राजस्थान में प्राचीन सभ्यता स्थल | Ancient Civilization Sites
मानव जब स्वयं के बारे में सोचना छोड़कर दूसरों के बारे में सोचना शुरू करता है, तब वह समूह में रहकर कार्य प्रारम्भ करता हैं। इसी से सभ्यता की शुरुआत होती है। समय के साथ सभ्यताएँ विकसित होती हैं, किन्तु समय परिवर्तन के साथ कुछ सभ्यताएँ नष्ट भी हो जाती हैं। कुछ नया आकार बना लेती हैं। राजस्थान में भी ऐसी कई सभ्यता और संस्कृतियों के स्थल, मरुस्थल और अरावली में नदियों के किनारे मिट्टी में दबे पड़े हैं।
राजस्थान में मानव के प्रारम्भिक क्रियाकलाप क्या थे? वे कब से प्रारम्भ हुए? इसके लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। जिस काल का लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं होता है, उसके बारे में उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर ही जाना जा सकता है। उत्खनन से प्राप्त हुए प्राचीनतम साक्ष्यों में आवास स्थल, लकड़ी, अनाज, हड्डी और पत्थरों के अस्त्र – शस्त्र और उपकरण प्रमुख हैं। चूँकि प्राप्त उपकरणों में पत्थर के उपकरणों की संख्या अत्यधिक हैं, अतः प्रारम्भिक युग को ‘प्रस्तर युग’ कहा गया है।
प्राचीन सभ्यता स्थल के प्रस्तर युग में मानव अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए जानवरों का शिकार करता था अथवा जंगलों से कंदमूल एकत्र कर अपना पेट भरता था। अतः उसने कुल्हाड़ी , गंडासा , छुरा जैसे उपकरण बनाये। राजस्थान में प्रस्तर युग के ये उपकरण मुख्यतः बनास , गम्भीरी , बेडच और चम्बल नदियों की घाटियों और शैलाश्रयों में बहुतायत में मिले हैं।
प्रस्तर युग के बाद ताम्र – काँस्य काल तथा उसके पश्चात लौह युग के अवशेष प्राप्त होते हैं। हम भिज्ञ हैं कि मानव शिकार से पशुपालन और कृषि कार्य की ओर अग्रसर हुआ। पत्थर के स्थान पर उसने धातु के उपकरण बनाने प्रारम्भ किये। धातुओं में भी सर्वप्रथम ताँबे का उपयोग प्रारम्भ किया। राजस्थान में ताम्र – सभ्यता के अवशेष कालीबंगा, गणेश्वर और आहड़ आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए ।
विषय-सूची
राजस्थान में प्रमुख प्राचीन सभ्यता स्थल
कालीबंगा
राजस्थान में दृषद्वती और सरस्वती नदी की घाटी में पुराविद अमलानंद घोष ने करीब दो दर्जन पुरास्थलों / प्राचीन सभ्यता स्थल की खोज की। इनमें हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्थित कालीबंगा प्रमुख है। बाद में डॉ . बी.बी. लाल और बी.के. थापर के निर्देशन में यहाँ खुदाई हुई। खुदाई में यहाँ सिंधु – सरस्वती सभ्यता काल का एक नगर मिला है, जिसके मकानों में ईंटों का प्रयोग किया गया था। मकानों में चार – पाँच बड़े तथा कुछ छोटे कमरे होते थे। बस्ती के गंदे पानी के निकास के लिए यहाँ लकड़ी व ईटों की नालियाँ बनी हुई थीं। यहाँ चबूतरे भी मिले हैं, जिन पर अग्निकुण्ड ( वेदिकाएँ ) बने हुए हैं। सम्भवतया यह धार्मिक कार्यों हेतु प्रयुक्त होते थे।
