फ्रेडरिक रेटजेल एक महान मानव भूगोलवेत्ता 

फ्रेडरिक रेटजेल एक महान मानव भूगोलवेत्ता 

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल का जीवन परिचय

       फ्रेडरिक रेटजेल का जन्म 1844 ई. में हुआ था तथा उसकी प्रारम्भिक शिक्षा जर्मनी के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई थी। उसका जन्म प्रशिया के कार्लशू नगर में हुआ था। बाल्यकाल में उसने चार वर्ष तक एक रसायनज्ञ के शिष्य के रूप में कार्य किया था। उसकी शिक्षा दृढ़ आधार पर हुई थी तथा उसकी रुचि के विषय विस्तृत थे। रेटजेल ने प्राणी विज्ञान, भूविज्ञान तथा मानवशास्त्र में शिक्षा प्राप्त की थी। रेटजेल ने सर्वप्रथम 1869 में डार्विन के विकासवादी ग्रन्थ की समालोचना प्रस्तुत की। डार्विन के विकासवादी दर्शन का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल का प्रारंभिक काल

      फ्रांस के माण्टपेलियर नगर में फ्रेडरिक रेटजेल ने प्रसिद्ध प्राणी- वैज्ञानिक चार्ल्स मार्टिन्स के साथ कार्य किया तथा उसी समय एक पत्रिका में अपने लेख प्रकाशित किये जिनका शीर्षक ‘भूमध्यसागरीय तट से जीव वैज्ञानिक पत्र’ था। म्यूनिख में यह महान मानवशास्त्री वैगनर के सम्पर्क में आया। वह उसके जीवों के प्रवास के सिद्धान्त से प्रभावित हुआ। इसके बाद रेटजेल 1872 में पूर्वी यूरोपीय देशों तथा इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको तथा क्यूबा गया। इन यात्राओं के दौरान वह प्राकृतिक दृश्यों के भौगोलिक वर्णन में सिद्धहस्त हो गया। उसने कैलिफोर्निया, मैक्सिको तथा क्यूबा में चीन से प्रवास के तथ्यों का अध्ययन करके चीनी प्रवास पर अपना शोध प्रबन्ध लिखा जिस पर उसे Ph.D. (डॉक्टरेट) की उपाधि मिली थी। 1875 से 1886 में वह लिपजिंग में भूगोल का प्रोफेसर हो गया जहाँ इन्होंने मृत्युपर्यन्त कार्य किया। लिपजिंग में उन्होंने वहाँ स्थापित ‘Geographical Society’ को अपने विशिष्ट कार्यों से विश्वविख्यात किया। अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान फिशर, एस्कर्ट एवं हैटनर ने रेटजेल के सान्निध्य में अध्ययन एवं कार्य किया था।

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल का भूगोल अध्ययन एवं विकास

        रेटजेल ने भूगोल का अध्ययन और विकास हम्बोल्ट की तरह यात्राओं द्वारा किया था जिस प्रकार हम्बोल्ट ने यात्रा करके पृथ्वी के तत्त्वों के साथ सम्पर्क में आकर उनका भौगोलिक वर्णन किया था उसी प्रकार रेटजेल ने भी अपनी यात्राओं में यथार्थ तथ्यों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके उनका अध्ययन एवं वर्णन किया था। उसने डार्विन के सिद्धान्त को मानव समाज पर लागू किया। रेटजेल में देशभक्ति की भावना भी थी जिस कारण वह सेना में भर्ती हुआ व दो वर्ष बाद घायल भी हुआ।

       रेटजेल ने 1874-75 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको की यात्रा की थी और इस प्रकार उने अपने अध्ययन क्षेत्र का विस्तार किया था। संयुक्त राज्य अमेरिका में उसने अन्य देशों के नागरिकों विशेषकर रैड इंडियन्स की आर्थिक व्यवस्था, समाज, आवास और जीवन शैलियों का अध्ययन किया। उसने अपने क्षेत्र अध्ययन के आधार पर आक्रामक और प्रसारी मानव समूह और निवर्तनी समूहों के बीच सम्पर्क के परिणामस्वरूप भौगोलिक प्रतिमानों के बारे में कुछ सामंजस्य स्थापित करना आरम्भ कर दिया था।

