कृतिका दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेकर आज विद्यालय आयी थी । प्रार्थना सभा में कृतिका का स्वागत करते हुए उसे अपने अनुभव साझा करने हेतु आमंत्रित किया गया । कृतिका ने बताया कि उसे वहाँ अन्य राज्यों के बच्चों के साथ रहने का अवसर मिला और उसने उनकी कला, संस्कृति , भाषा , खानपान , वेशभूषा के बारे में अनेक नई बातें जानी । साथ ही उसने अपनी राजस्थानी संस्कृति , कला , भाषा , खानपान , वेशभूषा आदि के संबंध में परेड के साथियों को जानकारी दी ।
प्रार्थना सभा के बाद कक्षा में पहुंच कर अध्यापिका ने कहा , ‘आज हम भी राजस्थान की संस्कृति व कला के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे । राजस्थान में अनेक धर्म व सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं । जैसे हिन्दू , मुस्लिम , जैन , बौद्ध , सिक्ख , ईसाई आदि ।
दक्षिण राजस्थान में एक बड़ी संख्या आदिवासियों की है, जिनमें भील , मीणा , सहरिया , गरासिया , डामोर आदि प्रमुख हैं । राज्य में भाषा , वेशभूषा , रहन – सहन , खानपान आदि में विविधता दिखाई देती है ।
राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी है । राजस्थान के विभिन्न अंचलों में अनेक प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं , परन्तु मुख्य रूप से राजस्थानी भाषा को दो रूपों में जाना जाता है:-
1. पूर्वी राजस्थानी भाषा
2 पश्चिमी राजस्थानी भाषा ।
पूर्वी राजस्थानी भाषा की प्रतिनिधि चार बोलियाँ है – ढूंढाड़ी ( जयपुरी ) , हाड़ौती . मेवाती व अहीरवाटी । पश्चिमी राजस्थानी भाषा की प्रतिनिधि चार बोलियाँ हैं- मारवाड़ी , मेवाडी , वागड़ी , शेखावटी।
हमारा राजस्थान साँस्कृतिक दृष्टि से विविधतापूर्ण है। यहाँ भाषा , वेशभूषा , खानपान , रीति – रिवाज आदि में भी अन्तर देखने को मिलता है , इसीलिए कहीं दाल – ढोकला खाते हैं , तो कहीं दाल – बाटी , कहीं बाजरे का खीच , कहीं मक्का की रोटी तो कहीं कैर – साँगरी ।
विषय-सूची
👳 वेशभूषा
राजस्थानी वेशभूषा अपने चटक रंगों के लिए जानी जाती है । पारंपरिक राजस्थानी परिधान काफी सुन्दर और आरामदायक होते हैं । महिलाएँ घाघरा , चोली और रंग – बिरंगी गोटा लगी औडनी पहनती हैं। पुरुषों का पारंपरिक परिधान धोती – कुर्ता और कुर्ता – पायजामा है ।
स्वाभिमान व सम्मान का प्रतीक मानी जाने वाली राजस्थानी पगड़ी बहुत आकर्षक होती है । वर्तमान में पश्चिमी वेशभूषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है , फिर भी राजस्थान की बहुरंगी वेशभूषा प्रभावित करती है ।
📺 मनोरंजन के पारंपरिक साधन
मनोरंजन जीवन का अनिवार्य अंग है । राजस्थान संस्कृति के विभिन्न अंचलों में स्थानीय एवं सहजता से उपलब्ध पारंपरिक साधनों द्वारा मनोरंजन किया जाता है । राजस्थान के ग्रामीण निवासी स्थानीय एवं सहजता से उपलब्ध साधनों द्वारा मनोरंजन करते हैं ।
ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे गिल्ली डंडा , सितोलिया , लुका – छिपी ( आँख – मिचौनी ), घोड़ा – दड़ी , मारदडी , लटू – चक्कर , कचे का खेल आदि खेलते हैं । चौपड – चौसर कपड़े पर बनी बिसात पर खेले जाते हैं । चर – भर , नर – छारी आदि जमीन पर बनाकर खेलते हैं । अन्य जन समुदाय के मनोरंजन के लिए सपेरे , कालबेलिये , मदारी , जादूगर , पतंगबाजी और कठपुतली आदि के खेल थे ।
लोक नाट्य शैली में ख्याल , हेला , गवरी , तमाशा , तुर्रा कलंगी , रासधारी , रामलीला , दगल , स्वांग , नौटंकी भवई आदि हैं । इन पारंपरिक खेलों के साथ – साथ आधुनिक खेल एवं मनोरंजन के साधन भी यहाँ की जीवनशैली में देखने को मिलते हैं ।
साँस्कृतिक विविधता
