वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल | Weber’s Model of Industrial Location

वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल

(Weber’s Model of Industrial Location)

       अल्फ्रेड वेबर उद्योग के स्थानीयकरण के सिद्धान्त को प्रस्तुत करने वाले पहले विद्वान थे। सन् 1929 में उनकी पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद ” Theory of Location of Industries ” के नाम से हुआ। सन् 1882 तथा 1885 के बीच विल्हेम लौन्हार्ट (Wilhelm Launhardt) ने प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने न्यूनतम लागत (Least Cost) अवस्थिति सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। वेबर ने इसी विचार को अपने सिद्धान्त में आगे बढाने का प्रयत्न किया।

✍️ वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल से सम्बंधित प्रमुख कारक 

1. सर्व – प्राप्य अथवा सर्वत्र सुलभ पदार्थ (Ubiquities) 

ये पदार्थ सभी स्थानों पर सुगमता से मिल जाते हैं, जैसे मिट्टी, जल, वायु, ईंट – पत्थर आदि।

2. स्थानिक या स्थानबद्ध पदार्थ (Localised or Fixed Materials)

 ये पदार्थ किसी निश्चित स्थान पर पाए जाते हैं, जैसे – खनिज ईंधन आदि। इनका उद्योग के स्थानीयकरण पर प्रभाव पड़ता है, स्थानीय पदार्थ दो प्रकार के होते हैं :

(क). शुद्ध पदार्थ (Pure Materials) : ये ऐसे पदार्थ हैं जिनका भार उत्पादन प्रक्रिया में घटता नहीं, जैसे – सूत से कपड़ा बनाने में कपड़े का भार सूत के भार के बराबर ही होता है। इस प्रकार के पदार्थ का प्रयोग करने वाले उद्योग कच्चे माल के स्रोत अथवा बाजार कहीं पर भी स्थापित किए जा सकते हैं।

(ख). भार हासमान पदार्थ (Gross Materials) : ऐसे, स्थानीय पदार्थ जिनका भार उत्पादन प्रक्रिया में घट जाता है, भार हासमान या मिश्रित पदार्थ कहलाते हैं। चीनी उद्योग में गन्ना, कागज, उद्योग में लकड़ी व लुग्दी तथा लोहा – इस्पात उद्योग में लौह अयस्क इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

3. पदार्थ सूचकांक (Material Inderst)

     पदार्थ सूचकांक उत्पादित वस्तु तथा कच्चे माल के भार के अनुपात का द्योतक है। इसे निम्न सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

पदार्थ सूचकांक = उत्पादित वस्तु का भार

✍️ वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल  ~ स्थानीय पदार्थ का भार

          स्थानीय पदार्थ की तुलना में उत्पादित वस्तु का भार बढ़ने वाले उद्योगों में यह ‘ पदार्थ सूचकांक एक से अधिक, समान भार वाले उद्योगों में एक तथा भार हासमान पदार्थों का प्रयोग करने वाले उद्योगों में इसका मूल्य एक से कम होता है।

वेबर ने निम्नलिखित अभिधारणाओं तथा मान्यताओं का को बताया :

1. जिस प्रदेश में उपयोग की स्थापना करनी है वह एक विलग / एकाकी प्रदेश है।

2. कुछ प्राकृतिक संसाधन, जैसे – वायु, जल, रेत आदि सर्वत्र सुलभ पदार्थ हैं जबकि कछ अन्य पदार्थ, जैस – कोयला, लौह – अयस्क आदि निश्चित स्थानों पर ही पाए जाते है।

3 . कच्चे माल के स्रोत मालूम हैं तथा उनकी स्थिति का पूरा ज्ञान है।

4. उपलब्ध श्रमिक सर्वत्र सुलभ नहीं होते बल्कि वे विशेष स्थानों पर अवस्थित होते हैं।

5 . परिवहन का व्यय केवल भार तथा दूरी के अनुपात में ही बढ़ता है अर्थात् भार तथा दूरी बढ़ने से परिवहन का व्यय बढ़ जाता है।

उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर उद्योग की अवस्थिति निम्नलिखित तीन शक्तियों के परिणामस्वरूप होगी ।

✍️ वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल प्रमुख तीन शक्तियां

1. आपेक्षिक परिवहन व्यय (Relative Transport Costs)

उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट या बाजार के निकट या फिर इन दोनों के मध्य किसी उचित स्थान पर स्थापित होगा। उन्होंने ‘ आपेक्षिक परिवहन व्यय के सिद्धान्त को विभिन्न दशाओं में लागू किया, जो निम्नलिखित हैं :

(क) एक बाजार और एक कच्चा माल (One Market and One Raw Material) :

       जब उत्पादित वस्तु का एक ही स्थानीय बाजार हो तथा उसमें एक ही कच्चा माल प्रयोग होता हो तो उद्योग की अवस्थिति के तीन सम्भावित केन्द्र हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं :

स्थिति 1 : यदि कच्चा माल सर्वत्र सुलभ (Ubiquitous) है तो उद्योग बाजार के निकट स्थित होगा क्योंकि यहाँ पर कच्चे माल तथा उत्पादित वस्तुओं का परिवहन व्यय न्यूनतम होगा।

