बाबा रामदेव राजस्थान के सर्वाधिक आराध्य लोकदेवता है। रामदेव जी रामसा पीर, रुणेचा रा धणी व पीरां रा पीर नाम से प्रसिद्ध है।
रामदेवजी का जन्म वि.स.1409 को उंडूकाश्मीर गाँव (शिव – तहसील, बाड़मेर ) में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को हुआ।
– इनके पिता का नाम – अजमलजी तंवर, माता-मैणादे, पत्नी – निहालदे /नेतलदे अमरकोट के राजा दल्लेसिंह सोढ़ा की पुत्री थी। ये कृष्ण के वंशज माने जाते है। इनके गुरु का नाम – बालीनाथ है।
मल्लीनाथ के समकालीन – रामदेव जी को कृष्ण का तथा उनके बड़े भाई बीरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है।
रूणेचा (जैसलमेर) में रामसरोवर की पाल पर भाद्रपद शुक्ला दशमी को समाधि ली थी। – रामदेवजी के लिए नियत समाधि स्थल पर उनकी मुँह बोली बहिन डाली बाई ने एक दिन पहले समाधि ली।
रामसापीर उपनाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल में कई परचे (चमत्कार) दिखाये। उन्होंने मक्का से पधारे पंचपीरों को भोजन कराते समय उनका कटोरा प्रस्तुत कर उन्हें चमत्कार दिखाया जिससे मक्का के उन पीरों ने कहा कि हम तो केवल पीर हैं, पर आप तो पीरों के पीर हैं।
– रामदेवजी द्वारा कामड़ पंथ की स्थापना की गई थी। राजस्थान में कामड़ पंथियों का प्रमुख केन्द्र पादरला गाँव (पाली) है, इसके अलावा पोकरण (जैसलमेर) व डीडवाना (नागौर) में भी कामड़ पंथी निवास करते हैं।
रामदेवजी की आराधना में कामड़ जाति की महिलाएं मंजीरे वाद्य यंत्र का प्रयोग करके प्रसिद्ध तेरहताली नृत्य करती हैं।
– रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि थे। चौबीस वाणियां रामदेवजी की प्रसिद्ध रचना है। – रामदेवजी की फड़ को बीकानेर व जैसलमेर में ब्यावले भक्तों के द्वारा बाँचा जाता है।
– रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। रामदेवजी के वंशज मृतक व्यक्ति को दफनाते है।