राजस्थान में सभी पर्व व त्यौहार, हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाये जाते हैं । जैसे होली , दीपावली , रक्षाबंधन , ईद , महावीर जयंती , गुरु नानक जयंती , क्रिसमस आदि । साथ ही यहाँ गणगौर , तीज , अष्टमी , अक्षय तृतीया आदि पर्व एवं मेले और गवरी , गैर , रम्मत नृत्य एवं लोक गीत हमारी परंपराओं और संस्कृति को दर्शाते हैं ।
👰 गणगौर
रंगीले राजस्थान का रंग – बिरंगा त्यौहार गणगौर है । गणगौर चैत्र शुक्ल तृतीया से आरम्भ होता है । गण और गौर शब्द शिव व पार्वती के सूचक है। गणगौर पर मुख्य रूप से शिव व पार्वती की पूजा की जाती है । गणगौर के अवसर पर राजस्थान में कहीं तीन दिन तो, कहीं चार दिन का उत्सव होता है । राजस्थान के समस्त जिलों में यह त्यौहार अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है ।
👭 तीज
श्रावण के महीने में मनाया जाने वाला तीज का त्यौहार राजस्थान संस्कृति में एक अलग ही महत्त्व रखता है । शुष्क राजस्थान में जब काली घटाएँ छा जाती हैं, तो यह किसी उत्सव से कम नहीं होता है । श्रावण के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को नवविवाहिताएँ पेड़ों पर झूले डालकर झूलती हैं ।
भादो की कृष्ण पक्ष की तीज को ‘कजली तीज‘ और ‘सातूड़ी तीज‘ के नाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा मेंहदी लगाई जाती है । पार्वती की पूजा की जाती है और उनसे महिलाएँ अपने सुहाग के दीर्घायु होने की कामना करती हैं । यह त्यौहार प्रकृति और मनुष्य की निकटता का अनुपम उदाहरण है ।
🍚 शीतलाष्टमी
होली के आठवें दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला देवी के पूजन के लिए शीतलाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है । इस दिन बासोड़ा भोजन ( एक दिन पहले बनाया गया ) किया जाता है । जयपुर के पास चाकसू की शील की डूंगरी और उदयपुर के वल्लभनगर कस्बे में स्थित शीतला माता के मंदिर में मेले आयोजित होते हैं । लगभग हर शीतलाष्टमी को शहर, गाँव, कस्बे में शीतला माता की पूजा – अर्चना की जाती है।
👫 अक्षय तृतीया
इस दिन को आखा तीज भी कहा जाता है । इस दिन बिना मुहूर्त निकलवाए सभी मांगलिक कार्य किए जाते हैं । इस दिन गेहूँ , बाजरा , तिल , जौ आदि की पूजा की जाती है । इस दिन गेहूँ व बाजरे का खीच भी बनाया जाता है ।
राजस्थान के प्रमुख मेले
☃️ पुष्कर मेला
अजमेर जिले के पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा पर भव्य मेला आयोजित होता है । इस अवसर पर विशाल बाजार लगता है और देश – विदेश से पर्यटक आते हैं । यहाँ अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है, जिसमें मेलार्थी उत्साह से भाग लेते हैं ।
पुष्कर में सुप्रसिद्ध ब्रह्माजी का मंदिर और झील आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है । सांयकाल यहाँ दीपदान होता है ।
🐒 कैलादेवी का मेला
सवाईमाधोपुर में कैलामाता के मंदिर में चैत्र शुक्ला अष्टमी को विशाल मेला लगता है । जिसे लक्खी मेला भी कहते हैं । चैत्र कृष्ण द्वादशी से चैत्र शुक्ल द्वादशी तक चलने वाले इस मेले में दूर – दूर से भक्त आते है ।
😇 महावीर जी का मेला
सवाई माधोपुर जिले में श्री महावीरजी का मंदिर स्थित है , जहाँ चैत्र शुक्ला एकादशी से बैसाख कृष्णा द्वितीया तक मेला लगता है । यहाँ चौबीसवें जैन तीर्थकर महावीर स्वामी की लाल रंग की भव्य प्रतिमा है ।
🔥 कोटा दशहरा मेला
कोटा के महाराव दुर्जनशाल सिंह के शासनकाल 1729-1756 ई. में दशहरा पर्व पर विभिन्न राजसी सवारियों , दरीखाना और पूजा – अर्चना के प्रमाण मिलते हैं । महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय के शासन काल 1889 ई. से 1940 ई. में दशहरा पर्व को अत्यधिक आकर्षक बनाने का सिलसिला शुरू हुआ । वर्तमान में यह मेला अपने वैभव संस्कृति एवं विशालता को लेकर प्रसिद्ध है ।
🌴 हरियाली अमावस्या मेला