       ‘मानव भूगोल विज्ञान’ में रेटजेल ने मानव भूगोल के व्यवस्थित अध्ययन को प्रस्तुत करने के लिए निगमनात्मक उपागम का उपयोग किया। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में उसने पृथ्वी को प्राकृतिक अवस्थाओं के सन्दर्भ में व्यवस्थित किया था। दूसरा खण्ड पर्यावरण प्रभावी मानव अभिक्रिया के लिए सुरक्षित था। यह दूसरा उपागम क्षेत्रीय वितरण दृष्टिकोण से प्रभावित था।

      रेटजेल का विश्वव्यापी दृष्टिकोण जर्मनी से बाहर विशेषकर फ्रांस, इंग्लैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हुआ। एलन चर्चिल सेम्पुल उसके प्रमुख शिष्यों में से एक थी और पर्यावरण श्रेष्ठता दर्शन की वह निष्ठावान समर्थक थी।

    रेटजेल से पूर्व व्यवस्थित भूगोल की नींव एलेक्जेण्डर वॉन-हम्बोल्ट ने और प्रादेशिक भूगोल की नींव कार्ल रिटर द्वारा रखी गई थी। पेश्चल और रिचथोफेन ने धरातलीय लक्षणों का व्यवस्थित अध्ययन करने के मार्ग-निर्देशन स्थापित किये थे। रेटजेल ने विभिन्न जातियों और राष्ट्रों में मानव जीवन शैलियों की तुलना की और इस प्रकार मानव भूगोल का व्यवस्थित अध्ययन किया। जातियों, प्रजातियों और राष्ट्रों के अध्ययन में उसकी तीव्र रुचि थी और पर्याप्त क्षेत्रीय कार्य करने के पश्चात् उन्होंने ‘मानव भूविज्ञान’ शब्द का आविष्कार किया, जिसे उसने भौगोलिक अध्ययन का मुख्य क्षेत्र माना।

      रेटजेल बहुमुखी शैक्षणिक रुचि का निष्ठावान जर्मन था। देशभक्ति के कारण ही वह 1870 के फ्रेंको-प्रशा युद्ध प्रारम्भ होने पर प्रशा की सेना में भर्ती हो गया और दो बार घायल भी हुआ। जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् जर्मन प्रवासियों की जीवन शैली का अध्ययन करने के लिए उसने अपने आप को समर्पित कर दिया था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने हंगरी और ट्रान्सिलवेनिया की यात्रा की थी क्योंकि इन देशों में जर्मन अधिक संख्या में निवास कर रहे थे। 

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल के प्रमुख ग्रन्थ

         रेटजेल ने अनेक ग्रन्थों की रचना की। रेटजेल के प्रमुख ग्रन्थ निम्नांकित हैं—

1. डार्विन के विकासवादी सिद्धान्त की व्यवस्थित समालोचना, 1869

2. एक प्राणिवेत्ता की यात्राएँ

3. भूमध्यसागरीय तट के जीव वैज्ञानिक पत्र, 1870

4. चीनी प्रवास

5. उत्तरी अमेरिका का भौतिक एवं सांस्कृतिक भूगोल – दो खण्डों में 1878, 1880

6. वोल्करकुण्डे तीन खण्डों में 1885, 1886 व 1888 में, 

    इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘The History of Mankind’ है। 

7. एन्थ्रोपोज्योग्राफी दो खण्डों में 

प्रथम खण्ड – An Introduction to the Application of Geography toHistory, 1882

द्वितीय खण्ड – The Geographical Distribution of Mankind, 1891 के नाम से भी जाने जाते हैं।

