18 वीं सदी का हमारा राजस्थान

        18 वीं सदी का हमारा राजस्थान से सम्बंधित मराठा शक्ति को सर्वप्रथम शिवाजी ने संगठित किया । औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात , मराठा शक्ति ने उत्तर भारत में विस्तार की नीति अपनाई , जिससे वे मालवा व गुजरात में आक्रमण करने लगे । मराठों का मालवा व गुजरात पर आक्रमण , राजस्थानी शासकों के लिए चिंता का विषय बन गया ।

       राजस्थान में सर्वप्रथम 1711 ई. में मराठों ने मेवाड़ में प्रवेश किया । 1720 ई. में पेशवा बाजीराव ने मराठा ध्वज अटक से कटक तक फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया , अतः उत्तरी भारत की ओर मराठा अग्रसर होने लगे । 1726 ई. में मराठों ने कोटा व बूंदी पर आक्रमण किए। इसके पश्चात 1728 ई. में डूंगरपुर, बाँसवाडा के शासकों ने खिराज देना स्वीकार किया । 22 अप्रैल 1734 ई. में मराठों ने बूंदी के शासक बुधसिंह हाड़ा को पुनः वहाँ का शासक बना दिया । यह मराठों का राजस्थान की राजनीति में प्रथम हस्तक्षेप था । इससे यहाँ के शासक भयभीत होने लगे , उन्होंने मराठों के विरूद्ध कोई ठोस नीति बनाने का निर्णय लिया ।

✍️हुरड़ा सम्मेलन

       18 वीं सदी का हमारा राजस्थान  के राजपूत राजाओं ने, मराठों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए 17 जुलाई 1734 को हुरड़ा ( भीलवाड़ा ) में एक सम्मेलन बुलाया, जिसकी अध्यक्षता मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह ( द्वितीय ) ने की, इसमें आमेर के सवाई जयसिंह , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह , कोटा के महाराव दुर्जनशाल आदि शासकों ने भाग लिया ।

18 वीं सदी का हमारा राजस्थान हुरड़ा सम्मेलन

      इस सम्मेलन में एक अहदनामा तैयार किया गया , जिसमें यह निश्चित हुआ कि सभी एक दूसरे के साथ मिलकर रहेंगे , एक का शत्रु व मित्र दूसरे का शत्रु व मित्र होगा । कोई भी नई योजना सभी मिल कर निश्चित करेंगे । वर्षा ऋतु के पश्चात रामपुरा में सभी एकत्र होंगे किंतु ये सभी शर्ते कागज तक ही सीमित होकर रह गई , इसकी कोई पालना नहीं की गई ।

       राजपूत शासक जाति , भाषा , रीति – रिवाज , परंपरा की दृष्टि से समान थे, फिर भी उनमें एकता का अभाव था। आमेर के सवाई जयसिंह की उदासीनता व निर्णयों की अस्पष्टता ने मराठों के विरुद्ध नीति को असफल बना दिया। इससे मराठों का राजस्थानी शासकों पर प्रभुत्व बढ़ता गया।

         पेशवा बाजीराव ने राजस्थान – नीति का आकलन करने के लिए, अपनी माता राधाबाई को 1735 ई में राजस्थान में तीर्थयात्रा पर भेजा । अपनी माता के सम्मान सहित सकुशल लौट आने पर पेशवा बाजीराव अगले ही वर्ष राजस्थान के दौरे पर आए व यहाँ से चौथ वसूली की।

✍️राजस्थान के उत्तराधिकार संघर्ष में मराठा भूमिका (1743 ई . – 1750 ई.)

       18 वीं सदी का हमारा राजस्थान के राजपूत शासकों में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष होने लगा , यही कारण था कि मराठों को उत्तराधिकार के निर्णय में दखल का अवसर मिल गया ।

18 वीं सदी का हमारा राजस्थान

👉 जयपुर उत्तराधिकार संघर्ष

     उदयपुर के महाराणा अमरसिंह ( द्वितीय ) की पुत्री चंद्रकुंवर बाई का विवाह सवाई जयसिंह के साथ 1708 ई. में इस शर्त पर हुआ कि मेवाड़ की राजकुमारी से उत्पन्न पुत्र ही जयपुर के सिंहासन पर बैठेगा । 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। तब मेवाड़ की राजकुमारी चंद्रकुंवर बाई से उत्पन्न पुत्र माधोसिंह ने अपने मामा महाराणा जगतसिंह ( द्वितीय ) के सहयोग से सवाई जयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र ईश्वर सिंह को चुनौती दी।

       मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर द्वारा माधोसिंह का पक्ष लिया गया । ईश्वर सिंह व माधोसिंह के मध्य ” राजमहल ” और ” बगरू ” के युद्ध हुए । अपने सेनापति हरगोविंद नाटाणी की कुटिलता के कारण ईश्वरसिंह को आत्महत्या करनी पड़ी और माधोसिंह मराठों के सहयोग से जयपुर का शासक बन गया ।