उदयपुर में लगने वाले इस मेले की शुरूआत महाराणा फतेहसिंह ने 1899 ई. में की थी । यहाँ प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या को भव्य मेला आयोजित किया जाता है । हिन्दू सभ्यता में लोग इसे ‘ सावन ‘ की शुरूआत के तौर पर मनाते हैं । श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में लगने वाला यह मेला सावन और उससे मिलने वाली खुशी का संचार करता है ।
💂 ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती का उर्स
ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती ईरान से भारत आए । इनको गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है । अजमेर में उनकी दरगाह पूरे देश के लोगों की आस्था का केन्द्र है । इस्लामिक कैलेण्डर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक अजमेर में ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है । यह मेला सर्वधर्म समभाव की अनूठी मिसाल माना जाता है ।
🏹 बेणेश्वर मेला
यह राजस्थान संस्कृति के आदिवासी समाज का सबसे बडा मेला है । माघ पूर्णिमा के अवसर पर डूंगरपुर जिले में माही , जाखम और सोम नदियों के संगम स्थल पर यह मेला लगता है । इसमें लोग अपने दिवंगतो की अस्थियाँ भी प्रवाहित करते हैं ।
🐁 करणीमाता का मेला
बीकानेर जिले में देशनोक के करणीमाता मंदिर में यह मेला आयोजित होता है । करणी माता बीकानेर शासकों की अधिष्ठात्री देवी है । इस मन्दिर की विशेषता यह है कि यहाँ काले और सफेद चूहे अत्यधिक संख्या में विचरण करते हैं ।
🏹 खाटू श्यामजी का मेला
सीकर जिले का खाटू श्यामजी का मन्दिर एक प्रसिद्ध स्थल है । यहाँ फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की दशमी से द्वादशी तक मेला आयोजित होता है ।
🦄 बाबा रामदेव का मेला
जैसलमेर जिले में पोकरण कस्बे के पास रुणीचा नामक स्थान पर भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की , द्वितीया से एकादशी तक यह मेला आयोजित होता है । बाबा रामदेव राजस्थान के जाने – माने लोकदेवता है , जिनमें सभी वर्गों व धर्मों के लोगों की आस्था है ।
🕌 गलियाकोट का उर्स
डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा तहसील के गलियाकोट कस्बे में फखरूद्दीन मौला की मजार है । जिसे मजार – ए – फखरी के नाम से जाना जाता है । यह दाउदी बोहरा समाज की आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र है। यहाँ के उर्स में सभी वर्गों के लोग बड़ी संख्या में उत्साह से भाग लेते हैं ।
🎭 अन्य मेले
इन सभी मेलों के अतिरिक्त राजस्थान में अनेक मेले लगते हैं । जिसमें मुख्य रूप से सीकर जिले का जीणमाता मेला , अलवर का भर्तृहरि मेला , जयपुर का डिग्गी कल्याण जी का मेला , परबतसर में तेजाजी का मेला, बाड़मेर का गोगाजी का मेला प्रसिद्ध है । राजस्थान में प्रत्येक नगर , कस्बे , गाँवों में स्थानीय स्तर पर भी मेलों का आयोजन होता है ।
प्रमुख लोक देवता एवं संत
समाज सुधार कार्य , मानव सेवा , वन संरक्षक . पशु धन की रक्षा , गुरुभवित , वचन पालन जैसे मूल्यों के लिये , जीवन देने वाले अनेक महापुरुष राजस्थान में लोक देवता य संत के रूप में पूजनीय है । सामाजिक एवं धार्मिक कारणों से राजस्थान में लोकदेवताओं का उदय हुआ । ये लोकदेवता साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रणेता थे ।
🎠 गोगाजी
गोगाजी राजस्थान के पाँच पीरों – रामदेवजी , पाबूजी , मेहाजी , हडबूजी और गोगाजी में प्रमुख है। गोगाजी चौहान शासक और गोरखनाथ से प्रभावित थे । भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगानवमी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन गोगाजी की पूजा – अर्चना की जाती है । गोगामेढी ( हनुमानगढ़ ) में महीने भर तक चलने वाला मेला लगता है ।
