हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) ~ आजादी से पूर्व सरकार का स्वरूप

Our Rajasthan ~ Form of government before independence

           हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) में रविवार का दिन था। सुमन अपनी माँ के साथ गाँव के पनघट पर पानी भरने गई थीं। पानी ले कर आते समय उसने पनघट के पास बने हुए पुराने किले पर कुछ लोगों को घूमते हुए और फोटो खींचते हुए देखा। यह देख कर उसने माँ से प्रश्न किया, ‘ ये लोग कौन हैं ? और यहाँ क्या कर रहे हैं ? ‘ मां ने बताया ‘ ये पर्यटक हैं, और इस पुराने किले को देखने आए हैं। सुमन ने वापस प्रश्न किया , “इस किले में ऐसा क्या है जो ये देखने आए हैं ?”

            माँ ने बताया ‘ ये किला बहुत पहले इस गाँव के जागीरदार ने बनवाया था। वे इसमें रहते थे और इसकी प्राचीनता के कारण पर्यटक इसे देखने आते हैं। अब सुमन ने एक और प्रश्न कर लिया , “ये जागीरदार कौन थे ? और अब वे कहाँ रहते हैं? “

           माँ ने मुस्कराते हुए कहा , ‘पहले जागीरदार ही गाँव के प्रशासक होते थे और इनके पास ही गाँव की देख – रेख की जिम्मेदारी होती थी। सुमन माँ से कुछ और प्रश्न पूछती, उससे पहले ही घर आ गया व उसके प्रश्नों का सिलसिला टूट गया।

           सुमन के मन में जागीरदार को लेकर कई प्रश्न घूम रहे थे। दूसरे दिन सुमन ने स्कूल में अपने अध्यापक से कक्षा में आते ही प्रश्न पूछ लिया, जागीरदार कौन होते थे? ये अब कहाँ गए ? ‘

           अध्यापक जी ने कहा- चलो आज आपको जागीरदार और जागीरदारी व्यवस्था के बारे में जानकारी देता हूँ। आजादी से पहले हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) वर्तमान स्वरूप में नहीं था, यह मुख्यतः विभिन्न रियासतों में विभाजित था। ये रियासतें स्वतंत्र राज्य की तरह शासन संचालन करती थी। रियासतों के शासक अपने मंत्रियों एवं जागीरदारों की सहायता से शासन का संचालन करते थे। शासक , शक्ति का सर्वोच्च केंद्र राजा होता था। शासन का यह प्रकार राजशाही शासन कहलाता था।

हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) के राजशाही शासन का स्वरूप

           राजस्थान की विभिन्न रियासतों ( राज्यों ) में सिसोदिया , राठौर , कछवाह और चौहान आदि वंश शासक राज्य करते थे। ये अलग – अलग राज्य थे, किन्तु शासन व्यवस्था लगभग समान थी। विभिन्न रियासतों में शासन संचालन के लिए केंद्रीय व्यवस्था के पदाधिकारी राजा , मंत्री , बख्शी , खजांची , परगना अधिकारी थे।

राजा

           राजा , राज्य की संपूर्ण शक्ति का सर्वोच्च केंद्र होता था। सामान्यतः राजा अपने सलाहकारों एवं मंत्री परिषद् के सदस्यों के सहयोग से शासन संचालन करते थे।

 मंत्री

           राजा अपने शासन कार्य में सहायता हेतु मंत्रियों की नियुक्ति करते थे। प्रमुख मंत्री को दीवान कहते थे। राजा समय – समय इनसे मंत्रणा करके राजकार्य की जटिल समस्याओं को सुलझाते थे।

बख्शी

सेना को वेतन देने तथा सेना सम्बन्धी अन्य कार्यों की जिम्मेदारी बख्शी की होती थी।

खजांची

           आमदनी और खर्च के हिसाब को संतुलित रखना और बचत को सुरक्षित कर राजकोष में वृद्धि करना खजांची का कार्य था।

परगना अधिकारी 

           राज्य परगनों में विभाजित था तथा परगने में शांति व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी परगना अधिकारी की होती थी।

           ग्राम राज्य की सबसे छोटी इकाई थी । ग्राम का प्रशासन ग्राम पंचायतें करती थीं ।

जागीरदारी व्यवस्था

           एक व्यवस्थित राज्य के लिए प्रशासनिक व्यवस्था अनिवार्य तत्व है। राजस्थान के मध्यकाल का सपूर्ण शासन तंत्र राजा और जागीरदारी व्यवस्था पर आधारित था। हमारा राजस्थान की जागीरदारी व्यवस्था रक्त सम्बन्ध एवं कुलीय भावना पर आधारित , प्रशासनिक और सैनिक व्यवस्था थी।

           राजस्थान में जागीरदारी व्यवस्था का मूल तत्व था कि राजा की मृत्यु के बाद बड़ा पुत्र राजा बनता था। राजा अपने छोटे भाइयों को जीवन यापन के लिए भूमि आवंटित करता, भाई बंधु को दी गई इस भूमि का स्वामी जागीरदार कहलाता था। जागीरदार का कार्य उस जागीर की सुरक्षा एवं उसका शासन संचालन था। बाद के समय में योग्यता के आधार पर भी जागीरें प्रदान की जाने लगीं।