👉 जोधपुर – उत्तराधिकार संघर्ष

      जयपुर की भाँति जोधपुर में भी मराठों ने हस्तक्षेप किया । वहाँ भी रामसिंह और बख्तसिंह के मध्य उत्तराधिकार संघर्ष प्रारम्भ हो गया । दोनों ही मराठा सहायता के प्रयास में जुट गए । पेशवा , सिंधिया व होल्कर के हस्तक्षेप बढ़ गए । अंततः रामसिंह को राज्य का आधा भाग मिल गया । मारवाड़ का विभाजन ही नहीं हुआ , अपितु उसकी आर्थिक दशा भी शोचनीय हो गई । व्यापार नष्ट हो गए , कृषि बर्बाद हो गई और मराठों की माँगें दिन – प्रति दिन बढ़ती गई । वे कोई समझौता करने पर सहमत नहीं थे ।

👉 मेवाड़ में उत्तराधिकार संघर्ष

      1761 ई. में महाराणा राजसिंह द्वितीय की मृत्यु होने से अरिसिंह को मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठा दिया गया । इसके कुछ समय बाद मेवाड़ गद्दी के भी दो दावेदार हो गये थे, एक अरिसिंह व दूसरा रतनसिंह । दोनों ने मराठों से सहायता प्राप्त करने के प्रयास किये । परिणामस्वरूप गृहयुद्ध में मराठा हस्तक्षेप होने लगा, जिससे मेवाड़ की सामाजिक , सांस्कृतिक , आर्थिक व राजनैतिक प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो गये ।

        18 वीं सदी का हमारा राजस्थान  के शासकों के पारस्परिक वैमनस्य के कारण मराठों का हस्तक्षेप बढ़ता रहा , फलतः यहाँ का विकास अवरुद्ध होने लगा ।

🤝 अंग्रेज व संधियां

       मुगल साम्राज्य के पतन और मराठों द्वारा फैलाई गई अराजकता ने राजपूत शासकों, सामंतों तथा प्रजा में राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न कर दी थी । ऐसी स्थिति में राजस्थान की तरफ अंग्रेजों का स्वाभाविक झुकाव हुआ । वे अपनी शक्ति के विस्तार तथा अन्य राजनीतिक , आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए , राजपूत शासकों से मैत्री करने के लिए उत्सुक हुए । अतः 1817-1818 ई . में राजपूत शासकों से अंग्रेज सरकार ने संधियां करनी शुरू की ।

      राजस्थान के राज्यों में सर्वप्रथम 29 सितम्बर 1803 को भरतपुर राज्य ने अंग्रेजों के साथ संधि स्वीकार कर ली । 1818 ई. तक सिरोही राज्य को छोड़कर , सभी राज्यों ने कंपनी का संरक्षण स्वीकार कर लिया । केवल मारवाड़ के विरोध के कारण, सिरोही से तत्काल संधि नहीं हो सकी एवं 1823 ई. में संधि पर हस्ताक्षर हुए । इस प्रकार अल्प समय में ही संपूर्ण राजस्थान अंग्रेजों के संरक्षण में आ गया ।

🤔 संधियों के परिणाम

        1817-18 ई. की संधियों के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को दिये जाने वाले खिराज से देशी शासकों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई । अंग्रेजों को, शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर मिल गया । अंग्रेजों ने भी शासकों को सामंतों के विशेषाधिकार तथा शक्ति नष्ट करने हेतु दबाव डाला। इससे सामंतों की प्रतिष्ठा को हानि पहुँची । स्वदेशी व्यापार , उद्योग , हस्तशिल्प नष्ट होने लगे ।

      राजस्थान में ईसाई मिशनरियों का प्रवेश होने से उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार करना आरंभ कर दिया । इसकी जनसाधारण में तीव्र प्रतिक्रिया हुई, जो आगे चलकर 1857 ई. के संग्राम में परिवर्तित हो गई ।

शब्दावली

  1. अहदनामा   :- इकरारनामा , समझौता प्रपत्र।
  2. चौथ           :-  मराठों द्वारा अन्य शासकों से लिया जाने वाला सुरक्षा कर ।
  3. खिराज       :-  कृषि भूमि पर लगने वाला कर ।

अभ्यास प्रश्न

 1. निम्न में से हुरड़ा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी ?

( अ ) महाराणा जगतसिह द्वितीय

( ब ) सवाई जयसिंह

( स ) अभयसिंह

( द ) बख्तसिंह

2.  रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए- 

(१)  मराठा शक्ति को सर्वप्रथम ………….. ने संगठित किया ।

(२)  राजस्थान के राज्यों में सर्वप्रथम 29 सितम्बर 1803 को ……….. ने अंग्रेजों के साथ संधि स्वीकार कर ली ।

3. पेशवा बाजीराव की मराठा नीति क्या थी ?

4.  राजस्थान में मराठों ने सर्वप्रथम कब व कहाँ प्रवेश किया ? 

5.  जयपुर उत्तराधिकार संघर्ष क्या था ?

6. हुरड़ा सम्मेलन में क्या अहदनामा तैयार किया गया ? 


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