🎠 तेजाजी
तेजाजी ने गौधन की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी । भाद्रपद शुक्ल दशमी को परबतसर में तेजाजी की स्मृति में विशाल पशु मेला आयोजित होता है । तेजाजी की गाथा और गीत बहुत प्रसिद्ध हैं ।
🐫 पाबूजी
पाबूजी राठौड़ को ऊँटों के देवता के रूप में पूजा जाता है । पावू मंड उनका मुख्य स्थान है । फड़ चित्रण में पाबूजी का जीवन चरित्र दिखाया जाता है ।
🦄 रामदेवजी
रामदेवजी लोक देवताओं में सबसे प्रमुख एवं अवतारी पुरुष थे । वे साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रेरक थे । मुस्लिम समाज भी उनको ‘ राम – सा ‘ पीर के रूप में मानते हैं । रामदेवरा में भाद्रपद माह में विशाल मेला आयोजित होता है ।
इन सबके अतिरिक्त मल्ली नाथ , देवनारायण , हरभूजी आदि भी राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता माने जाते हैं ।
🙏मीरा बाई
मीराँ बाई का जन्म मेड़तिया राठौड़ वंश में कुड़की ग्राम ( पाली ) में हुआ। भक्तिमति मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया वंश के कुंवर भोजराज के साथ हुआ । बचपन से ही कृष्ण भक्ति में मीरा का मन रम गया था । मीरा बाई के विवाह के कुछ समय पश्चात् उन्हें वैधव्य का दुख झेलना पड़ा । वह संसार से विरक्त हो गई और अपना पूरा ध्यान कृष्ण भक्ति पर केंद्रीत कर लिया । सरल व सहज भक्ति मीरा की विशेषता रही है , जो उनके पदों में भी झलकती है ।
👏 दादू दयाल
दादू दयाल के जन्म स्थान को लेकर निशाना में एक राय नहीं है । 1586 ई. में फतेहपुर सीकरी में इन्होंने अकबर से भेंट की और फिर राजस्थान में आकर भक्ति का प्रसार करते रहे । 1603 ई . में नरायणा गाँव में इन्होंने देह त्याग दी ।
🏝️ जाम्भोजी
जाम्भोजी महाराज विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्तक थे । इनका जन्म नि.स 1508 की भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को पीपासर ( नागौर ) नामक गाँव में हुआ । जाम्भोजी के उपदेशों पर चलते हुए विश्नोई समाज निरन्तर पर्यावरण की रक्षा य जीव हत्या के विरोध में प्रयासरत है, जो अनुकरणीय है ।
🎠 जसनाथजी
संत जसनाथजी का जन्म कतरियासर ( बीकानेर ) में हुआ । इन्होंने गोरखनाथ से प्रभावित होकर तपस्या की व चमत्कारी योगी हो गए ।
🙏 श्रद्धानाथजी
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में संत श्रद्धानाथजी ने स्वयं शिक्षित न होते हुए भी जन – जन में शिक्षा की अलख जगाई । इन्होंने अपरिग्रह , समता व चरित्र निर्माण की शिक्षा प्रदान की । सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ में त्याग व तपस्या के प्रतीक एक आश्रम का निर्माण करवाया , जो सभी वर्गों के लिए पवित्र स्थल है । इनकी मान्यता थी कि स्वच्छता में ही ईश्वर का निवास होता है , अत : यह आश्रम का आदर्श वाक्य बन गया ।
हस्तकला
📦 काष्ठकला
काष्ठकला राजस्थान की एक प्रसिद्ध हस्तकला है । इस कला में लकड़ी से विविध प्रकार की कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती है । इस कला का प्रधान केन्द्र बस्सी ( चित्तौड़गढ़ ) है । लकड़ी के येवाण , कावड तथा रंगाई – छपाई के तप्पे यहाँ तैयार किये जाते हैं । लकड़ी से निर्मित खिलौनों एवं कठपुतली निर्माण के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है । जेठाना ( डूंगरपुर ) लकड़ी की मूर्तियों के लिए शेखावाटी व बीकानेर फर्नीचर के लिए जाना जाता है ।
🦄 मूर्तिकला
राजस्थान अपने संगमरमर के लिए प्रसिद्ध रहा है । विभिन्न स्थानों पर अलग – अलग प्रकार के पत्थर पाए जाते हैं । इसी कारण यहीं पर मूर्तियाँ एवं पत्थरों पर बारीक नक्काशी का काम किया जाता है ।टेराकोटा मिट्टी से मूर्तियों तथा विभिन्न सजावटी व उपयोगी वस्तुएं तैयार कर पकाना , टेराकोटा के नाम से जाना जाता है । नाथद्वारा के समीप मोलेला इस काम हेतु प्रसिद्ध है । अलवर व बाड़मेर में भी टेराकोटा की वस्तुएँ निर्मित की जाती है ।