8. Vergleichende Erdkunde (Earth and Life: A Comparative Geography, 1901-1902 

9. Politische Geographic (Political Geography, 1897) 

10. जर्मनी ड्यूशलैण्ड 1898

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल ~ मानव भूगोल का जनक

        रेटजेल ने भूगोल के अध्ययन में मानव के स्थान को स्थायी प्रकार से सुरक्षित रखने का कार्य किया था, जिस कारण रेटजेल को ‘मानव भूगोल का जन्मदाता’ भी कहा जाता है। रेटजेल की रचनाओं में एन्थ्रोपोज्योग्राफी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार पेशेल के लेखों से ‘भूआकृति विज्ञान’ का जन्म हुआ था, उसी प्रकार रेटजेल के प्रन्थ ‘एन्थ्रोपोज्याग्राफी’ से मानव भूगोल का विकास हुआ। अपने ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ ग्रन्थ में रेटजेल ने मानव सम्बन्धी तर्थ्यो, प्राकृतिक परिवेश के तथ्यों आदि का विशद् विवरण दिया है। अतः उसके ग्रन्थ में मानव वितरण के लिए उत्तरदायी कारक, प्राकृतिक परिवेश के तत्त्वों की सरल एवं स्पष्ट भाषा में व्याख्या की गई है।

✍️ फ्रेडरिक रेटजेल का भूगोल में योगदान

        पूर्वकथनानुसार रेटजेल डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त से प्रभावित रहा था। उसने डार्विन के सिद्धान्त को मानव समाज पर लागू किया। यह सादृश्यता बतलाती है कि मानव समूह किसी एक पर्यावरण में उसी प्रकार संघर्ष करता है जिस प्रकार की वनस्पति और जीवित पशु करते हैं। यह सामाजिक डार्विनवाद कहलाता है। इस प्रकार रेटजेल का मूल दर्शन भी भौतिक पर्यावरण में योग्यतम की उत्तरजीविता था।

         रेटजेल ने 1890 में जर्मनी को समुद्र पार उपनिवेश स्थापित करने और ब्रिटेन को चुनौती देने के लिए नौसेना-बेड़ा तैयार करने के लिए सक्रिय अभियान चलाया। उसकी विचारधरा डार्विन के उत्तर-जीवितता के संघर्ष का स्थानिक परिणामों की विचारधारा को प्रकट करती थी। क्षेत्रीय विकास के नियमों के अनुसार राज्यों को बढ़ने के लिए विस्तार करना चाहिए और निम्नकोटि के सभ्यता के मूल्य पर विस्तार करने चाहिए। यह नियम प्राकृतिक माना गया है किन्तु जर्मनी के वर्तमान एकीकरण ने अन्तर-राज्य यूरोप और साम्राज्य की प्रतिस्पर्द्धा पर आक्रमण की योजना बना ली थी तथा 1884-85 में बर्लिन कांफ्रेंस में अफ्रीका को बाँटने की योजना प्रस्तुत की गई। रेटजेल के विचार जर्मनी की क्षेत्रीय योजना के अनुरूप थे। उसकी मृत्यु और महायुद्ध के पश्चात् जर्मन भू-राजनीतिज्ञों ने अपने स्वयं की महत्त्वाकांक्षाओं के अनुकूल थे जिसके कारण एंग्लो-अमरीकन भूगोलवेत्ताओं ने उसके विचारों को निष्कृत किया। यदि जर्मनी ने महायुद्ध जीत लिया होता तब संभवतः उसके स्थान पर मेकिन्डर को क्षति उठानी पड़ती।

     रेटजेल ने 1897 ई. में अपनी ‘राजनैतिक भूगोल’ पुस्तक प्रकाशित की थी। उसने दृढ़तापूर्वक कहा था कि राज्य को या तो सामान्य जीवन के समान विकसित होना चाहिए अथवा उसे समाप्त हो जाना चाहिए, वह कभी भी स्थिर नहीं रह सकता। उसके इस वास स्थान के दर्शन ने श्रेष्ठ और हीन प्रजातियों के विवाद को जन्म दिया, जिसने यह प्रचारित किया कि श्रेष्ठ प्रजाति को अपने क्षेत्र अथवा वास स्थान को तीन पड़ौसियों के मूल्य पर विस्तार का अधिकार है।