स्थिति 2 : यदि कच्चा माल स्थानिक (Fixed) तथा शुद्ध (Pure) है तो उद्योग बाजार अथवा कच्चे माल के निकट स्थापित हो सकता है

स्थिति 3 : यदि कच्चा माल स्थानिक तथा भार हासमान (Gross) है तो उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थापित होगा।

(ख) एक बाजार और दो कच्चे माल (One Market and Two Raw Materials) :

यदि वस्तु का बाजार एक ही स्थान पर हो और उसके निर्माण में दो कच्ची सामग्रियों का प्रयोग किया जाता हो तो उद्योग की अवस्थिति निम्नलिखित में से किसी एक स्थान पर हो सकती है : 

स्थिति 1 : यदि दो कच्चे माल सर्वत्र सुलभ हों तो निर्माण म उद्योग की स्थापना बाजार के निकट होगी।

स्थिति 2 : यदि एक कच्चा माल सर्वत्र सुलभ हो तथा दूसरा कच्चा माल निश्चित स्थान पर पाया जाता हो और दोनों कच्चे माल शद्ध (Pure) हों तो उद्योग बाजार के निकट स्थापित होगा।

स्थिति 3 : यदि दोनों कच्चे माल स्थानिक (Fixed) तथा शब्द हों तो उद्योग की स्थापना बाजार के निकट होगी।

     अवस्थिति की समस्या जटिल हो जाती है। इसके समाधान के लिए वेबर महोदय ने अवस्थिति त्रिभुज (Locational Triangle) की रचना की। इस त्रिभुज के आधार के दोनों सिरे, पहले कच्चे माल (RI) तथा दूसरे एक कच्चे माल (R2) के स्रोतों को दर्शाते हैं जबकि इसका शीर्षक बिन्द बाजार (M) को प्रदर्शित करता है।

    उत्पादन प्रक्रिया में दोनों कच्चे मालों का 50-50 % भार नष्ट हो जाता है और प्रत्येक की उद्योग में मांग 2,000 टन प्रति वर्ष है। ऐसी स्थिति में कौन – से केन्द्र पर परिवहन व्यय न्यूनतम होगा, यह निम्न गणना से ज्ञात किया जा सकता है :

यदि उद्योग को कच्चे माल के दोनों स्रोतों के मध्यवर्ती स्थान (x) पर स्थापित किया जाए तो परिवहन व्यय इस प्रकार होगा :

(a) R1 से X तक परिवहन व्यय = 2,000 टन × 50 किमी. = 1,00,000 टन किमी.

(b) R2 से X तक परिवहन व्यय = 2,000 टन × 50 किमी. = 1,00,000 टन किमी .

(c) उत्पादित वस्तुओं के 2,000 टन भार को स्थान से बाजार M तक पहुँचाने के लिए परिवहन व्यय = 2,000 टन × 87 किमी. = 1,74,000 टन किमी.

कुल परिवहन व्यय (a + b + c) = 1,00,000 + 1,00,000 + 1,74,000 = 3,74,000 टन किमी.

इस प्रकार उपर्युक्त गणना से स्पष्ट है कि उद्योग को X स्थान पर स्थापित करने से कुल परिवहन व्यय M, R1 तथा R2 पर स्थापित करने की अपेक्षा कम होता है। अतः न्यूनतम परिवहन व्यय के सिद्धान्त के अनुसार उद्योग की स्थापना के लिए X स्थान सबसे उचित है।

       वेबर ने यह माना कि श्रम की लागत भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक बदलती है और उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करती है। यदि किसी स्थान पर उद्योग स्थापित करने में परिवहन व्यय अधिक होता है और श्रम की लागत कम होती है, तो सम्भव है कि अधिक परिवहन व्यय की असुविधा का मजदूरी की कम लागत की सुविधा द्वारा निराकरण हो जाए। 

✍️ वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल ~ आइसोडापेन

        कितना धन परिवहन लागत पर खर्च करे और कितना धन श्रम की लागत पर। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए वेबर ने आइसोडापेन (Isodapane) का प्रयोग किया। आइसोडापेन वह रेखा है, जो समान कुल लागतों के बिन्दुओं के बिन्दु – पथ को जोड़ती है।

✍️ वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल ~ समूहन अथवा एकत्रीकरण (Agglomeration)

     वेबर के अनुसार समूहन या एकत्रीकरण तीन प्रकार का होता है :

(i) कारखाने के विस्तार के कारण, जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन लाभ प्राप्त हो।

(ii) एक ही उद्योग के कई कारखाने एक स्थान पर स्थापित हो जाने पर, जिससे सामान्य तकनीकी सुविधाएँ तथा उत्पादित वस्तु के विक्रय सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।

(iii) विभिन्न प्रकार के उद्योग एक स्थान पर स्थापित होने से, जिस कारण उद्योगों के लिए सामूहिक सुविधाएँ, जैसे- परिवहन के साधन आदि उपलब्ध होते हैं।

A, B तथा C तीन अवस्थिति त्रिभुज हैं। परिवहन व्यय की दृष्टि से प्रत्येक त्रिभुज में एक सर्वोत्तम बिन्दु है। इन तीनों सर्वोत्तम बिन्दुओं को केन्द्र मानकर तीन ऐसे आइसोडापेन खींचे गए। हूवर का सिद्धान्त (Theory of Hoover) ई.एम. हूवर अमेरिकी विद्वान थे। 



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