दूसरे टीले के उत्खनन में एक दुर्ग के अवशेष मिले हैं। कालीबंगा की नगर योजना सिंधु सरस्वती सभ्यता की नगर योजना के समरूप दिखाई देती है। इस क्षेत्र में नगर की प्राचीर के बाहर जोती हुई कृषि भूमि के साक्ष्य भी मिले हैं। खुदाई में गाय के मुख वाले प्याले, ताँबे के बैल, काँस्य के दर्पण, हाथी दाँत का कंघा, मिट्टी के बर्तन, काँच की मणियाँ, खिलौने आदि प्राप्त हुए हैं। कालान्तर में नदियों का पानी सूखने और मरुस्थल के बढ़ने से यह समृद्ध बस्ती उजड़ गई।
आघाटपुर या आहड़
उदयपुर के पूर्व में आहड़ ( बैडच ) नदी के किनारे दो टीले दिखाई देते हैं, जिसको स्थानीय लोग धूलकोट कहते हैं। यह बस्ती पहले ताम्रवती ( ताँबावती ) के नाम से जानी जाती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्राचीन सभ्यता स्थल में ताँबे के औजारों के निर्माण का केन्द्र होने से यह नाम पड़ा। 10 वीं या 11 वीं शताब्दी में इसे आघाटपुर के नाम से जाना जाने लगा।
यहाँ से प्राप्त मकानों की दीवारें, पत्थरों एवं मिट्टी से बनी हुई हैं, जिनकी छत बाँस और केलू से बनी होती थी । बड़े कमरों के बीच में बाँस की परदी पर मिट्टी चढ़ाकर उसे छोटे – छोटे कमरों ( ओवरों ) में विभाजित किया जाता था। मकानों में चार से छ : चूल्हे मिले हैं जो संयुक्त परिवार या सामूहिक भोजन विधि के साक्ष्य हैं। यहाँ उच्च कोटि के चावल उत्पादित होते थे। आहड़ में भट्टीनुमा चूल्हा मिला है। इससे यह माना जाता है कि यहाँ ताँबा पिघलाया जाता था। आहड़वासी बर्तन बनाने की कला में दक्ष थे। यहाँ मिले लाल – भूरे मृद्भाण्ड हाथ की सफाई तथा अलंकरण की दृष्टि से उत्कृष्ट थे।
धूलकोट के 1951-52 ई . में हुए उत्खनन में तश्तरियाँ, दीपक, धूपदानियाँ, कटोरियाँ, मटके, कलश, चूड़ियाँ, खिलौने, 26 किस्म के मणिये, 6 ताँबे की मुद्राएँ और तीन मुहरें प्राप्त हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृतिक प्रकोप से विध्वंस हुई इस प्राचीन सभ्यता स्थल के लोग उत्तर – पूर्व और दक्षिण – पूर्व की ओर बढ़े तथा गिलुण्ड व भगवानपुरा जैसे स्थान बसाए।
बालाथल
उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील के बालाथल में मिली सभ्यता, ताम्रपाषाण कालीन आहड संस्कृति से सम्बन्धित है। यहाँ 11 कमरों के एक बड़े भवन एवं दुर्ग जैसे चिह्न भी प्राप्त हुए हैं। बालाथल में ताँबे के चाकू, कुल्हाड़ी, छैनी, बाण जैसे उपकरण तथा कर्णफूल, गले के हार की लटकन आदि आभूषण मिले हैं। यहाँ के निवासियों में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रचलित थी। कृषि , पशुपालन तथा शिकार तीनों जीविका के साधन थे।
बालाथल में लौहकाल के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ लोहा गलाने की भट्टियों के चिह्न मिले हैं। बैराठ के अतिरिक्त बालाथल ही ऐसा स्थान है, जहाँ बुना हुआ वस्त्र प्राप्त हुआ है।
गणेश्वर
सीकर जिले के नीम का थाना तहसील में गणेश्वर से एक विशिष्ट संस्कृति के अवशेष मिले हैं। इसे ताम्र संचयी संस्कृति कहा जाता है। यह संस्कृति पूर्वी राजस्थान एवं गंगाघाटी के क्षेत्र में पल्लवित हुई। गणेश्वर में ताम्र उपकरण बहुतायत में मिलते हैं। इसका कारण खेतड़ी ताम्र भण्डार की निकटता रही होगी। ताम्र उपकरणों में बाण, छैनियाँ, मछली पकड़ने के काँटे, उस्तरे के फलक, अंगुठियाँ आदि प्रमुख हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ से दोहरी पेचदार शिरावाली ताम्र पिनों को पश्चिमी तथा मध्य एशिया में निर्यात किया जाता था। गणेश्वर में मिट्टी के दो प्रकार के बर्तन मिले हैं।