           कक्षा में बच्चे रुचि से सुन रहे थे, तभी सुनील ने शिक्षक से पूछा कि यह व्यवस्था कब से प्रारंभ हुई ? इसके बारे में भी बताइये। अध्यापक जी ने कहा, ‘मैं आपको इसके प्रारंभ और इसके स्वरूप के बारे में बताता हूँ।

जागीरदारी व्यवस्था का प्रारंभ

           जागीरदारी व्यवस्था का प्रारंभ कब हुआ, इस संबंध में अब तक कोई निश्चित मत नहीं बन पाया है। लेकिन राजस्थान में इसका विकसित और स्पष्ट स्वरूप राजपूतों के शासन काल से प्रारंभ हो गया था। राजस्थान भू – भाग पर राजपूतों की विभिन्न शाखाओं ने अपने राज्य स्थापित किये, जो उनकी रियासतें कहलाई। रियासतों की सुरक्षा एवं शासन व्यवस्था के संचालन हेतु शासकों ने जागीर व्यवस्था प्रारंभ की।

जागीरदारी व्यवस्था का स्वरूप

  • राजस्थान में यह रक्त सम्बन्ध पर आधारित सगोत्रीय कुलीय व्यवस्था थी।
  • राजा महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर जागीरदारों को नियुक्त करता था।
  • राजा और जागीरदार के सम्बन्ध स्वामी और सेवक के नहीं होते थे, बल्कि भाईचारे एवं सौहार्द्र पर आधारित होते थे।

मध्यकालीन जागीरदारी व्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन

           मुगल काल में मुगलों से संधि के कारण शासको की जागीरदारों पर निर्भरता कम हो गयी। शासक , मुगल मनसबदार बन गए और उन्हें मुगलों का संरक्षण प्राप्त हो गया। इससे शासक , जागीरदारों के साथ स्वामी जैसा व्यवहार करने लगे। प्रारम में जागीरदार युद्ध एवं शांति के समय राजा को अपनी सेवाएँ देते थे, लेकिन मध्यकाल में सेवाओं के साथ कर व्यवस्था निर्धारित कर दी गयी। जिसका उल्लेख जागीर पट्टे में किया जाता था। मुगल शासन प्रणाली की कुछ व्यवस्थाओं का प्रभाव राजस्थान पर भी पड़ा। रियासतों ने अपने प्रशासन को परगनों और ग्रामों में विभाजित किया।

अंग्रेजों का शासन

           अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ ही भारत प्रशासनिक दृष्टि से दो भागों में विभाजित हो गया था। पहला ब्रिटिश भारत और दूसरा रियासती भारत। ब्रिटिश कालीन भारत केन्द्रशासित प्रदेशों एवं 11 प्रान्तों से बना हुआ था। सभी प्रान्तों के अलग – अलग गवर्नर थे, जो कि भारत के गवर्नर जनरल के प्रति उत्तरदायी थे। 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया। अब भारत के प्रशासन का सीधा नियंत्रण इंग्लैंड के ताज एवं संसद के नियंत्रण में आ गया। लार्ड केनिंग को गवर्नर जनरल के साथ – साथ भारत का प्रथम वायसरॉय नियुक्त किया गया।

           अंग्रेज सरकार द्वारा विभिन्न अधिनियम पारित कर के भारत का शासन संचालन किया जाने लगा। 1935 ई . का भारत सरकार अधिनियम जिसे 1 अप्रैल , 1937 ई . में लागू किया गया, के द्वारा अजमेर – मेरवाड़ा के प्रशासन में परिवर्तन लाया गया। अब इसे विदेश एवं राजनीतिक विभाग के स्थान पर भारत सरकार के गृह विभाग के अन्तर्गत लाया गया। गृह विभाग के अन्तर्गत आने का प्रमुख प्रभाव यह हुआ कि अब इस क्षेत्र के सभी कानून संघीय कार्यपालिका द्वारा बनाये जाने लगे न कि गवर्नर जनरल के द्वारा ।

           देश की आजादी के बाद राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई । हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) की प्रथम विधान सभा के लिए 1952 में चुनाव हुआ और टीकाराम पालीवाल प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।

शब्दावली

  1. जागीर पट्टा      :-  वह पत्र जिसमें शासक द्वारा प्रदान की गयी जागीर का उल्लेख होता था।
  2. मनसबदारी      :-   मुगलकाल में प्रचलित एक प्रशासनिक प्रणाली।
  3. निर्वाचित         :-   चुना हुआ ।

अभ्यास प्रश्न

1.  सेना को वेतन देने तथा सेना संबंधी अन्य कार्यों की जिम्मेदारी किसकी होती थी?

( अ ) खजांची ( ब ) राजा ( स ) बख्शी ( द ) प्रधान

2.  हमारा राजस्थान (Our Rajasthan) के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री थे?

( अ ) मोहन लाल सुखाड़िया ( ब ) टीकाराम पालीवाल ( स ) जयनारायण व्यास ( द ) हरिदेव जोशी

3.  परगना अधिकारी के कार्य बताइये ।

4.  राजस्थान की रियासतों में कौन – कौनसे वंश के शासक राज करते थे ?

5.   जागीरदारी व्यवस्था के स्वरूप को बताइए ?

6.    ब्रिटिशकाल में प्रशासनिक व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों को बताइये?

7.    स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान की जागीरदारी को समजाइए।

(Our Rajasthan)


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