हमारा राजस्थान के जल संसाधन और संरक्षण

        जल की उपलब्धता के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है । जल का उपयोग पेयजल , दैनिक घरेलू कार्य , सिंचाई व उद्योग आदि कार्यों में किया जाता है । जल के समस्त स्रोत जल संसाधन कहलाते हैं । राजस्थान के मुख्य जल स्रोतों में झीलें , नदियाँ और उन पर बने बाँध व नहरें , तालाब , कुएँ एवं नलकूप आदि हैं।

अपवाह तंत्र

       धरातलीय बनावट और भू – गर्भिक संरचना के आधार पर किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था को ‘अपवाह तंत्र या प्रवाह प्रणाली’ कहते हैं । दो अपवाह क्षेत्रों के मध्य की उच्च भूमि जो वर्षा जल को विभिन्न दिशाओं में विभक्त कर प्रवाहित करती है , उसे जल विभाजक रेखा कहते हैं । जैसे – राजस्थान में अरावली पर्वत

✍️ ऐसी छोटी नदियाँ जो आगे चलकर , किसी बड़ी नदी में मिल जाती हैं , उन्हें सहायक नदियाँ कहा जाता है ।

राजस्थान का अपवाह तंत्र

राजस्थान के अपवाह तंत्र को तीन भागों में बाँटा जाता है :-

    1. बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र
    2. अरब सागर का अपवाह तंत्र
    3. आंतरिक अपवाह तंत्र

💧बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र

         अरावली पर्वत से पूर्वी भाग में बहने वाली बनास , कालीसिंध , पार्वती , आदि नदियाँ चम्बल में प्रवाहित होकर यमुना नदी में मिल जाती है तथा यमुना नदी , गंगा नदी में एवं अन्त में गंगा नदी का जल बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है । अतः इन नदियों को बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र कहते हैं ।

💧अरब सागर का अपवाह तंत्र 

अरावली पर्वत से पश्चिमी भाग में बहकर अपना जल अरब सागर में ले जाने वाली माही , लूनी , साबरमती , पश्चिमी बनास एवं इनकी सहायक नदियों को अरब सागर का अपवाह तंत्र कहते हैं ।

💧आंतरिक अपवाह तंत्र

         ऐसी नदी जो किसी समुद्र तक ना पहुँच कर स्थल भाग में ही विलुप्त हो जाए या किसी झील में मिल जाए तो उसे आंतरिक या भूमिगत अपवाह तंत्र वाली नदी कहते हैं । राजस्थान में बहने वाली घग्घर , बाणगंगा , कांतली , साबी , रूपारेल , मेंढा आदि नदियाँ आंतरिक अपवाह तंत्र के उदाहरण हैं |

राजस्थान की प्रमुख नदियाँ

🏖️ चम्बल

      इस नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश में विंध्याचल पर्वत है । यह राजस्थान की सबसे लंबी व एकमात्र वर्षभर बहने वाली नदी है । राजस्थान में यह नदी चित्तौड़गढ़ जिले में भैंसरोड़गढ़ से प्रवेश कर कोटा , बूंदी , सवाई माधोपुर , करौली एवं धौलपुर जिलों में बहने के बाद , उत्तरप्रदेश में यमुना नदी में मिल जाती है । इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ बनास , बेडच , कोठारी , कालीसिंध , पार्वती आदि हैं । राजस्थान का औद्योगिक नगर कोटा इस नदी के किनारे स्थित है ।

🏝️ बनास

       बनास नदी राजसमन्द जिले में खमनोर की पहाड़ियों से जन्म लेती हैं । यह राजसमंद , चित्तौड़गढ़ , भीलवाडा , टोंक जिलों में बहकर सवाई माधोपुर में रामेश्वर के निकट चम्बल नदी में मिल जाती है । यह एक मौसमी नदी है । पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली यह सबसे लम्बी नदी है । इसकी लम्बाई लगभग 480 किलोमीटर है । टोंक व सवाईमाधोपुर नगर , बनास नदी के किनारे पर स्थित हैं । बनास की प्रमुख सहायक नदियाँ मेनाल , कोठारी , बेड़च , खारी आदि हैं ।

🏜️ लूनी

     अजमेर जिले में गोविंदगढ़ के निकट सरस्वती व सागरमती नामक दो धाराओं के मिलने से इस नदी का उद्गम होता है । अजमेर , नागौर , पाली , जोधपुर , बाड़मेर , जालोर जिलों में बहने के बाद यह नदी कच्छ के रण में मिल जाती है । बाड़मेर जिले के बालोतरा तक इस नदी का जल मीठा होता है इसके बाद जल खारा हो जाता है । इसकी सहायक नदियों में जोजरी , बांडी , जवाई , मीठड़ी , खारी , सूकड़ी , सागी , गूहिया आदि हैं ।