>> रेटजेल ने भूगोल के विकास में योगदान के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं :-

(1) सांस्कृतिक वातावरण

       इसका उल्लेख रेटजेल की पुस्तक ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ के दूसरे खण्ड में है। इसमें बताया गया है कि भिन्न-भिन्न प्राकृतिक वातावरण के कारण भिन्न सांस्कृतिक वातावरण उत्पन्न हुआ है। उसने बताया कि भिन्न वातावरण के कारण ही विश्व के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में रहने वाले आदिवासियों का रहन-सहन व अर्थव्यवस्था भिन्न है।

(2) जीवित भूमि

       रेटजेल ने बताया कि संसार के सभी जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं। इस संघर्ष में बड़ा ताकतवर जीव छोटे कमजोर जीव को मार देता है। इसी प्रकार मानव समुदाय में भी कुछ जातियाँ घनिष्ठ व अन्य कमजोर हैं। इसलिए ताकतवर जाति समुदाय अपने पराक्रम से कमजोर जातियों को नष्ट कर उनकी भूमि व संसाधन हड़प लेते हैं। इसका कारण यह है कि ताकतवर समुदाय जीवित हैं और प्रत्येक जीव वस्तु को वृद्धि करने और विकसित होने का अधिकार है। इसका नाम उसे लेबेन्सरोम अर्थात् जीवित भूमि दिया है।

(3) प्राकृतिक वातावरण 

      रेटजेल ने कहा कि पृथ्वी का प्राकृतिक वातावरण सर्वोपरि है। इसका भूगोल में अवश्य अध्ययन किया जाना चाहिए। इस वातावरण में भू-उच्चवच, जलवायु, वनस्पति, जीव-जन्तु, मिट्टी, खनिज, जल संसाधन, वायुमण्डल, जलमण्डल आदि महत्त्वपूर्ण हैं। ये सभी कारक जीवन को प्रभावित करते हैं।

(4) राजनीतिक भूगोल के विकास में योगदान

     रेटजेल ने लेबेन्सरोम की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए बताया कि इसका अर्थ है “ऐसा भौगोलिक क्षेत्र जिसमें जीवित व विकसित होते हैं या रहते हैं।’ इसे संक्षेप में ‘जैविक स्थान’ भी कह सकते हैं। रेटजेल के अनुसार मानव समूह के जैविक निवास की सीमा में लेबेन्सरोम सामान्य तथा प्राकृतिक दोनों प्रकार का होता है। स्मिथेनर ने इनको वास्तविक एवं राजनीतिक लेबेन्सरोम तथा हाऊशोफ ने इसे मानवीय निवास से बाहर की सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्रियायें बताया है। इसका विकास 20वीं सदी के प्रारम्भ में ‘हृदय प्रदेश’ विश्व द्वीप तथा भूराजनीति के रूप में सार्थक राजनीतिक सिद्धान्त पर सिद्ध हुआ तथा किसी प्रदेश की जटिल व्यवस्था में लेबेन्सरोम मानव राजनीतिक संगठन की एक इकाई माना गया। इस प्रकार रेटजेल ने राजनीतिक भूगोल को पूर्णतया पोषित एवं पल्लवित किया जिस कारण उसको ‘राजनीति भूगोल का पिता’ भी कहा जाता है।

(5) पर्यावरणविद निश्चयवाद

   रेटजेल ने ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ के प्रथम खण्ड में बताया है कि धरातल पर मानवीय क्रियाकलापों के निर्धारण में वातावरण के चार प्रभावी समूह बताये हैं

1. शारीरिक प्रजातीय लक्षणों वाले प्रभाव

2. मनोवैज्ञानिक प्रभाव

3. जनसमूह की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पर प्राकृतिक शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव 