🍲 ब्लूपॉटरी
चीनी मिट्टी के सफेद बर्तनों पर किए गए नीले रंग के अंकन को ब्लूपॉटरी के नाम से जाना जाता है । इसके अतिरिक्त ब्लेकपॉटरी , सुनहरी पॉटरी आदि भी प्रसिद्ध है । इसके द्वारा डिजाइनर कप – प्लेट अन्य बर्तन और खिलौने व सजावटी सामान जैसे फूलदान आदि बनाए जाते है ।
💍 लाख का काम
लाख के काम में चपड़ी को पिघलाकर उसमें चाक , मिट्टी बिरोजा आदि मिलाकर गूंथ लिया जाता है। उसी से विभिन्न चीजें तैयार की जाती है । सजावट के लिए काँच एवं मोती लगाए जाते हैं । राजस्थान संस्कृति में जयपुर, जोधपुर इनके आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है ।
💎 आभूषण
राजस्थान संस्कृति के जडाऊ गहनों के लिए जयपुर , जोधपुर , बीकानेर एवं उदयपुर विख्यात हैं । मूल्यवान पत्थरों को तराशने का काम जयपुर में होता है । काँच पर बारीक सोने की नक्काशी का काम थेवा कला कहलाती है जिसके लिए प्रतापगढ़ प्रसिद्ध है । प्रतापगढ़ की जनजातियों में पीतल और चाँदी के आभूषण के लिए विख्यात है ।
👗 कपड़े पर छपाई
राजस्थान संस्कृति में किस्म – किस्म की छपाई का काम होता है । बगरू , सांगानेर , आकोला , बाड़मेर , कालाडेरा , पाली और बस्सी इन कामों के लिए विशेष प्रसिद्ध है । गोबर , तिल्ली का तेल , बकरी की मेगनी और सोडे के मिश्रण से एक घोल बनाया जाता है । इसमें कपड़े को पूरी रात भिगोने के बाद सुखाया जाता है । सूखने के बाद उसे फिर से हरड़ के घोल में डूबाया जाता है । फिर लकड़ी के छापों ( ब्लॉक्स ) से उन पर छपाई की जाती है । छपाई के लिए पहले सीमित और प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता था । अब सिन्थेटिक ( अप्राकृतिक ) रंग का भी उपयोग होता है ।
👒 कशीदाकारी एवं गोटाकारी
राजस्थान संस्कृति के अनेक स्थानों पर कपड़ों पर कशीदाकारी भी की जाती है । कशीदों में मुख्यतः पशुओं के चित्र उकेरे जाते हैं । कई जगहों पर कपड़ों को तरह – तरह से काटकर , कपड़ों पर सिल दिया जाता है , जिसे पेचवर्क कहा जाता है । गोटे , किनारी और आरी – तारी का काम भी राजस्थान की विशेषता है ।
इस प्रकार हमने जाना कि देश की राष्ट्रीय संस्कृति का अंग होते हुए भी राजस्थान की संस्कृति की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं । यहाँ के पारंपरिक पर्व – त्यौहार , मेले , रीति – रिवाज आदि आकर्षक एवं मनमोहक हैं। इसीलिए राजस्थान ‘ को ‘ रंगीला राजस्थान ‘ कहा जाता है ।
शब्दावली
- क्षेत्र :- अंचल
- लोक देवता :- क्षेत्र – विशेष में पूजे जाने वाले देवता
- नक्काशी :- पत्थर , धातु , लकड़ी आदि पर खोदकर किया जाने वाला कलात्मक कार्य
अभ्यास प्रश्न
1. चूहों के कारण किस मंदिर को जाना जाता है?
( अ ) ब्रह्मा का मंदिर ( ब ) करणी माता का मंदिर ( स ) श्री महावीर जी का मंदिर ( द ) शिवजी का मंदिर
2. ऊँटों के देवता के रूप में किसे पूजा जाता है?
( अ ) रामदेव जी ( ब ) तेजाजी ( स ) पाबूजी ( द ) जसनाथ जी
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(१) चीनी मिट्टी के सफेद बर्तनों पर ……… रंग के अंकन से ब्लूपाटरी का निर्माण होता है ।
(२) तेजाजी ने …………….के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी ।
4. गणगौर के अवसर पर किसकी पूजा की जाती है ?
5. पश्चिमी राजस्थान की कितनी बोलियाँ हैं ?
6. रामदेवजी को साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रेरक के रूप में क्यों जाना जाता है ?
7. राजस्थान संस्कृति में मनाए जाने वाले विशिष्ट त्यौहारों की जानकारी दीजिए ।
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