🏖️ माही

      मध्यप्रदेश में विंध्याचल पर्वत इस नदी का उद्गम स्थल है । यह नदी राजस्थान में बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़ जिलों मे बहने के बाद खंभात की खाड़ी मे मिलती है । इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सोम एवं जाखम हैं ।

🏝️ बाणगंगा

    इस नदी का उद्गम जयपुर जिले में स्थित अरावली की बैराठ पहाड़ी से होता है । इस नदी का पानी भरतपुर में घना पक्षी राष्ट्रीय उद्यान में नम भूमि का निर्माण करता है । इसे अर्जुन की गंगा भी कहा जाता है ।

🏜️ घग्घर

        इस अन्तःप्रवाही नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश में हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणी से होता है । उत्तरी राजस्थान में यह नदी हनुमानगढ़ में प्रवेश कर श्रीगंगानगर में भूमिगत हो जाती है । इस नदी को प्राचीन सरस्वती नदी का अवशेष अथवा सहायक नदी माना जाता है ।

 राजस्थान की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ

         नदियों पर बाँध बनाने से जल विद्युत उत्पादन , सिंचाई , पेयजल , वृक्षारोपण , भूमिगत जल स्तर में वृद्धि , बाढ़ नियन्त्रण , मृदा अपरदन और पर्यटन आदि कई प्रकार के उद्देश्य पूरे होते हैं । इन्हीं कारणों से इन्हें बहुउद्देशीय परियोजनाएँ भी कहा जाता है । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इन नदी घाटी परियोजनाओं के महत्त्व को देखते हुए इन्हें ‘आधुनिक भारत के मंदिर‘ कहा है । राजस्थान में चम्बल परियोजना , माही बजाज सागर परियोजना , बीसलपुर परियोजना एवं सरदार सरोवर परियोजना प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ हैं।

🏞️ चम्बल परियोजना

     यह परियोजना राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्यों की संयुक्त परियोजना है । इस परियोजना के अंतर्गत कुल चार बाँध बनाए गए हैं । इनमें से गाँधी सागर बाँध मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित है । राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिले में राणा प्रताप सागर बाँध एवं कोटा जिले में जवाहर सागर व कोटा बैराज बाँध हैं । इस परियोजना से दोनों राज्यों को जल विद्युत एवं सिंचाई की सुविधाएँ मिलती हैं ।

🏙️ माही बजाज सागर परियोजना 

         बाँसवाड़ा में माही नदी पर यह परियोजना स्थित है । यह राजस्थान और गुजरात राज्य की सम्मिलित परियोजना है । इससे दोनों राज्यों में सिंचाई , जल विद्युत और पेयजल की सुविधाएँ उपलब्ध हो रही हैं ।

🏞️ बीसलपुर परियोजना

       राजस्थान के टोंक जिले के टोडारायसिंह नगर के पास बीसलपुर गाँव में बनास नदी पर सिंचाई और पेयजल के उद्देश्य से इस परियोजना का निर्माण किया गया है । इस परियोजना से राज्य के जयपुर , अजमेर , टोंक सहित कई अन्य क्षेत्रों को पेयजल आपूर्ति की जाती है ।

🏙️ सरदार सरोवर परियोजना

           गुजरात , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र और राजस्थान राज्यों की इस संयुक्त परियोजना का निर्माण गुजरात में नर्मदा नदी पर किया गया है । इस परियोजना से , राजस्थान के दक्षिण – पश्चिम में नहर द्वारा बाड़मेर व जालोर जिलों में सिंचाई एवं पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है ।

          इनके अतिरिक्त राज्य में पाली जिले में जवाई नदी पर जवाई परियोजना , डूंगरपुर जिले में सोम नदी पर सोम कमला आम्बा परियोजना , उदयपुर जिले में मानसी वाकल तथा प्रतापगढ़ जिले में जाखम नदी पर जाखम परियोजना भी हैं । जल संसाधन एवं जल संरक्षण के आधुनिक तरीकों में बाँध बनाना सबसे प्रमुख हैं ।

राजस्थान में प्रमुख झीलें एवं जल संचयन

           राजस्थान के लगभग हर क्षेत्र में पारम्परिक जल स्रोत एव  जल संसाधन , जैसे- कुएँ , बावड़ियाँ , जोहड़ , टॉके , खडीन आदि पाए जाते हैं । तत्कालीन राजा – महाराजाओं ने जल संचयन और जल संरक्षण के लिए कई उपाय किए , जिसके उदाहरण वर्तमान में भी कई जिलों में देखे जा सकते हैं । उदयपुर में 14 वीं सदी से 19 वीं सदी तक जल संरक्षण हेतु , अनेक कार्यों द्वारा ऐतिहासिक जल प्रबंधन प्रणाली का विकास किया गया एवं यहाँ के राणाओं ने पिछोला , उदयसागर , फतहसागर , गोवर्धनसागर , रंगसागर , स्वरूपसागर , जनासागर आदि झीलों का समय – समय पर निर्माण करवाया एवं नहरें बनाकर आपस में जोड़ दिया गया । इससे वर्षा ऋतु में जल एक के बाद , दूसरी झील में स्थानान्तरित हो जाता है । इन सभी झीलों के कारण ही उदयपुर को ‘ झीलों का नगर ‘ कहा जाता है ।