- हड़प्पा पूर्व संस्कृति के हल्के लाल रंग के पतले बर्तन।
- लाल चिकनी मिट्टी विशिष्ट चित्रकारी वाले मजबूत बर्तन। इन बर्तनों में मर्तबान कलश प्याले, तसले, ढक्कन – हाण्डी प्रमुख हैं।
आहड़ एवं गणेश्वर सभ्यताएँ ताम्र पाषाण काल की प्राचीन सभ्यता स्थल थीं, किन्तु इनके ऊपरी स्तर पर लौह युग के अवशेष भी प्राप्त होते हैं। लौहकालीन इतिहास को जानने के लिए बैराठ, सांभर, बागौर, रेढ़ आदि सभ्यता स्थलों के विवरण उल्लेखनीय हैं।
बैराठ
जयपुर जिले में स्थित बैराठ कस्बा हर युग में सभ्यता संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है। इसकी बीजक की पहाड़ी और भीम डूंगरी पुरातत्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। महाभारत में इसका उल्लेख मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर के रूप में हुआ है, जहाँ पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के अन्तिम दिन व्यतीत किये थे।
मौर्य – काल में भी यह एक प्रमुख केन्द्र था। यहाँ अशोक के दो स्तम्भ लेख ( भाबू या बैराठ शिलालेख ) एवं बौद्धमठ के अवशेष प्राप्त होते हैं। यहाँ एक कमरे में 36 चाँदी की मुद्राएँ मिली हैं , जिनमें 8 पंचमार्क एवं 28 भारतीय यूनानी शासकों की है। खुदाई में स्वास्तिक तथा त्रिरत्न चक्र के चिह्न युक्त अलंकृत घड़े, दीपक, नाचता हुआ पक्षी, पत्थर की संदूकें, लोहे की कीलें एवं हाथ से बना हुआ वस्त्र भी मिला है।
अन्य प्राचीन सभ्यता स्थल
उपर्युक्त प्राचीन सभ्यता स्थल / स्थलों के अतिरिक्त राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बागोर , ओझियाणा , जयपुर जिले में स्थित सांभर , जोधपुरा , टोंक जिले में स्थित नगर , रेढ़ , चित्तौड़ में नगरी , भरतपुर में नोह , जालोर में भीनमाल , राजसमन्द में पछमता , गिलुण्ड आदि स्थल पाषाण, ताम्र पाषाण तथा ताम्र – लौहकाल की संस्कृति को प्रकट करते हैं।
शब्दावली
- उत्खनन :- खुदाई
- मृदभाण्ड :- मिट्टी के बर्तन
- पाषाण :- पत्थर
- ताम्र :- ताँबा
अभ्यास प्रश्न ~ प्राचीन सभ्यता स्थल
1. निम्न में से किस जिले में कालीबंगा स्थित है ?
( अ ) जालोर ( ब ) हनुमानगढ़ ( स ) सीकर ( द ) उदयपुर
2. अशोक का भाव शिलालेख निम्न में से कहाँ प्राप्त हुआ ?
( अ ) बैराठ ( ब ) गणेश्वर ( स ) आहड़ ( द ) बालाथल
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-
(१) सीकर जिले में नीम का थाना तहसील में ………… से एक विशिष्ट संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
(२) आहड़ बस्ती प्राचीनकाल में नगरी के नाम से जानी जाती थी।
4. राजस्थान में किन्हीं दो ताम्र पाषाणकालीन स्थलों के नाम लिखिये ?
5. बालाथल सभ्यता के अवशेष किस जिले से प्राप्त हुए हैं ?
6. आहड़ सभ्यता किस नदी के किनारे विकसित हुई ?
7. राजस्थान में सभ्यता के प्राचीन स्थल कौन – कौन से हैं ?
8. कालीबंगा पुरास्थल की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
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