4. मानव के वितरण एवं गतिशीलता को नियन्त्रित एवं निर्धारित करने वाले प्रभाव।

    इन चारों प्रभावों के कारकों का समूह प्राकृतिक वातावरण का प्रमुख आधार है, उसने मानव को उसके प्राकृतिक वतावरण की उपज माना। इस प्रकार वे कठोर निश्चयवादी भूगोलवेत्ता थे। उनके अनुसार मानव को भूमि पर निवास करना चाहिए, प्राकृतिक वातावरण द्वारा प्रदत्त ऐसी भूमि पर ही विधान के अधीन होकर उन्हें मृत्यु का वरण करना चाहिए।

(6) मानव भूगोल के विकास में योगदान 

       मानव भूगोल विज्ञान में रेटजेल मानव भूगोल को व्यवस्थित अध्ययन को प्रस्तुत करने के लिए निगमनात्मक उपागम का उपयोग किया। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में उसने पृथ्वी को प्राकृतिक अवस्थाओं के सन्दर्भ में व्यवस्थित किया था। दूसरा खण्ड पर्यावरण प्रभावी मानव अभिक्रिया के लिए सुरक्षित था। यह दूसरा उपागम क्षेत्रीय वितरण दृष्टिकोण से प्रभावित था।

(7) भूगोल में द्वैतवाद

       रेटजेल ने भूगोल में द्वैतवाद को जन्म दिया। उसने भूगोल की दो प्रमुख शाखाएँ बताई। पहली शाखा भौतिक भूगोल थी, जिसमें प्रकृति सम्बन्धी सभी प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन करना शामिल है। उसने वातावरणीय शक्तियों को सर्वोपरि माना। दूसरी शाखा मानव भूगोल थी, जिसमें प्राकृतिक वातावरण और मानवीय क्रियाकलापों के पारस्परिक मार्थे एवं रिचथोफेन द्वारा लिखित प्रादेशिक अध्ययनों को संश्लेषित करके भूगोल को सम्बद्धपूर्ण विषय के रूप में विकसित किया था। हैटनर के अनुसार भूगोल सामान्य भूविज्ञान न होकर, पृथ्वी तल का क्षेत्रीय विज्ञान है, जिसका प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रों का अध्ययन करना है।

✍️ भू-राजनीति

      बीसवीं सदी के प्रारम्भिक काल में राजनीतिक भूगोल के राष्ट्रीय शक्ति के अध्ययन की प्रक्रिया में एक नवीन परिवर्तन भू-रानीति के रूप में आया। इसके प्रतिपादक और भूगोलवेत्ता जर्मन भूगोलवेत्ता एवं सैनिक अधिकारी कार्ल हॉशोफर थे, जिन्होंने राजनीतिक भूगोल के स्वरूप को परिवर्तित कर भू-राजनीतिक के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रतिपादित सिद्धान्तों को जर्मनी के राष्ट्रवादी सन्दर्भ में प्रस्तुत करना था लेकिन सैद्धान्तिक दृष्टि से उनका कार्य महत्त्वपूर्ण है। इस सम्बन्ध में जर्मन विद्वानों ने बताया कि “भू राजनीति राज्य की भौगोलिक आत्मा है।” फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता डीमान्जियां ने भू राजनीति को प्रचार एवं उपदेश का राष्ट्रीय संस्थान बताया है। स्वीडिश भूगोलवेत्ता रूडोल्फ जेलेन ने भू-राजनीति के विचार दिये, जिसे एक विचारधारा के रूप में जर्मन विद्वान कार्ल हॉशोफर ने अपनी पुस्तक ‘मीन कैम्फ’ में लिखा था। सन् 1922 में आर्थर डिस्क की राजनीतिक भूगोल प्रकाशित हुई। सन् 1930 में भू-राजनीति की पुस्तक ‘विश्वयुद्ध’ से पूर्व एवं पश्चात् की ‘विश्व शक्तियाँ’ तथा सन् 1932 में ‘महान शक्तियों के पार’ प्रकाशित हुई जिनके लेखक जेलेन थे।


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