         जयसंमद झील का निर्माण मेवाड़ के महाराणा जयसिंहजी ने सन् 1687 से 1691 ई . तक गोमती नदी पर करवाया । यह विश्व की मीठे पानी की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील मानी जाती है ।

          अजमेर में स्थित पुष्कर एक धार्मिक महत्त्व की प्राकृतिक झील है । आनासागर भी अजमेर की एक प्रसिद्ध झील है । सिरोही के माउंट आबू में स्थित नक्की झील राज्य में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित प्राकृतिक झील है । राजसंमद जिले में स्थित राजसमंद झील भी प्रसिद्ध है , जिसके उत्तरी भाग को “नौ चौकी” भी कहा जाता है ।

         इसके अतिरिक्त जोधपुर में बालसमंद , कायलाना एवं उम्मेदसागर , जैसलमेर में गढीसर , डूंगरपुर में गेपसागर , बीकानेर में कोलायत , अलवर में सिलीसेढ़ आदि कई अन्य झीलें भी राज्य में महत्त्वपूर्ण जल संसाधन हैं । राज्य में मीठे पानी की झीलों के अतिरिक्त जयपुर , अजमेर एवं नागौर के मध्य साँभर झील , बाड़मेर में पचपदरा , नागौर में डीडवाना , बीकानेर में लूणकरणसर , जैसलमेर में पोकरण , जोधपुर में फलौदी आदि खारे पानी की झीलें भी हैं ।

 जल संरक्षण

          जल संरक्षण हमारा प्रथम दायित्व है । जल संरक्षण के लिए प्रत्येक नागरिक को प्रशासन का सहयोग करना चाहिए । इसके लिए आवश्यक है कि हमें जलाशयों में घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट नहीं डालना चाहिए । पेयजल स्रोतों के निकट स्नान आदि नहीं करना चाहिए । इनके साथ – साथ जल संचयन , जनसंख्या नियंत्रण , सिंचाई की उन्नत विधियों के प्रयोग , वृक्षारोपण में वृद्धि , भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग , और जल का पुनः उपयोग आदि प्रयत्नों से जल का संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है । अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों से जल को नहरों के द्वारा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पहुँचा कर जन – जीवन और उद्योगों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है ।

       वर्तमान में रूफ टॉप जल संचयन एवं वाटर हार्वेस्टिग तकनीकें बहुत प्रचलित जल संसाधन है । ‘ रूफ टॉप जल संचयन ‘ विधि में घर की छत पर गिरे वर्षा के जल को घर के नीचे बने कुएँ में एकत्र किया जाता है । वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक द्वारा वर्षा के व्यर्थ बहने वाले जल को भूमिगत किया जाता है ।

        पश्चिमी राजस्थान में प्राचीन समय से ही यहाँ के निवासी टाँका , खडीन , जोहड़ आदि का निर्माण कर वर्षा जल का संग्रहण एवं संरक्षण करते हैं । इन जल संसाधन तकनीकों को वृहद् स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है ।

जल संसाधन और संरक्षण ~ शब्दावली

  1. भू – गर्मिक   :-  भूमि के अन्दर का
  2. अपवाह       :-  नदी जल का बहना ( प्रवाह )
  3. टाँका           :- पश्चिमी राजस्थान में जल संरक्षण हेतु घर में बनाई गई कुएँनुमा संरचना
  4. खड़ीन         :-  पश्चिमी राजस्थान में कृषि के लिए जल संरक्षण हेतु बनाई गई संरचना
  5. जोहड़         :-   वर्षा जल रोककर भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने हेतु बनाई गई संरचना
  6. संरक्षण       :-   सुरक्षित रखना , रखरखाव

 

जल संसाधन और संरक्षण ~ अभ्यास प्रश्न

1. बनास किस नदी की सहायक नदी हैं ?

  ( अ ) चम्बल ( ब ) लूनी ( स ) बाणगंगा ( द ) माही

2 . माही बजाज सागर परियोजना कहाँ विकसित की गई ?

  ( अ ) बाँसवाड़ा में ( ब ) दूंगरपुर में ( स ) उदयपुर में ( द ) कोटा में

3.  चंबल की प्रमुख सहायक नदियों के नाम बताए ।

4.  राजस्थान की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाओं के नाम बताए ।

5.  चम्बल परियोजना क्या है ?

6.  राजस्थान की परम्परागत जल संरक्षण विधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।


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