक उर्वरता का महत्त्व बताया। इसके अतिरिक्त पीरू के तट पर बहने वाली ठण्डे पानी की धारा का वर्णन पहली बार प्रस्तुत किया। धारा के जल का तापक्रम और उसकी गति को नापा गया। इस अभियान दल ने मार्च, 1803 में गुआक्विल से मैक्सिको के एकापुल्को बन्दरगाह के लिए नौचालन किया। उसने मैक्सिको के विभिन्न भागों की यात्रायें कीं और उसने सांस्कृतिक भू-दृश्य पर स्थलाकृतियों के प्रभाव का अध्ययन किया। फिलाडेल्फिया और वाशिंगटन में कुछ समय रुकने के पश्चात यह अभियान दल 1804 ई. में फ्रांस लौट आया।
हम्बोल्ट की साहसी प्रकृति उसे रुकने की अनुमति नहीं देती थी और इसलिए 1806 ई. में उसने विसुवियस ज्वालामुखी की यात्रा की। इस यात्रा की समाप्ति के पश्चात् उसने अपने अनुभवों और प्रेक्षणों को 30 पुस्तकों में फ्रेंच भाषा में प्रकाशित किये जो बाद में कई विदेशी भाषाओं में अनुवादित किये गये। इसने अनेक युवा वैज्ञानिकों को विश्व के अनखोजे क्षेत्रों के भूगोल का पता लगाने के लिए प्रेरित किया। अपने लेखों में हम्बोल्ट ने मैक्सिको के निवासियों की सम्पन्नता का कारण उनके द्वारा भूमि संसाधनों का उपयुक्त उपयोग किया जाना बताया। उसने पनामा संयोजक स्थल से होकर एक नहर खोदे जाने का विचार भी प्रस्तुत किया था।
हम्बोल्ट को 1829 ई. में रूस के सम्राट जार ने पीटर्सबर्ग आने का निमन्त्रण दिया, जहाँ उसे यूराल पर्वत के पास साइबेरिया की अक्षत भूमि की खोज का काम सौंपा गया। घोड़े पर सवार होकर हम्बोल्ट कजान, बोगोस्लास्की, तोबोलस्क, तारा, बेरस्क, औरनबर्ग और आस्ट्राखान होता हुआ लौटा और कैस्पियन सागर के निम्नतटीय भाग का सर्वेक्षण किया। समस्त साइबेरिया की यात्रा के काल में तापक्रम और वायुदाब का निरन्तर रिकार्ड रखा गया। इन्हीं अवलोकनों के आधार पर उसने यह निष्कर्ष निकाला था कि उन्हीं अक्षांशों में तट से अधिक दूर जाने पर तापक्रम में भिन्नता होती जाती है। उसके सुझाव पर ही जार ने रूस के विभिन्न क्षेत्रों में मौसम विज्ञान सम्बन्धी केन्द्रों की स्थापना की थी। इस खोज यात्रा के पश्चात् ही समताप रेखाओं को प्रदर्शित करने वाला एक विश्व मानचित्र तैयार किया गया। साइबेरिया की शीत से जमी हुई भूमि की विशेषता को स्पष्ट करने के लिए उसने हिमपरित शब्द की रचना की थी। इस खोज यात्रा के पश्चात् ही ऋतु विज्ञान शब्द भौगोलिक साहित्य में उपयोग में लिया जाने लगा जिसमें वायुमण्डल, तापक्रम, आर्द्रता, बेरोमीट्रिक भार, हवायें, वायुमण्डलीय शुद्धता तथा दृश्यता की मात्रा की विभिन्नताओं का वर्णन किया जाता है। इस प्रकार उसने विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भौगोलिक योगदान दिया।
✍️ हम्बोल्ट की कृति कॉसमॉस
हम्बोल्ट की महत्त्वपूर्ण कृति ‘कॉसमॉस’ 1645 ई. में प्रकाशित हुई थी जिसकी विश्वभर में प्रशंसा की गई है और अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद किये गये। कॉसमॉस में हम्बोल्ट की यात्राओं और खोज यात्राओं का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक का लेखन निम्न चार उद्देश्यों के लिए किया गया था।
1. ज्ञान की एक अलग और विशेष शाखा के रूप में विश्व का भौतिक वर्णन, उसकी परिभाषा और सीमा निर्धारण।
2. दूसरा यथार्थ अंश है जो कि प्रकृति के चित्रण का वैज्ञानिक रूप में प्रकृति की सत्ता का वास्तविक और आनुभाविक पक्ष है।
3. कल्पनाशील संकाय पर प्रकृति की क्रिया और मनोभाव, यात्रा, वर्णन, कविता, भूदृश्य, चित्रांकन और विदेशी पौधों के समूह के विषय प्रदर्शन के माध्यम द्वारा प्रकृति अवलोकन के लिए एक प्रेरक बनते हैं।
4. प्राकृतिक दर्शन का इतिहास और ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में एक जैव इकाई के रूप में क्रमिक विचार किया गया है।
हम्बोल्ट का ‘कॉसमॉस’ लिखने का उद्देश्य एक व्यापक विज्ञान का विकास करना था। जहाँ तक ‘कॉसमॉस’ की विषयवस्तु का प्रश्न है, इसके प्रथम खण्ड में ब्रह्माण्ड के पूरे चित्र का सामान्य वर्णन किया गया है। दूसरा खण्ड भू-दृश्य चित्रकारों द्वारा प्रारम्भ से अब तक के प्रकृति के चित्रण की विवेचना से प्रारम्भ होता है और वर्णन करना मानव के प्रयासों का इतिहास है। तीसरे खण्ड में खगोलीय आकाश के नियम, जिसे अब हम खगोल विज्ञान कहेंगे का वर्णन है। चौथा खण्ड पृथ्वी से सम्बन्धित है जिसमें हम्बोल्ट ने मानव को पृथ्वी का एक भाग माना है।
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